सुभाष चंद्र बोस का जीवन परिचय | Subhash Chandra Bose in Hindi

सुभाष चंद्र बोस (अंग्रेजी: Subhash Chandra Bose;जन्म: 7 मई 1861, मृत्यु: 18 अगस्त 1948) एक भारतीय राष्ट्रवादी, मशहूर राजनेता, विचारक और सेनानी थे, जिन्होंने ब्रिटिश सत्ता को चुनौती दी। भारत की आजादी में इनका अतुलनीय योगदान था। इन्होंने देश को अंग्रेजों से आजाद कराने के लिए बहुत कठिन प्रयत्न किये। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान इन्होंने ‘भारतीय राष्ट्रीय सेना’ (INA) की स्थापना की।

सुभाष चंद्र बोस को ’नेताजी’ की उपाधि से अलंकृत किया गया। इनका प्रसिद्ध नारा “ तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा ” है। ये युवाओं के लिए एक महान् प्रेरक शक्ति थे। नेताजी सुभाष चंद्र बोस द्वारा दिया गया ‘जय हिंद’ का नारा भारत का राष्ट्रीय नारा है। उनके अदम्य साहस और उद्दंड देशभक्ति ने उन्हें एक राष्ट्रीय नायक बना दिया जिसके कारण उन्हें आज भी भारतीयों द्वारा गर्व के साथ याद किया जाता है।

सुभाष चन्द्र बोस का जीवन परिचय (Subhash Chandra Bose in Hindi)

Table of Contents

सुभाष चन्द्र बोस का परिचय (Subhash Chandra Bose in Hindi)

नामसुभाष चंद्र बोस (Subhash Chandra Bose)
उपनामनेताजी
जन्म23 जनवरी 1897, कटक, ओडिशा (भारत)
पिताजानकीनाथ बोस
माताप्रभावती देवी
शिक्षाकला स्नातक (बीए)
स्कूलएक प्रोटेस्टेंट यूरोपीयन स्कूल रेवेंशॉव कॉलेजिएट स्कूल, कटक, ओडिशा (भारत)
कॉलेजप्रेसीडेंसी कॉलेज, स्कॉटिश चर्च कॉलेज, फिट्जविलियम कॉलेज
वैवाहिक स्थिति विवाहित (वर्ष 1937 में)
पत्नीएमिली शेंक्ली
बेटी अनीता बोस
नागरिकताभारतीय
धर्महिन्दू
पेशाराजनेता, सैन्य नेता, सिविल सेवा अधिकारी और स्वतंत्रता सेनानी
राजनीतिक दलभारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (1921-1939), ऑल इंडिया फॉरवर्ड ब्लॉक (1939-1940)
प्रसिद्ध नारेतुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा, जय हिंद, दिल्ली चलो
राजनैतिक गुरूदेशबंधु चितरंजन दास
लम्बाई5 फीट 9 इंच
मृत्यु 18 अगस्त 1948 (जापानी समाचार एजेंसी के अनुसार), ताइवान
उम्र48 वर्ष

सुभाष चन्द्र बोस (Subhash Chandra Bose)

सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी, 1897 को उड़ीसा के कटक में हुआ था। उनके पिता जानकी नाथ बोस एक प्रसिद्ध वकील थे और उनकी माता का नाम प्रभावती देवी था। वह चौदह भाई-बहनों में नौवें बच्चे थे। बोस ने कटक में अपने भाई-बहनों के साथ ’प्रोटेस्टेंट यूरोपियन स्कूल’ से अपनी प्राइमरी की शिक्षा प्राप्त की। 1909 में इन्होंने ‘रेवेनशा कॉलेजियेट स्कूल’ में प्रवेश लिया।

वेह एक मेधावी छात्र थे और अपनी कड़ी मेहनत से 1913 में उन्होंने इंटरमीडिएट की परीक्षा द्वितीय श्रेणी से उत्तीर्ण की। उसके बाद उन्होंने कलकत्ता के प्रेसीडेंसी कॉलेज में प्रवेश लिया और जहाँ उन्होंने थोड़े समय के लिए अध्ययन किया। उसके उपरांत उन्होंने कलकत्ता के प्रेसीडेंसी कॉलेज से दर्शनशास्त्र में बी.ए. पास किया।

स्वामी विवेकानंद और रामकृष्ण परमहंस की शिक्षाओं और दर्शन ने उन्हें बहुत प्रभावित किया क्योंकि वे उनके कार्यों को बड़े शौक से पढ़ते थे।

यह भी पढ़ें – सुभाष चंद्र बोस के अनमोल विचार

करियर (Career)

नेताजी के जीवन में एक घटना हुई। उन्होंने अपने एक प्रोफेसर को उनकी नस्लवादी टिप्पणियों के लिए पीटा दिया। उसके बाद अंग्रेज सरकार की निगाहों में वे एक विद्रोही-भारतीय के रूप में बदनाम हो गए। जिस कारण उन्हें कॉलेज से निष्कासित कर दिया गया। इसी वजह से उनके मन में विद्रोही की भावना प्रबल हो गयी।

उसके बाद उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय में स्कॉटिश चर्च कॉलेज में प्रवेश लिया और 1918 में दर्शनशास्त्र में प्रथम श्रेणी के साथ स्नातक किया।

उन्होंने अपने पिता जानकी नाथ बोस से वादा किया था कि वह भारतीय सिविल सेवा की परीक्षा देंगे। तब उनके पिता ने उनके लिए 10,000 रुपये आरक्षित किये। तब वह 1919 में अपने भाई सतीश के साथ लंदन गये,  वहाँ उन्होंने परीक्षा की तैयारी की। अपने कड़ी मेहनत से उन्होंने आईसीएस की परीक्षा उत्तीर्ण की, जिसमें उनको अंग्रेजी में सर्वोच्च अंक के साथ ही चौथा स्थान हासिल हुआ। परन्तु वह खुश नहीं थे, क्योंकि वह जानते थे कि उन्हें अब ब्रिटिश सरकार के अधीन काम करना होगा। 

उनकी स्वतंत्रता आंदोलन में हिस्सा लेने की बहुत इच्छा थी। साथ ही जलियावाला बाग हत्याकाण्ड की कुख्यात घटना के बाद उनका अंग्रेजों की सेवा करने से मन उचट गया था। अंततः अप्रैल 1921 में ब्रिटिश सरकार के खिलाफ गुस्सा और प्रतिरोध दिखाने के लिए उन्होंने ’प्रतिष्ठित भारतीय सिविल सेवा’ से इस्तीफा दे दिया और दिसंबर 1921 में भारत वापस आ गए।

सुभाष चंद्र बोस का वैवाहिक जीवन (Marital life of Subhash Chandra Bose)

सुभाष चंद्र बोस साल 1934 में जर्मनी में ऑस्ट्रियाई पशु चिकित्सक की बेटी ‘एमिली शेंकल’ से मिले। वे एमिली से अपने मित्र डाॅ. माथुर (वियना में रहने वाले एक भारतीय चिकित्सक) के माध्यम से मिले थे। फिर इसके बाद बोस ने उन्हें अपनी पुस्तक टाइप करने के लिए नियुक्त किया।

जल्द ही, उन दोनो को एक दूसरे से प्यार हो गया और साल 1937 में उन दोनो ने शादी कर ली। उन्होंने एक बेटी को जन्म दिया जिसका नाम अनिता बोस था।

सुभाष चन्द्र बोस का इतिहास (Subhash Chandra Bose History)

सुभाष चंद्र बोस जब भारत लौटे, तब वह महात्मा गांधी के प्रभाव में आ गये और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हो गए। गांधीजी के निर्देशन पर ही उन्होंने देशबंधु चितरंजन दास के अधीन काम करना आरंभ कर दिया, जिन्हें बाद में उन्होंने अपना राजनीतिक गुरु भी स्वीकार किया।

नेताजी 1923 में ’अखिल भारतीय युवा कांग्रेस’ के अध्यक्ष और बंगाल राज्य कांग्रेस के सचिव भी चुने गए। वह चितरंजन दास द्वारा स्थापित समाचार पत्र ’फॉरवर्ड’ के संपादक भी थे।

1924 में जब चितरंजन दास कलकत्ता के मेयर थे तब उन्होंने कलकत्ता नगर निगम के सीईओ के रूप में भी काम किया। 1925 में उनको गिरफ्तार किया गया और मांडले के जेल भेज दिया गया, जहां उन्हें तपेदिक हो गया। वे 1927 ई. में जेल से रिहा हुए और बाद में कांग्रेस पार्टी के महासचिव बने। 

1928 में भारतीय कांग्रेस द्वारा नियुक्त ’मोतीलाल नेहरू समिति’ ने वर्चस्व की स्थिति के पक्ष में घोषित किया, सुभाष चंद्र बोस और जवाहरलाल नेहरू ने इसका विरोध किया। क्योंकि उनका मानना था कि केवल पूर्ण स्वतंत्रता ही प्रदान की जाने चाहिए। बोस ने इंडिपेंडेंस लीग के गठन की भी घोषणा की।

सविनय अवज्ञा आंदोलन (1930) के दौरान सुभाष चंद्र बोस को जेल हो गयी। बाद में वे कलकत्ता के मेयर बने। गांधी-इरविन समझौते (1931) पर हस्ताक्षर करने के बाद बोस को रिहा कर दिया गया। उन्होंने गांधी-इरविन समझौते और सविनय अवज्ञा आंदोलन के निलंबन का विरोध किया, खासकर जब भगत सिंह , राजगुरु और सुखदेव को फांसी दी गई थी।

इसके बाद उन्होंने यूरोप की यात्रा की, भारत और यूरोप के बीच राजनीतिक-सांस्कृतिक संपर्कों को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न यूरोपीय राजधानियों में केंद्रों की स्थापना की। 1937 में वे भारत लौट आए और कांग्रेस के आम चुनाव जीतने के बाद उन्हें रिहा कर दिया गया।

सुभाष चंद्र बोस का राजनीतिक जीवन (Political life of Subhash Chandra Bose)

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के साथ जुड़ना.

सुभाष चंद्र बोस ने प्रारंभ में कोलकाता में कांग्रेस के सक्रिय सदस्य चितरंजन दास के नेतृत्व में काम की शुरूआत की। उन्होंने चितरंजन दास को अपना राजनीतिक गुरु भी माना था।

राष्ट्रीय कांग्रेस के 1938 के ’हरिपुरा कांग्रेस अधिवेशन’ (गुजरात) के दौरान सुभाष चंद्र बोस को कांग्रेस का अध्यक्ष चुना गया। उन्होंने उसी वर्ष अक्टूबर में एक ’राष्ट्रीय योजना समिति’ की योजना बनाने और स्थापित करने की बात कही।

नेताजी ने ‘स्वराज’ अखबार शुरू किया तथा ’फॉरवर्ड’ अखबार का संपादन किया। उन्होंने चितरंजन दास के कार्यकाल में कलकत्ता नगर निगम के सीईओ के रूप में भी काम किया। इसके अतिरिक्त उन्होंने कलकत्ता के युवाओं, मजदूरों और छात्रों को जागरूक करने का कार्य भी किया। 

वह भारत को एक संघीय, स्वतंत्र एवं गणतंत्र राष्ट्र को बनाना चाहते थे। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान उन्होंने युवाओं को बहुत प्रेरित किया था, वह युवाओं के लिए महान प्रेरणास्रोत थे। अपनी राष्ट्रवादी गतिविधियों के लिए उन्हें बहुत बार जेल भी जाना पङा।

कांग्रेस से इस्तीफा

कांग्रेस के गुवाहाटी अधिवेशन (1928) के समय कांग्रेस के पुराने और नए सदस्यों के बीच मतभेद हो गया। एक तरफ युवा नेता तो पूर्ण स्वशासन और बिना किसी समझौते के देश की स्वतंत्रता चाहते थे, वहीं दूसरी तरफ वरिष्ठ नेता ब्रिटिश शासन के अन्दर भारत के लिए प्रभुत्व की स्थिति के समर्थन में थे।

इसी वजह से सुभाष चंद्र बोस और उदारवादी महात्मा गांधी के मध्य मतभेद बहुत अधिक बढ़ गया। इसी कारण साल 1939 में नेताजी ने कांग्रेस पार्टी से इस्तीफा दे दिया और यूपी के उन्नाव में कांग्रेस के भीतर वामपंथी पार्टी ’फॉरवर्ड ब्लॉक’ का गठन किया।

जब INC ने ’व्यक्तिगत सत्याग्रह’ (1940) का आयोजन किया, तब सुभाष चंद्र बोस ने बिहार के रामगढ़ में ’समझौता-विरोधी सम्मेलन’ का आयोजन किया।

जेल में कैद

द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जब कांग्रेस ने अंग्रेजों का समर्थन करने का फैसला लिया तो उन्होंने इसका विरोध किया। वह एक जन आंदोलन शुरू करना चाहते थे, इसलिए उन्होंने भारतीयों से उनकी पूर्ण भागीदारी के लिए आह्वान किया। इसमें उन्होंने अपना सबसे लोकप्रिय नारा ‘तुम मुझे खून दो और मैं तुम्हें आजादी दूंगा’ दिया।

इससे जबरदस्त प्रतिक्रिया हुई और बोस को अंग्रेजों ने शीघ्र ही कैद कर लिया। जेल में जाने के बाद उन्होंने वहाँ भूख हड़ताल की घोषणा कर दी, तब उनका स्वास्थ्य खराब होने लग गया, तो अधिकारियों ने उन्हें जेल से रिहा कर दिया और अपने घर में ही नजरबन्द करने का आदेश दिया।

इंडियन नेशनल आर्मी ( आजाद हिंद फौज ) की स्थापना

सुभाष चंद्र बोस की सिंगापुर में रासबिहारी बोस से मुलाकात हुई। रासबिहारी बोस दक्षिण पूर्व एशिया में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का नेतृत्व एवं संचालन कर रहे थे। उन्होंने इसका नेतृत्व नेताजी को सौंप दिया। सुभाषचंद्र बोस ने भारतीय सैनिकों को संगठित करके “आजाद हिंद फौज” का गठन किया।

इसके साथ ही अस्थाई भारत सरकार की स्थापना की, जिसको ‘आजाद हिंद सरकार’ का नाम दिया गया। वे सेना और सरकार दोनों के ही अध्यक्ष बने। उन्होंने जापान से संबंध स्थापित करके अपनी सेना के लिए आवश्यक युद्ध के अस्त्रों की व्यवस्था की और आजाद हिंद सेना ने अपना विजय अभियान प्रारंभ किया।

सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व में दिसंबर 1943 में आजाद हिंद फौज ने ब्रिटिश सेना को हराया और अंडमान-निकोबार द्वीप समूह को आजाद करा लिया। इन द्वीपों को नया नाम दिया और इन्हें शहीद और स्वराज द्वीप घोषित किया। आजाद हिंदी फौज का मुख्यालय जनवरी 1944 में सिंगापुर से रंगून लाया गया।

आजाद हिंद फौज का भारत आगमन

आजाद हिंद फौज ने चलो दिल्ली के नारे के साथ निरंतर मातृभूमि की ओर जाती रही और बर्मा की सीमा पार करके 18 मार्च 1944 को भारत आयी।

जैसे ही सैनिक अपने देश की मातृभूमि पर आये, वे बहुत खुश हुए। उन्होंने प्यार से अपनी भारत भूमि की मिट्टी को चुमा। आजाद हिंद फौज की कार्यवाही से ब्रिटिश सैनिकों में भगदड़ मच गई, जिससे बोस की सेना कोहिमा और इंफाल की ओर गयी। आजाद हिंद सेना ने जय हिंद और नेता जी जिंदाबाद के नारों के साथ स्वतंत्र भारत का झंडा फहराया। 

इस अभियान से यह विश्वास होने लग गया थोड़े ही दिनों में वह सेना भारत को स्वतंत्र करवायेगी। लेकिन उसी दौरान अमेरिका ने जापान के हिरोशिमा और नागासाकी नगरों पर परमाणु बम का विस्फोट करके प्रलय ला दी। जापान ने हार मानकर अपने हथियार डाल दिये। आजाद हिंद फौज को भी पीछे हटना पड़ा।

INA की एक अलग महिला इकाई थी, झाँसी रेजिमेंट की रानी ( रानी लक्ष्मी बाई के नाम पर) जिसका नेतृत्व कैप्टन लक्ष्मी स्वामीनाथन कर रही थीं। इसे एशिया में अपनी तरह की पहली इकाई के रूप में देखा जाता है।

नेताजी सुभाष चंद्र बोस के नारे (Subhash Chandra Bose Slogan)

नेताजी सुभाष चंद्र बोस के प्रसिद्ध नारे –

  • “तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूँगा” ,
  • “ जय हिन्द” ,
  • “दिल्ली चलो” ,
  • “इत्तेफाक, एतमाद, कुर्बानी”

मृत्यु (Death)

1945 में सुभाष चंद्र बोस की जापान यात्रा के दौरान उनका विमान ताईवान में क्रैश हो गया। परंतु उनकी बॉडी नहीं मिली, तो इस वजह से कुछ समय बाद उन्हें मृत घोषित कर दिया गया। भारत सरकार ने इस दुर्घटना के लिए एक ’जांच कमेटी’ बनाई, परंतु इस बात की पुष्टि आज तक नहीं हो सकी।

मई 1956 में ’शाह नवाज कमेटी’ ने नेताजी की मौत के रहस्य को उजागर करने के लिए जापान गई, लेकिन ताईवान में कोई खास राजनैतिक संबंध न होने के कारण उनकी सरकार ने उनकी सहायता नहीं की। 

2006 में मुखर्जी कमीशन ने संसद में बोला कि ’नेता जी की मौत विमान दुर्घटना में नहीं हुई थी और उनकी अस्थियाँ जो रेंकाजों मंदिर में रखी हुई है, वो भी उनकी नहीं है। परंतु भारत सरकार ने इस पुष्टि को खारिज कर दिया, इसी वजह से आज भी इसकी जांच चल रही है और यह एक विवादास्पद रहस्य है।

यह माना जाता है कि सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु 18 अगस्त, 1945 को ताइपेह, ताइवान (फॉर्माेसा) में एक हवाई दुर्घटना के दौरान हुई।

सुभाष चंद्र बोस (जन्म: 7 मई 1861, मृत्यु: 18 अगस्त 1948) एक भारतीय राष्ट्रवादी, मशहूर राजनेता, विचारक और सेनानी थे, जिन्होंने ब्रिटिश सत्ता को चुनौती दी थी। उनके पिता जानकी नाथ बोस एक प्रसिद्ध वकील थे और उनकी माता का नाम प्रभावती देवी था। वह चौदह भाई-बहनों में नौवें बच्चे थे। सुभाष चंद्र बोस ने कटक में अपने भाई-बहनों के साथ ’प्रोटेस्टेंट यूरोपियन स्कूल’ से अपनी प्राइमरी की शिक्षा प्राप्त की। 1909 में इन्होंने ’रेवेनशा कॉलेजियेट स्कूल’ में प्रवेश लिया।

4 जून 1944 को सुभाष चन्द्र बोस ने सिंगापुर रेडियो से एक संदेश प्रसारित करते हुए महात्मा गांधी को ’राष्ट्रपिता’ कहकर संबोधित किया।

सुभाष चंद्र बोस के राजनीतिक नेता चितरंजन दास थे।

सुभाष चन्द्र बोस भारत के स्वतंत्रता संग्राम के अग्रणी तथा सबसे बङे नेता थे। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने के लिए उन्होंने जापान के सहयोग से आजाद हिन्द फौज का गठन किया था। उनके द्वारा दिया गया ’जय हिन्द’ का नारा भारत का राष्ट्रीय नारा बन गया है।

नेताजी का पूरा नाम सुभाष चंद्र बोस है।

आजाद हिंद फौज के संस्थापक सुभाष चंद्र बोस थे।

सुभाष चंद्र बोस का प्रसिद्ध नारा ’’तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूँगा।’’

Show Your Love ❤

Related posts:

Leave a comment जवाब रद्द करें.

अगली बार जब मैं टिप्पणी करूँ, तो इस ब्राउज़र में मेरा नाम, ईमेल और वेबसाइट सहेजें।

Notify me of new posts by email.

  • More Networks

HindiKiDuniyacom

सुभाष चन्द्र बोस

नेताजी सुभाष चन्द्र बोस (23 जनवरी 1897–18 अगस्त 1945)

गुलामी की बेड़ियों में जकड़े हुये भारत को आजाद कराने के लिये अनेक देशभक्तों ने अपने-अपने तरीकों से भारत को आजाद कराने की कोशिश की। किसी ने क्रान्ति के मार्ग को अपनाया तो किसी ने अहिंसा और शान्ति के मार्ग को, पर दोनों मार्गों के समर्थकों के संयुक्त प्रयासों से ही भारत की आजादी का मार्ग निर्धारित हुआ।

भारत की आजादी के लिये संघर्ष करते हुये अनेक क्रान्तिकारी भारतीय शहीद हुये। ऐसे ही महान क्रान्तिकारी, भारतीय स्वतंत्रता सेनानी थे सुभाष चन्द्र बोस। एक ऐसा व्यक्तित्व जिसने अपने कार्यों से अंग्रेजी सरकार के छक्के छुड़ा दिये। इन्होंने अपने देश को आजाद कराने के लिये की गयी क्रान्तिकारी गतिविधियों से ब्रिटिश भारत सरकार को इतना ज्यादा आंतकित कर दिया कि वो बस इन्हें भारत से दूर रखने के बहाने खोजती रहती, फिर भी इन्होंने देश की आजादी के लिये देश के बाहर से ही संघर्ष जारी रखा और वो भारतीय इतिहास में पहले ऐसे स्वतंत्रता सेनानी हुये जिसने ब्रिटिश भारत सरकार के खिलाफ देश से बाहर रहते हुये सेना संगठित की और सरकार को सीधे युद्ध की चुनौती दी और युद्ध किया। इनके महान कार्यों के कारण लोग इन्हें ‘नेताजी’ कहते थे।

सुभाष चन्द्र बोस से सम्बन्धित प्रमुख तथ्यः पूरा नाम– सुभाष चन्द्र बोस अन्य नाम- नेताजी जन्म– 23 जनवरी 1897 जन्म स्थान – कटक, उड़ीसा माता-पिता – प्रभावती, जानकीनाथ बोस (प्रसिद्ध वकील) पत्नी – ऐमिली शिंकल बच्चे – इकलौती पुत्री अनीता बोस अन्य करीबी सम्बन्धी – शरत् चन्द्र बोस (बड़े भाई), विभावती (भाभी), शिशिर कुमार बोस (भतीजा) शिक्षा – मैट्रिक (1912-13), इंटरमिडिएट (1915), बी. ए. आनर्स (1919), भारतीय प्रशासनिक सेवा (1920-21) विद्यालय – रेवेंशॉव कॉलेजिएट (1909-13), प्रेजिडेंसी कॉलेज (1915), स्कॉटिश चर्च कॉलेज (1919), केंब्रिज विश्वविद्यालय (1920-21) संगठन – आजाद हिन्द फौज, आल इंडिया नेशनल ब्लाक फॉर्वड, स्वतंत्र भारत की अस्थायी सरकार उपलब्धी – आई.सी.एस. बनने वाले प्रथम भारतीय, दो बार कांग्रेस के अध्यक्ष, भारत को स्वतंत्र कराने के संघर्ष में 11 बार जेल की एतिहासिक यात्रा, भारतीय स्वतंत्रता के लिये अन्तिम सांस तक प्रयास करते हुये शहीद हुये। मृत्यु – 18 अगस्त 1945 (विवादित) मृत्यु का कारण – विमान दुर्घटना मृत्यु स्थान – ताइहोकू, ताइवान

सुभाष चन्द्र बोस की जीवनी (जीवन परिचय)

प्रारम्भिक या शुरुआती जीवनः

  • जन्म एंव बाल्यकाल

आजाद हिन्द फौज के सूत्राधार नेताजी सुभाष चन्द्र बोस का जन्म उड़ीसा राज्य के कटक स्थान पर 23 जनवरी 1897 को हुआ था। इनका परिवार बंगाल का एक सम्पन्न परिवार था। इनके पिता जानकी नाथ बोस बंगाल के एक प्रतिष्ठित और प्रसिद्ध वकील थे। इनकी माता प्रभावती धार्मिक और पतिव्रता स्त्री थी। ये 14 बहन भाई थे, जिसमें से ये नौंवो स्थान पर थे।

सुभाष चन्द्र बोस का बाल्यकाल बड़ी सम्पन्नता में व्यतीत हुआ। इन्होंने कभी भी किसी भी वस्तु का अभाव नहीं देखा। इनकी आवश्यकता अनुसार प्रत्येक वस्तु इन के पास होती थी। अभाव था तो केवल माता-पिता के वात्सल्य का। इनके पिता अपने पेशे में व्यस्त रहने के कारण परिवार और बच्चों को समय नहीं दे पाते थे और माता इतने बड़े परिवार के पालन पोषण में लगी रहने के कारण इन्हें ध्यान नहीं दे पाती थी जिससे ये बाल्यकाल से ही गम्भीर स्वभाव के हो गये। ये बस अपने बड़े भाई शरत् चन्द्र के करीबी थे और अपनी सभी बातों और निर्णयों पर उनसे सलाह लेते थे।

  • पारिवारिक पृष्ठभूमि

सुभाष चन्द्र बोस के पिता जानकी नाथ बोस वास्तविक रुप से बंगाल के परगना जिले के एक छोटे से गाँव के रहने वाले थे। ये वकालत करने के लिये कटक आ गये क्योंकि इनके गाँव में वकालत में सफल होने के कम अवसर थे। लेकिन कटक में इनके भाग्य ने इनका साथ दिया और सुभाष के जन्म से पहले ही ये अपने आपको वकालत में स्थापित कर चुके थे। ये अब तक एक प्रसिद्ध सरकारी वकील बन गये थे तथा नगर पालिका के प्रथम भारतीय गैर सरकारी अध्यक्ष भी चुने गये।

देशभक्ति सुभाष को अपने पिता से विरासत में मिली थी। इनके पिता सरकारी अधिकारी होते हुये भी कांग्रेस के अधिवोशनों में शामिल होने के लिये जाते रहते थे। ये लोकसेवा के कार्यों में बढ़-चढ़ कर भाग लेते थे। ये खादी, स्वदेशी और राष्ट्रीय शैक्षिक संस्थाओं के पक्षधर थे।

सुभाष चन्द्र बोस की माता प्रभावती उत्तरी कलकत्ता के परंपरावादी दत्त परिवार की बेटी थी। ये बहुत ही दृढ़ इच्छाशक्ति की स्वामिनी, समझदार और व्यवहारकुशल स्त्री थी साथ ही इतने बड़े परिवार का भरण पोषण बहुत ही कुशलता से करती थी।

  • प्रारम्भिक शिक्षा

सुभाष चन्द्र बोस की प्रारम्भिक शिक्षा कटक के ही स्थानीय मिशनरी स्कूल में हुई। इन्हें 1902 में प्रोटेस्टेंट यूरोपियन स्कूल में प्रवोश दिलाया गया। ये स्कूल अंग्रेजी तौर-तरीके पर चलता था जिससे इस स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों की अंग्रेजी अन्य भारतीय स्कूलों के छात्रों के मुकाबले अच्छी थी। ऐसे स्कूल में पढ़ने के और भी फायदे थे जैसे अनुशासन, उचित व्यवहार और रख-रखाव आदि। इनमें भी अनुशासन और नियमबद्धता बचपन में ही स्थायी रुप से विकसित हो गयी।

इस स्कूल में पढ़ते हुये इन्होंने महसूस किया कि वो और उनके साथी ऐसी अलग-अलग दुनिया में रहते हैं जिनका कभी मेल नहीं हो सकता। सुभाष शुरु से ही पढ़ाई में अच्छे नंबरों से प्रथम स्थान पर आते थे लेकिन वो खेल कूद में बिल्कुल भी अच्छे नहीं थे। जब भी किसी प्रतियोगिता में भाग लेते तो उन्हें हमेशा शिकस्त ही मिलती।

1909 में इनकी मिशनरी स्कूल से प्राइमरी की शिक्षा पूरी होने के बाद इन्हें रेवेंशॉव कॉलेजिएट में प्रवोश दिलाया गया। इस स्कूल में प्रवोश लेने के बाद बोस में व्यापक मानसिक और मनोवैज्ञानिक परिवर्तन आये। ये विद्यालय पूरी तरह से भारतीयता के माहौल से परिपूर्ण था। सुभाष पहले से ही प्रतिभाशाली छात्र थे, बस बांग्ला को छोड़कर सभी विषयों में अव्वल आते थे। इन्होंने बांग्ला में भी कड़ी मेहनत की और पहली वार्षिक परीक्षा में ही अच्छे अंक प्राप्त किये। बांग्ला के साथ-साथ इन्होंने संस्कृत का भी अध्ययन करना शुरु कर दिया।

रेवेंशॉव स्कूल के प्रधानाचार्य (हेडमास्टर) बेनीमाधव दास का सुभाष के युवा मन पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा। माधव दास ने इन्हें नैतिक मूल्यों पर चलने की शिक्षा दी साथ ही ये भी सीख दी कि असली सत्य प्रकृति में निहित है अतः इसमें स्वंय को पूरी तरह से समर्पित कर दो। जिसका परिणाम ये हुआ कि ये नदी के किनारों और टीलों व प्राकृतिक सौंन्दर्य से पूर्ण एकांत स्थानों को खोजकर ध्यान साधना में घंटों लीन रहने लगे।

सुभाष चन्द्र के सभा और योगाचार्य के कार्यों में लगे रहने के कारण इनके परिवार वाले व्यवहार से चिन्तित होने लगे क्योंकि ये अधिक से अधिक समय अकेले बिताते थे। परिवार वालों को इनके भविष्य के बारे में चिन्ता होने लगी कि इतना होनहार और मेधावी होने के बाद भी ये पढ़ाई में पिछड़ न जाये। परिवार की आशाओं के विपरीत 1912-13 में इन्होंने मैट्रिक की परीक्षा में विश्वविद्यालय में दूसरा स्थान प्राप्त किया जिससे इनके माता-पिता बहुत खुश हुये।

  • स्कूली जीवन में प्रथम राजनीति में प्रवेश

स्कूल के अन्तिम दिनों में सुभाष को प्रथम राजनीतिक प्रोत्साहन मिला जब इनसे मिलने कलकत्ता के एक दल (आदर्श दल) का दूत आया। उस दल का दोहरा उद्देश्य था- देश के नागरिकों का आध्यात्मिक उत्थान और राष्ट्र की सेवा। शीघ्र ही ये इस दल से जुड़ गये क्योंकि इनके विचार इस दल के उद्देश्यों से बहुत हद तक मिलते थे। इस दल का मुखिया एक डॉक्टर था जिससे बहुत लम्बे समय तक बोस सम्पर्क में रहे। ये सुभाष चन्द्र बोस के जीवन का प्रथम राजनीतिक अनुभव था जो भविष्य में इनके बहुत काम आया।

  • प्रारम्भिक परिवोश का विचारों पर प्रभाव

सुभाष चन्द्र बोस को पारिवारिक वातावरण में माता-पिता का बहुत अधिक प्रेम नहीं मिला जिससे अधिकांश समय अकेले व्यतीत करने के कारण बाल्यकाल में ही इनका स्वभाव गम्भीर हो गया। बचपन से ही ये मेहनती और दृढ़ संकल्प वाले थे। जब ये ईसाई मिशनरी के प्राइमरी स्कूल में पढ़ रहे थे इसी समय इन्होंने अपने व अपने सहपाठियों के बीच अन्तर को महसूस करते हुये पाया कि जैसे कि ये दो विभिन्न समाजों के बीच रह रहे हों।

रेवेंशॉव स्कूल में हेडमास्टर बेनीमाधव के सम्पर्क में आने पर ये अध्यात्म की ओर मुड़ गये। 15 साल की उम्र में इन्होंने विवोकानंद के साहित्यों का गहन अध्ययन किया और उनके सिद्धान्तों को अपने जीवन में अपनाया। इन्होंने तय किया आत्मा के उद्धार के लिये खुद परिश्रम करना जीवन का उद्देश्य होना चाहिये साथ ही मानवता की सेवा, देश की सेवा है, जिस में अपना सब कुछ समर्पित कर देना चाहिये। विवोकानंद के जीवन से प्रेरणा लेकर इन्होंने ‘रामकृष्ण-विवोकानंद युवाजन सभा’ का गठन किया, जिसका परिवार वालों तथा समाज ने विरोध किया फिर भी इन्होंने सभा के कार्यों को जारी रखा। इस तरह युवा अवस्था में पहुँचने के समय में ही एक सीमा तक मनोवैज्ञानिक विचारों की पृष्ठभूमि तैयार हो चुकी थी।

कलकत्ता में उच्च शिक्षा व सार्वजनिक जीवन

मैट्रिक की परीक्षा पास करने के बाद इनके परिवार जनों ने इन्हें आगे की पढ़ाई के लिये कलकत्ता भेज दिया। 1913 में इन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय के सबसे प्रतिष्ठित कॉलेज प्रेजिडेंसी में एडमिशन (प्रवोश) लिया। सुभाष चन्द्र बोस ने यहाँ आकर बिना किसी देर के सबसे पहले आदर्श दल से सम्पर्क बनाया जिसका दूत इन से मिलने कटक आया था। उस समय इनके कॉलेज के छात्र अलग-अलग गुटों (दलों) में विभक्त थे। जिसमें से एक गुट आधुनिक ब्रिटिश राज-व्यवस्था की चापलूसी करता था, दूसरा सीधे-सादे पढ़ाकू छात्रों का था, एक दल सुभाष चन्द्र बोस का था- जो स्वंय को रामकृष्ण-विवोकानन्द का आध्यात्मिक उत्तराधिकारी मानते थे और एक अन्य गुट था– क्रान्तिकारियों का गुट।

कलकत्ता का सामाजिक परिवोश कटक के छोटे से कस्बे के वातावरण से बिल्कुल अलग था। यहाँ की आधुनिक जीवन की चमक-धमक ने अनेकों विद्यार्थियों के जीवन को आकर्षित कर विनाश की ओर ले गयी थी, लेकिन सुभाष का निर्माण तो अलग ही मिट्टी से हुआ था। ये कलकत्ता कुछ दृढ़ विचारों, सिद्धान्तों और नये उद्देश्यों के साथ आये थे। इन्होंने पहले ही निश्चय कर लिया था कि ये लकीर के फकीर नहीं बनेंगें। ये जीवन को गम्भीरता से अपनाना जानते थे। कॉलेज का जीवन शुरु करते समय इन्हें इस बात का अहसास था कि जीवन का लक्ष्य भी है और उद्देश्य भी।

जब सुभाष कटक से कलकत्ता आये थे तो इनका स्वभाव आध्यात्मिक था। ये समाज सेवा करना चाहते थे और समाज सेवा योग साधना का ही अभिन्न अंग है। ये अपना ज्ञान बढ़ाने के लिये ऐतिहासिक और धार्मिक स्थानों पर घूमने जाते थे। अपने कॉलेज के समय में बोस अरविन्द घोष के लेखन, दर्शन और उनकी यौगिक समन्वय की धारणा से प्रेरित थे। इस समय तक इनका राजनीति से कोई सीधा संबंध नहीं था। ये तरह-तरह के धार्मिक और सामाजिक कार्यों में खुद को व्यस्त रखते थे। इन्हें कॉलेज की पढ़ाई की कोई परवाह नहीं रहती क्योंकि ज्यादातर विषयों के लेक्चर इन्हें ऊबाऊ लगते थे। ये वाद-विवादों में भाग लेते थे, बाढ़ और अकाल पीड़ितों के लिये के लिये चन्दे इकट्ठा करने जैसे समाजिक कार्यों को करने में लगे रहने के कारण 1915 की इंटरमीडियेट की परीक्षा में ज्यादा अच्छे नम्बर प्राप्त नहीं कर पाये। इसके बाद इन्होंने आगे की पढ़ाई के लिये दर्शनशास्त्र को चुना और पूरी तरह से पढ़ाई में लग गये।

प्रेजिडेंसी कांड़ (1916) व शिक्षा में उत्पन बाधाएँ

बी. ए. आनर्स (दर्शन-शास्त्र) करते समय सुभाष चन्द्र बोस के जीवन में एक घटना घटी। इस घटना ने इनकी विचारधारा को एक नया मोड़ दिया। ये बी. ए. आनर्स (दर्शनशास्त्र) के प्रथम वर्ष के छात्र थे। लाइब्रेरी के स्व-अध्ययन कक्ष में पढ़ते हुये इन्हें बाहर से झगड़े की कुछ अस्पष्ट आवाजें सुनायी दे रही थी। बाहर जाकर देखने पर ज्ञात हुआ कि अंग्रेज प्रोफेसर ई. एफ. ओटेन ने इन्हीं के क्लास के कुछ छात्रों को पीटाई कर रहे थे। मामले की जाँच करने पर पता चला कि प्रोफेसर ओटेन की क्लास से लगे बरामदे (कॉरिड़ोर) में बी. ए. प्रथम वर्ष के कुछ छात्र शोर कर रहे थे, लेक्चर में बाधा उपस्थित करने के जुर्म में प्रोफेसर ने पहली लाइन में लगे छात्रों को निकाल कर पीट दिया था।

सुभाष चन्द्र अपनी क्लास के प्रतिनिधि थे। इन्होंने छात्रों के अपमान करने की इस घटना की सूचना अपने प्रधानाचार्य को दी। अगले दिन, इस घटना के विरोध में छात्रों द्वारा कॉलेज में सामूहिक हड़ताल का आयोजन किया गया, जिसका नेतृत्व सुभाष चन्द्र बोस ने किया। ये कॉलेज के इतिहास में पहली बार था जब छात्रों ने इस प्रकार की हड़ताल की थी। हर तरफ इस घटना की चर्चा हो रही थी। मामला अधिक न बढ़ जाये इसलिये अन्य शिक्षकों और प्रबंध समिति की मध्यस्था से उस समय तो मामला शान्त हो गया, लेकिन एक महीने बाद उसी प्रोफेसर ने दुबारा इनके एक सहपाठी को पीट दिया जिस पर कॉलेजों के कुछ छात्रों ने कानून को अपने हाथों में लिया जिसका परिणाम ये हुआ कि छात्रों ने प्रोफेसर को बहुत बुरी तरह पीटा। समाचार पत्रों से लेकर सरकारी दफ्तरों तक सभी में इस घटना ने हलचल मचा दी।

छात्रों पर ये गलत आरोप लगाया गया कि प्रो. ओटेन पर हमला करते समय उन्हें सीढ़ियों से धक्का देकर नीचे गिराया गया था। सुभाष इस घटना के चश्मदीद गवाह थे। वो जानते थे कि ये आरोप सिर्फ एक कोरा झूठ है, एक प्रत्यक्षदर्शी (चश्मदीद गवाह) होने के नाते बिना किसी ड़र के विरोधाभास के ये बात दावो के साथ कह सकते थे। छात्रों की निष्पक्षता के लिये ये बात साफ होनी आवश्यक थी। लेकिन ये घटना सरकार और कॉलेज की अध्यापकों की प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गयी। छात्रों की ओर से किसी भी प्रकार की सफाई की अवहेलना करते हुये कॉलेज के प्रधानाचार्य ने प्रबंध समिति के सम्मानित व्यक्तियों से सलाह करके कॉलेज के शरारती बच्चों को स्कूल से निकाल दिया। इन निकाले गये छात्रों की हिट लिस्ट में सुभाष चन्द्र बोस का नाम भी शामिल था। उन्होंने सुभाष को बुलाकर कहा–

“बोस! तुम कॉलेज में सबसे ज्यादा परेशानी उत्पन्न करने वाले (उपद्रवी) छात्र हो। मैं तुम्हें निलम्बित (सस्पेंड) करता हूँ।

सुभाष– धन्यवाद।”

इतना कहकर वो घर आ गये। इस निर्णय के बाद प्रबंध समिति ने प्रधानाचार्य के इस निर्णय पर मोहर लगा दी। इन्हें कॉलेज से निकाल दिया गया। सुभाष चन्द्र ने विश्वविद्यालय से किसी अन्य कॉलेज में पढ़ने की अनुमति माँगी जिसे अस्वीकार कर दिया गया। इस तरह इन्हें पूरे विश्वविद्यालय से निष्काषित कर दिया गया।

कुछ राजनीतिज्ञों ने इसे प्रधानाचार्य के अधिकार के बाहर का निर्णय कहा जिसे जाँच कमेटी ने अपने हाथ में ले लिया। जाँच कमेटी के सामने इन्होंने छात्रों का प्रतिनिधित्व किया और कहा कि वो प्रोफेसर पर हमले को सही नहीं मानते पर उस समय छात्र इतने भड़के हुये थे कि उन्हें नियंत्रित करना बहुत मुश्किल था। इसके बाद इन्होंने कॉलेज में अंग्रेजों द्वारा किये जाने वाले बुरे व्यवहार का वर्णन किया। जब कमेटी की रिपोर्ट आयी तो छात्रों के पक्ष में कोई भी शब्द नहीं था, सिर्फ सुभाष चन्द्र के बारे में ही जिक्र था।

इस तरह उनके आगे की पढ़ाई करने के रास्ते बन्द हो गये। लेकिन कठिनाई के इस समय में उनके परिवार वालों ने उनका साथ दिया। इनके संबंधी जानते थे कि वो जो कर रहे हैं, सही कर रहे है। सुभाष को भी अपने किये पर कोई पछतावा नहीं था। आगे की पढ़ाई की कोई सम्भावना न रहने पर ये पूरी तरह से समाज के कार्यों में लग गये। इस घटना ने इनके जीवन को पूरी तरह से बदल कर रख दिया। इनकी सोच और विचारधारा में काफी परिवर्तन हो गये। इस समय में इन्होंने अपने मनोभावों को जानने के लिये आत्म विश्लेषण किया।

स्काटिश चर्च में प्रवोश (1917)

लगभग एक वर्ष की उथल-पुथल के बाद विश्व विद्यालय में प्रवोश के लिये ये पुनः कलकत्ता आ गये। यहाँ अधिकारियों के निर्णय की प्रतीक्षा करते समय 49 वीं बंगाल रेजीमेंट में भर्ती होने की कोशिश की, लेकिन खराब आँखों के कारण भर्ती में असफल रहे। बाद में इन्हें सूचना दी गयी कि ये किसी अन्य विद्यालय से प्रवोश लेकर पढ़ सकते हैं। इस सूचना के बाद ये स्कॉटिश चर्च कॉलेज के प्रधानाचार्य (डॉ. अर्कहार्ट) से मिले और उन्हें बताया कि वो दर्शन शास्त्र में आनर्स करना चाहते है। अर्कहार्ट बहुत ही व्यवहार कुशल और दूसरों की भावनाओं का ख्याल रखने वाले व्यक्ति थे। वो सुभाष के व्यवहार से प्रभावित हुये और उन्हें प्रवोश की अनुमति दे दी। डॉ. अर्कहार्ट दर्शन शास्त्र के अत्यंत योग्य अध्यापक भी थे।

सुभाष अपने जीवन में कुछ नये अनुभव प्राप्त करना चाहते थे और कुछ नया और चुनौती पूर्ण करना चाहते थे। इस समय ब्रिटिश भारत सरकार ने इंडिया डिफेंस की फोर्स की एक विश्वविद्यालय स्तर पर प्रादेशिक सेना (टेरिटोरियल आर्मी) के गठन की स्वीकृति दे दी। इसमें भर्ती होने के मापदण्ड सेना में भर्ती करने जितने कड़े नहीं थे अतः इन्हें भर्ती कर लिया गया। इन्होंने 4 महीने के शिविर के जीवन और 3 सप्ताह का मसकट (छोटी बन्दूक) के अभ्यास के बाद बंगाली छात्रों के लिये बनी अवधारणा कि “बंगाली सेना में अच्छा प्रदर्शन नहीं करते” को गलत सिद्ध कर दिया।

कॉलेज के चौथे साल में सुभाष पूरी तरह से पढ़ाई में लग गये। 1919 में इन्होंने प्रथम श्रेणी में आनर्स पास किया। ये विश्व विद्यालय स्तर पर दूसरे स्थान पर रहे।

परिस्थितिवश इंग्लैण्ड जाने का निश्चय (1919)

दर्शन शास्त्र से बी. ए. करने के बाद सुभाष चन्द्र बोस का झुकाव प्रयोगात्मक मनोविज्ञान की ओर हो गया। उन्होंने महसूस किया कि उनके जीवन की समस्याओं के समाधान के लिये दर्शनशास्त्र उपयुक्त नहीं है। दर्शनशास्त्र से उनका मोह टूट चुका था अतः वो मनौविज्ञान से एम. ए. करना चाहते थे।

इनके पिता जानकी नाथ कलकत्ता आये हुये थे और इनके बड़े भाई शरत् चन्द्र के पास रुके हुये थे। एक शाम इनके पिता ने इन्हें बुलाया और कहा कि क्या वो आई.सी.एस. की परीक्षा देना चाहेंगे। अपने पिता के इस फैसले से इन्हें बहुत झटका लगा। इनकी सारी योजनाओं पर पानी फिर गया। इन्हें अपना निर्णय बताने के लिये 24 घंटे का समय दिया गया। इन्होंने कभी अपने सपने में भी अंग्रेज सरकार के अधीन कार्य करने के लिये नहीं सोचा था, लेकिन परिस्थतियों के सामने मजबूर होकर इन्होंने ये निर्णय ले लिया। इनके इस निर्णय के बाद एक सप्ताह के अन्दर ही पासपोर्ट बनवाकर इंग्लैण्ड जाने वाले जहाज पर व्यवस्था करा कर इनको भेज दिया गया। वो भारत से इंग्लैण्ड जाने के लिये 15 सितम्बर को रवाना हुये।

प्रशासनिक सेवा की तैयारी

इंग्लैण्ड जाकर आई.सी.एस. की परीक्षा देने के अपने पिता के फैसले को मानने के अलावा अन्य कोई रास्ता नहीं था अतः भाग्य के भरोसे ये इंग्लैण्ड चले गये। भारत से इंग्लैण्ड जाते समय इनके पास आई.सी.एस. की परीक्षा के लिये केवल 8 महीने थे और उम्र के अनुसार ये इनका पहला और आखिरी मौका भी था। इनका जहाज निर्धारित समय से एक हफ्ते बाद इंग्लैण्ड पहुँचा। ये 25 अक्टूबर को इंग्लैण्ड पहुँचे थे।

इंग्लैण्ड पहुँचने से पहले ही इनका अध्ययन सत्र शुरु हो गया जिससे किसी अच्छे कॉलेज में प्रवेश का मौका मिलना भी कठिन था। अतः अपनी इस समस्या को लेकर सुभाष चन्द्र बोस इंडिया हाऊस के भारतीय विद्यार्थियों के सलाहकार से मिलने गये। इस मुलाकात से इन्हें भी निराशा ही हाथ लगी। चारों ओर से किसी भी प्रकार के सहयोग की उम्मीद न होने पर ये सीधे कैंम्ब्रिज यूनिवर्सिटी गये। किट्स विलियम हॉल के सेंसर (परीक्षा में बैठने वाले छात्रों की योग्यता का आंकलन करने वाला बोर्ड) ने इनकी समस्याओं को देखते हुये प्रवेश कर लिया और 1921 जून में होने वाली परीक्षा के लिये छूट भी प्रदान कर दी।

सिविल परीक्षा निकट होने के कारण इन्होंने अपना सारा समय तैयारी में लगा दिया। मानसिक और नैतिक विज्ञान (आनर्स) की तैयारी के लिये लेक्चर लेने के साथ ही अपने पाठ्यक्रम से संबंधित इंडियन मजालिस और यूनियन सोसायटी के कार्यक्रमों में भाग भी लेते थे। अपने लेक्चर के घंटों के अतिरिक्त भी इन्हें पढ़ाई करनी पड़ती थी, जितनी मेहनत से ये पढ़ाई कर सकते थे उतनी मेहनत से पढ़ाई की। पुरानी सिविल सर्विस के रेंग्युलेसन के अनुसार इन्हें लगभग 8-9 अलग-अलग विषयों को पढ़ना होता था।

अपनी पढ़ाई के साथ-साथ ही इन्होंने वहाँ के बदले हुये परिवेश को बहुत ध्यान से देखा। इंग्लैण्ड में विद्यार्थियों को प्राप्त स्वतंत्रता, सम्मान और प्रतिष्ठा ने इन्हें बहुत प्रभावित किया क्योंकि यहाँ की परिस्थिति भारत की परिस्थितियों से बहुत ज्यादा अलग थी। ये यहाँ यूनियन सोसायटी के वाद-विवाद आयोजनों में सांसदों या मंत्रियों की उपस्थिति में बिना किसी डर के अपने विचारों को रखते थे। इन्होंने देखा कि राजनीतिक दलों में लेबर पार्टी के सदस्य भारतीय समस्याओं के लिये दया भाव रखते थे।

इंड़ियन सिविल सर्विस की परीक्षा जुलाई 1920 में शुरु हुई और लगभग एक महीने तक चली। सुभाष चन्द्र बोस को परीक्षा में पास होने की कोई उम्मीद नहीं थी अतः अपने घर के लिये चिट्ठी लिखी कि इन्हें अपने पास होने की कोई उम्मीद नहीं है और ये अगले साल की ट्राईपास की तैयारी में लगे हुये हैं। सितम्बर के मध्य में जब रिजल्ट आया तो इनके मित्र ने इन्हें तार द्वारा बधाई दी। अगले दिन इन्होंने अखबार में आई.सी.एस. के सफल उम्मीदवारों में अपना नाम देखा। इन्होंने योग्यता सूची में चौथा स्थान प्राप्त किया था।

आई.सी.एस. की परीक्षा का परिणाम देखने के बाद सुभाष चन्द्र बोस को पास होने की खुशी हुई क्योंकि ये अब अपने देश भारत वापस लौट सकते थे। लेकिन इस परीक्षा के पास होते ही अब एक विरोधाभास की स्थिति उत्पन्न हो गयी। ये स्वामी विवोकानंद और रामकृष्ण के आदर्शों को मानने वाले थे ऐसी स्थिति में इस नौकरी को करना अपने आदर्शों के खिलाफ समझते थे। इस विरोधाभास की स्थिति में बोस ने अपने बड़े भाई शरत् चन्द्र को पत्र लिखकर अपने नौकरी न करने के फैसले के बारे में बताया और उन्हें खत लिखने के 3 हफ्ते के बाद 22 अप्रैल 1921 को बोस ने सेक्रेटरी ऑफ स्टेट फार इंडिया ई.एस.मांटेग्यू को पत्र लिखकर परिवीक्षाधीन अफसरों (प्रोबेशनर्स) की सूची से अपना नाम वापस लेने की घोषणा कर दी।

आई.सी.एस. की नौकरी छोड़कर बोस ने इंग्लैण्ड के भारतीय समाज में हलचल मचा दी। चारों तरफ इनके इस निर्णय की चर्चा होने लगी। सुभाष इस वाहवाही और सनसनी दोंनो से बचना चाहते थे। ये कार्य तो बोस ने अपने आत्म सुधार के एक प्रयास के रुप में किया था। इस तथ्य को बोस ने अपने बड़े भाई को लिखे पत्र में स्पष्ट किया है–

“आपने अपने पत्रों में मेरे बारे में बहुत अच्छी-अच्छी बातें की है, जिनमें से जो मुझे मालूम है उनका मैं बहुत कम पात्र हूँ।………………..मैं जानता हूँ कि मैने कितनों का दिल तोड़ा है, कितने बड़ों की आज्ञा का उल्लंघन किया है लेकिन जोखिम भरी इस प्रतिज्ञा के समय मेरी यही प्रार्थना है कि ये सब हमारे प्यारे देश की भलाई में समा जाये।”

भारत आकर महात्मा गाँधी और देशबन्धु से मुलाकात

सुभाष चन्द्र मनोविज्ञान एवं नैतिक विज्ञान की ट्राइपास परीक्षा देने के तुरंत बाद जून 1921 में भारत वापस आ गये और राष्ट्रीय आन्दोलन में भाग लेने लगे। जिस जहाज से बोस भारत आ रहे थे उसी जहाज में रविन्द्र नाथ टैगोर भी थे। टैगोर जी ने इन्हें भारत में गाँधी से मुलाकात करने की सलाह दी थी। 16 जुलाई 1921 को बम्बई पहुँचने पर इन्होंने गाँधी जी से मुलाकात की। इस मुलाकात में बोस ने गाँधी के आन्दोलन की रणनीति और सक्रिय कार्यक्रम की स्पष्ट जानकारी जानना चाहते थे क्योंकि वो (गाँधी) आन्दोलन के सर्वोच्च नेता थे।

सुभाष चन्द्र बोस गाँधी से आन्दोलनों के उन निर्धारित क्रमबद्ध चरणों को जानना चाहते थे जिनका प्रयोग करके अंग्रेजों से सत्ता प्राप्त करने में सफल हो सके। इन्होंने आन्दोलन के प्रत्येक विषय से संबंधित सवालों की छड़ी लगा दी। गाँधी ने इनके सभी सवालों का जबाब धैर्य पूर्वक दिया लेकिन कर न देने की मुहिम से संबंधित सभी सवालों के जबाबों के अतिरिक्त और अन्य किसी भी आन्दोलन के स्पष्ट जबावों से वो बोस को सन्तुष्ट न कर सके।

महात्मा गाँधी से उनकी पहली मुलाकात बहुत अच्छी नहीं रही। वो जिन विषयों को जानना चाहते थे गाँधी उनसे संबंधित जबावों से सुभाष को आन्दोलनों की सही दिशा का ज्ञान नहीं हो पाया। कर न देने के आन्दोलन की रणनीति को छोड़कर अन्य किसी भी आन्दोलन की रणनीति प्रभावी नहीं थी। कुल मिलाकर गाँधी से मुलाकात निराशा जनक रही।

महात्मा गाँधी से मिलने के बाद ये तुरन्त सी.आर.दास (देशबन्धु) से मिलने के लिये कलकत्ता चले गये। पर इनकी मुलाकात देशबन्धु से नहीं हो पायी क्योंकि वो दौरे पर गये हुये थे। कुछ समय इंतजार करने के बाद इनकी भेंट दास से हुई जो बहुत हद तक निर्णायक भी रही। इन्होंने देशबन्धु जी से मुलाकात करके महसूस किया कि दास जानते हैं कि वो क्या करने जा रहें हैं और इसे प्राप्त करने के लिये कौन कौन सी रणनीतियों को अपनाने से सफलता मिलेगी। दास अपने लक्ष्य की उद्देश्यों की प्राप्ति के लिये अपना सब कुछ त्याग करने के लिये तैयार थे, जिसके कारण वो दूसरों को भी सर्वस्व त्याग के लिये मांग कर सकते थे।

सुभाष चन्द्र बोस देशबन्धु चितरंजन दास से मिलकर बहुत प्रभावित हुये। उनसे मिलकर बोस को ऐसा लगा कि अपने जीवन के उद्देश्य प्राप्ति के रास्ते के साथ-साथ गुरु भी प्राप्त कर लिया, जिसका ये जीवन भर अनुसरण कर सकेंगे। 1921 में देश के कोने कोने में तिहरे बहिष्कार की लहर थी। वकील न्यायालाय की प्रक्रिया में भाग न लेकर न्यायिक व्यवस्था का बहिष्कार कर रहे थे, छात्रों ने विद्यालयों में जाना छोड़ दिया, कांग्रेसी नेताओं ने विधान मंडल की प्रक्रिया में भाग लेना बन्द कर दिया। लोग इसमें बढ़-चढ़ कर भाग ले रहे थे। देशवासियों में राष्ट्र प्रेम की भावना उमड़ रही थी। ऐसे समय में देशबन्धु ने अपने नये युवा सहयोगी को तहे दिल से अपनाया और उन्हें बंगाल प्रान्त की कांग्रेस कमेटी तथा राष्ट्रीय सेवा दल का प्रचार प्रधान बनाने के साथ ही नये खुले नेशनल कॉलेज का प्रिंसीपल भी नियुक्त कर दिया। अपनी योग्यता और लगन से इतने सारे दायित्वों को कुशलता पूर्वक निभाकर बोस ने सभी को प्रभावित कर दिया।

नवम्बर 1921 में ब्रिटिश राजसिंहासन के वारिस प्रिंस ऑफ वेल्स की भारत आने की घोषणा की गयी। कांग्रेस ने प्रिंस के बम्बई में उतरने के दिन सम्पूर्ण हड़ताल का आयोजन किया। कलकत्ता में भी अन्य नगरों की तरह अवसर के अनुकूल प्रतिक्रिया हुई। ऐसा लगने लगा था कि जैसे सुभाष चन्द्र के नेतृत्व कांग्रेस के स्वंय सेवकों ने ही सारे शहर को सम्भाल लिया हो।

सुभाष चन्द्र बोस का आन्दोलन के मुखिया के रुप में चयन और गिरफ्तारी

जब ब्रिटिश सरकार ने प्रिंस के आने की घोषणा की तो सारे देश में जगह-जगह कांग्रेस के कार्यकर्ताओं द्वारा हड़तालों और बन्द का आयोजन किया गया, जिससे सरकार ने कांग्रेस सरकार को ही गैरकानूनी घोषित कर दिया। इस बात ने आग में घी डालने का कार्य किया। प्रदेश की कांग्रेस समिति ने सारे अधिकार अपने अध्यक्ष सी.आर.दास को सौंप दिये और इन्होंने बोस को आन्दोलन का मुखिया बना दिया। प्रान्त में आन्दोलन को संचालित करने में बोस ने अभूतपूर्व नेतृत्व क्षमता का प्रदर्शन किया।

आन्दोलन दिनों दिन बढ़ता ही जा रहा था। उस समय तो ये आन्दोलन और भी तेज हो गया जब सी.आर.दास की पत्नी वासन्ती देवी को उनकी सहयोगियों के साथ गिरफ्तार करके जेल में डाल दिया गया। इससे खुद की गिरफ्तारी देने वाले युवाओं और युवतियों की संख्या में बहुत तेजी से वृद्धि हुई। 1921 के दूसरे हफ्ते में देशबन्धु और सुभाष चन्द्र के साथ अन्य नेताओं को भी कैद कर लिया गया। उन्हें बाद में छह महीने की सजा हुई। स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेते हुये ये सुभाष चन्द्र बोस की पहली गिरफ्तारी थी।

भारतीय राजनीति के क्षेत्र में सुभाष का प्रशिक्षण

स्वदेश लौटने के बाद सुभाष भारत के दो महान राजनीति के नायक गाँधी व देशबन्धु से मिले। गाँधी से मिलने पर इन्हें निराशा मिली। लेकिन जब ये देशबन्धु सी.आर.दास से मिले तो उनके विचारों और कार्यों से इतने प्रभावित हुये कि उन्हें अपना गुरु बना लिया। एक सच्चे शिष्य की भाँति वो देशबन्धु के पद चिन्हों पर चलने लगे। शीघ्र ही इन्होंने अपने नेतृत्व के द्वारा अपनी योग्यता का लोहा मनावा लिया।

कलकत्ता में कांग्रेस के बहिष्कार आन्दोलन के दौरान देशबन्धु और बोस के साथ अन्य सदस्यों को गिरफ्तार करके जेल में डाल दिया गया। इन्हें कलकत्ता की अलीपुर सेंट्रल जेल में रखा गया। यहाँ देशबन्धु के सानिध्य में रहकर इन्होंने उनके नेतृत्वकारी गुणों का गहन विश्लेषण किया तथा ये जानने के कोशिश की किन कारणों से सभी लोगों तथा अपने अनुयायियों पर उनका आकर्षण छाया रहता है। बोस के आने वाले जीवन में उनका ये अनुभव बहुत उपयोगी साबित हुआ। बंगाल के नेतृत्व के दायित्व के समय तथा आजाद हिन्द फौज के गठन के समय इस अनुभव से इन्हें बहुत ज्यादा सहायता मिली। बंदी जीवन में देशबन्धु के साथ निकटता से बोस को उनके व्यक्ति पक्ष को समझने का मौका मिला। चितरंजन दास का मानना था कि जिंदगी राजनीति से बड़ी है और जीवन के हर उतार-चढ़ाव में ये इस पर पूरी तरह से अमल भी करते थे।

कांग्रेस में गतिरोध व स्वराज्य पार्टी का गठन

1922 में चौरी-चौरा कांड के बाद गाँधी ने असहयोग आन्दोलन को वापस ले लिया। उस समय सुभाष चन्द्र बोस और देशबन्धु दोनों जेल में थे। उन दोनों को ही इस निर्णय से बहुत दुख हुआ। लोगों में उमड़ती हुई आशा, निराशा में बदल गयी।

दिसम्बर 1922 में कांग्रेस का गया (बिहार) अधिवेशन आयोजित किया गया। इसकी अध्यक्षता सी.आर.दास ने की। इस अधिवोशन में कांग्रेस के सभी सदस्यों मे कुछ मुद्दों पर गतिरोध उत्पन्न हो गया। देशबन्धु के समर्थक परिवर्तन चाहते थे और गाँधी के समर्थक किसी प्रकार का परिवर्तन नहीं चाहते थे। देशबन्धु का प्रस्ताव गिर गया और उनकी अध्यक्ष के रुप में स्थिति कमजोर हो गयी। दूसरी तरफ मोती लाल नेहरु ने कांग्रेस मुक्त स्वराज पार्टी के गठन की घोषणा कर दी। इस तरह देशबन्धु कांग्रेस से अलग होकर स्वराज्य पार्टी के अध्यक्ष नियुक्त किये गये। सुभाष चन्द्र इन सभी गतिविधियों में अपने गुरु के साथ थे।

1923 के मध्य में स्वराज्य पार्टी ने अपनी नेतृत्व से संगठन को मजबूत आधार दिया। इसी साल देशबव्धु की अध्यक्षता और सुभाष के प्रबंधन में दैनिक अंग्रेजी पत्र “फारवर्ड” का प्रकाशन किया। जो बहुत ही कम अवधि में देश का प्रमुख दैनिक पत्र बन गया। बोस ने स्वराज्य के कार्यों के साथ ही युवा संगठन की योजना को भी आगे बढ़ाया। इन्होंने ऑल बंगाल यूथ लीग का भी गठन किया, जिसका अध्यक्ष भी इन्हीं को बनाया गया। 1923 में ही इन्हें पार्टी संगठन ने एक महत्वपूर्ण पद प्रदान किया। इन्हें बंगाल प्रदेश कांग्रेस कमेटी का महासचिव बना दिया गया।

कलकत्ता नगर निगम मुख्य कार्यकारी अध्यक्ष के रुप में

1924 के कलकत्ता नगर निगम के घोषित चुनावों में स्वराज्य पार्टी ने भाग लेने का निश्चय किया जिसमें हिन्दू तथा मुस्लिम सीटों पर पर्याप्त बहुमत मिला और देशबन्धु प्रथम महापौर चुने गये। देशबन्धु के आग्रह पर सुभाष चन्द्र वोस को मुख्य कार्यकारी अधिकारी नियुक्त किया गया। अंग्रेज सरकार इस नियुक्ति से बहुत ज्यादा चिढ़ गयी और इन्हें मंजूरी प्रदान करने में बहुत आनाकानी की।

बोस द्वारा मुख्य कार्यकारी अधिकारी के रुप में किये गये कार्यों के द्वारा भारत में नागरिक उन्नति के नये युग की नींव रखी गयी। पहली बार ख़ादी नगर निगम के कर्मचारियों की वर्दी बनी, ब्रिटिश (बरतानवी) नामों से प्रसिद्ध कई सड़कों और पार्कों के नाम महान भारतीय व्यक्तित्वों के नाम पर रखे गये, एक योग्य शिक्षा अधिकारी की देखभाल में निगम शिक्षा विभाग की स्थापना की गयी, निःशुल्क प्रारम्भिक शिक्षा की शुरुआत हुई, नगर निगम द्वारा संचालित स्वास्थ्य समितियाँ गठित की गयीं, गरीबों के लिये प्रत्येक मंडल में फ्री मेडिकल स्टोर खोले गये और कुछ स्थानों पर बाल चिकित्सालय भी खोले गये जहां जरुरतमंद बच्चों को दूध भी दिया जाता था।

सुभाष चन्द्र बोस हर जगह इन योजनाओं के क्रियान्वयन का निरीक्षण करते रहते और इन सभी आवश्यकताओं के अतिरिक्त जल आपूर्ति, विद्युत आपूर्ति, सड़क मरम्मत के कार्यों का भी निरीक्षण करते थे। थोड़े ही समय में इन्होंने नगर निगम के कार्यों को नयी दिशा दे दी। जगह-जगह सम्मान समारोह में आने वाले उच्च पद के ब्रिटिश अधिकारियों के स्थान पर शहर में आने वाले राष्ट्रवादी नेताओं का स्वागत सत्कार किया जाने लगा। जन-जागृति के लिये “कलकत्ता म्यूनिसिपल गैजेट” सप्ताहिक पत्र का प्रकाशन शुरु कर दिया गया। सुभाष चन्द्र बोस अपने खर्च के लिये आधा वेतन रखकर शेष दान कर देते थे।

सुभाष चन्द्र बोस का निर्वासन

स्वराज्य पार्टी के बढ़ते हुये प्रभुत्व को अंग्रेज सरकार किसी भी तरह हजम नहीं कर पा रही थी। अंग्रेज कैसे भी करके इसकी नींव को खोखली करना चाहते थे। कार्यकारी अध्यक्ष के रुप में सुभाष द्वारा किये गये कार्यों से आग में घी डालने का काम किया। उनकी बढ़ती हुई ख्याति ने सरकार की नींद उड़ा दी। वो जानते थे कि देशबन्धु और बोस के साथ को तोड़े बिना स्वराज पार्टी को कमजोर करना नामुमकिन है अतः वो एक ऐसे ही मौके की तलाश में जुट गये। 25 अक्टूबर 1924 की सुबह ही उन्हें सूचना दी गयी कि कलकत्ता पुलिस कमीशनर ने उन्हें बुलाया है। कमीशनर ने उनके आने पर उनसे कहा कि 1818 के कानून की धारा 3 के तहत उनकी गिरफ्तारी का वारंट है। बोस के साथ ही दो अन्य स्वराज्यवादी सदस्यों को भी गिरफ्तार किया गया।

1924 मे बोस की गिरफ्तारी के साथ ही और भी बहुत गिरफ्तारियाँ की गयी। जिसके लिये सरकार ने ये सफाई दी की एक क्रान्तिकारी षड़यन्त्र की योजना बनायी जा रही है जिसके तहत ये गिरफ्तारियाँ की जा रही है। दो अंग्रेजी अखबारों ने तो इस घोषणा से भी बढ़कर आरोप लगाया कि क्रान्तिकारी षड़यन्त्र के पीछे बोस का दिमाग है। सुभाष ने इन अखबारों पर मानहानि का केस कर दिया। सरकार और उसके नियंत्रण में चलने वाली ये प्रेस अपने आरोपों के पक्ष में कोई भी तथ्य पेश नहीं कर पायी, फिर भी इन पर बिना मुकदमा चलाये बोस के साथ-ही बंगाल के कई बड़े नेता को कैद में डाल दिया।

सुभाष चन्द्र बोस को कुछ सप्ताह के लिये अपने शासकीय कार्यों को पूरा करने का समय देने के साथ ही उनके साथ दो पुलिस अधिकारियों को नियुक्त कर दिया गया। अंग्रजों ने इनके कार्यों के पूरा होते ही इन्हें निर्वासित जीवन व्यतीत करने के लिये मांडले जेल (रंगून) भेज दिया। कारागार की परिस्थितियाँ तथा जलवायु के कारण इनका स्वास्थ्य खराब रहने लगा जिससे इन्हें निमोनिया हो गया। वहां के मेडिकल बोर्ड ने जाँच के बाद सलाह दी कि इन्हें जेल में रखना ठीक नहीं होगा, जिसके बाद इन्हें इनशीन जेल में भेज दिया। उस जेल के अधिक्षक ने सरकार को इनके स्वास्थ्य के संबंध में सूचना दी लेकिन सरकार ने कोई कार्यवाही नहीं की साथ ही ये संदेश दिया कि यदि सुभाष भारत आये बिना रंगून से ही अपने इलाज के लिये यूरोप चले जाये तो वो उन्हें रिहा कर सकती है।

सुभाष ने ये शर्त ये कहते हुये मानने से इंकार कर दिया कि वो अपने जीवन से भी ज्यादा अपने सम्मान से प्यार करते है और वो किसी ऐसे अधिकारों के साथ कोई सौदा नहीं कर सकते जो आने वाले समय की कूटनीति का आधार बनने वाले हैं। जिस पर सरकार ने उन्हें अल्मोड़ा जेल में रखने का आदेश दिया। मई 1927 को डायमंड हार्बर पर उनकी मेडिकल जाँच करायी गयी जिसमें इनके अस्वस्थ्य होने की पुष्टि की गयी। इसके बाद इन्हें अगली सुबह रिहा कर दिया गया।

बंगाल कांग्रेस के अध्यक्ष के रुप में कार्य (1927-1930)

अपनी अस्वस्थ्यता के चलते सुभाष ने किसी भी राजनैतिक कार्यवाही में भाग न लेकर अपने परिवार के साथ समय व्यतीत किया। जिस समय ये शारीरिक अस्वस्थ्यता के कारण मांडले जेल से रिहा किये गये थे उस समय बंगाल प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष थे। स्वस्थ्य होने के साथ ही ये अपने कार्यों में लग गये। उस समय भारतीय राजनीति उतार-चढ़ाव के रास्ते पर थी क्योंकि 1928 में ही साइमन की अध्यक्षता में एक सम्पूर्ण आंग्ल आयोग की नियुक्त की गयी थी, जिसका उद्देश्य था किसी भी प्रकार के समझौते को करके भारत में अंग्रेजी शासन को बनाये रखना। लेकिन कांग्रेस इसका बहिष्कार करने के लिये पहले से ही तैयार थी।

कांग्रेस ने भी अपने कार्यों को नयी दिशा देने के लिये अपनी कार्यकारी समिति में सुभाष चन्द्र बोस, जवाहर लाल नेहरु तथा शोएब को महासचिव के रुप में नियुक्त किया। इसी कार्यकारी समिति के आह्वान पर साइमन कमीशन के भारत आगमन पर पूरे देश में हड़तालों का आयोजन किया गया। जिसमें बंगाल प्रान्त में हड़तालों का नेतृत्व सुभाष चन्द्र बोस ने किया।

ये वह समय था जब देश को अपने सभी नेताओं के सामूहिक नेतृत्व की आवश्यकता थी लेकिन महात्मा गाँधी इस समय सक्रिय राजनीति से अवकाश पर थे, इसलिये बोस महात्मा गाँधी से मिलने के लिये गये। उन्होंने महात्मा गाँधी से आन्दोलन के नेतृत्व को दिशा देने के लिये कहा परन्तु उन्होंने मना कर दिया।

सुभाष चन्द्र ने देशवासियों को आन्दोलन की सही दिशा में नेतृत्व के लिये जागरुक व एकजुट करने के लिये देशव्यापी दौरे करने शुरु कर दिये। अपने दौरे के क्रम में वो जब पूणे पहुँचे तो वहाँ उन्होंने अपना एतिहासिक भाषण देते हुये कहा कि– “कांग्रेस को श्रमिक संगठन में सीधे उतर जाना चाहिये। अपने-अपने सामुदायिक एंव राष्ट्रीय लक्ष्यों को सामने रखकर महिलाओं, युवाओं और विद्यार्थियों को भी अपने-अपने स्वाधीन संगठन बनाने चाहिये।”

नवम्बर 1928 को स्वाधीन भारतीय संघ स्वतंत्र भारतीय लीग (इंडिपेंडेंस ऑफ इण्डिया लीग) का उद्घाटन हुआ। इसका संयुक्त नेतृत्व सुभाष चन्द्र बोस और जवाहर लाल नेहरु ने संभाला। 1928 को जमशेदपुर टाटा कम्पनी के श्रमिक हड़ताल पर चले गये। इन श्रमिकों की हड़ताल का नेतृत्व बोस ने किया और इसे एक विशाल पैमाने तक बढ़ाया।

कांग्रेस की कार्यकारी समिति ने 26 जनवरी को स्वाधीनता दिवस मनाने की घोषणा करने के साथ ही पूर्ण स्वराज्य की माँग भी रखी। 1930 को पहली बार भारतवासियों ने 26 जनवरी का दिन पूरे उत्साह के साथ मनाया। इसके साथ ही सुभाष चन्द्र बोस ने अपने सैन्य कार्यक्रमों को आगे बढ़ाते हुए कांग्रेस डेमोक्रेटिक पार्टी का गठन किया। इन सभी योजनाओं को कार्यान्वित करने से पहले ही इन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और एक साल की कड़ी सजा सुनायी।

कलकत्ता के महापौर के रुप में कार्य

बोस के नेतृत्वकारी गुणों, उनके विचारों और उनके द्वारा किये गये कार्यों से अंग्रेज सरकार के मन मे भय बैठ गया। जब वो लाहौर से कलकत्ता आ रहे थे उसी समय उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और एक साल के कठोर कारावास की सजा सुनायी और इन्हें कलकत्ता जेल में रखा गया। इस समय गाँधी जी का नमक सत्याग्रह आंदोलन बड़े जोरों से चल रहा था। बोस को जगह-जगह से आन्दोलन के सफल होने की सूचना मिली। वो अपने साथी बन्दियों के साथ इस सफलता की खुशियाँ मनाते। इस बात से जेल अधिकारी इनसे चिढ़ गये और इनकी उससे झड़प हो गयी। जेल अधिक्षक ने इनके साथियों के साथ ही इन्हें भी बहुत बुरी तरह से पीटा लेकिन इनके उत्साह को कम नहीं कर पाया।

कलकत्ता जेल में रहते हुये ही सुभाष चन्द्र बोस को कलकत्ता नगर निगम का महापौर चुना गया। महापौर चुने जान के बाद भी इन्हें लगभग 1 साल बाद जेल से आजाद किया गया। इनके जेल से आजाद होने के बाद सभा का आयोजन किया गया जिसमें देशमुख सी.आर.दास द्वारा किये गये कार्यों को याद करके बहुत भावुकता पूर्ण भाषण दिया। 1924-1930 तक का समय कलकत्ता के विकास का चर्मोत्कर्ष था। 1924-30 के बीच के समय में प्रत्येक राष्ट्रीय उत्सव को भव्य समारोह के रुप में मनाया जाता था। इस कार्यक्रम में उन्होंने अपनी भावी योजनाओं की घोषणा की।

26 जनवरी 1931 को दूसरे स्वाधीनता दिवस के अवसर पर रैली को आयोजित किया गया। जिसमें कलकत्ता नगर निगम के वरिष्ठ अधिकारियों ने भी भाग लिया। सुभाष चन्द्र बोस रैली की अगुवायी करते हुये नगर निगम मुख्यालय से मैदान की ओर चले कुछ दूर जाने पर घुड़सवार पुलिस कर्मियों की शक्तिशाली टुकड़ी ने उन पर हमला कर दिया और बड़ी क्रूरता से लाठी चार्ज करने लगे। उन्होंने बोस को बहुत बुरी तरह से पीटा और गिरफ्तार कर लिया। इस गिरफ्तारी के बाद सुभाष चन्द्र बोस को मार्च 1931 में रिहा किया गया। जेल से बाहर आने के बाद बोस गाँधी से मिलने गये और भावी आन्दोलन की रुप- रेखा तैयार की।

सविनय अवज्ञा आन्दोलन की पुनः शुरुआत

1931 में गाँधी-इरविन समझौते में जो शर्तें सरकार द्वारा मानी गयी थी उनका सरकार ने खुद उल्लंघन करना शुरु कर दिया। अतः महात्मा गाँधी, जवाहर लाल नेहरु और सुभाष चन्द्र बोस ने परस्पर सहमति से पुनः सविनय अवज्ञा आन्दोलन को प्रारम्भ करने का निर्णय लिया। लेकिन इस बार सरकार पहले से ही इस आन्दोलन को विफल करने के लिये तैयार थी, अतः जनवरी 1932 की शुरुआत से से ही सरकार ने काँग्रेस और अन्य राष्ट्रवादी स्वंय सेवक संघों के सदस्यों को गिरफ्तार करना शुरु कर दिया साथ ही इन राजनैतिक बंदियों को अलग-अलग गुप्त जेलों में रखा गया।

सुभाष चन्द्र बोस को भी गिरफ्तार करके सिवानी की एक छोटी जेल में रखा गया। कुछ दिन बाद इनके बड़े भाई शरत् चन्द्र को भी गिरफ्तार करके इसी जेल में रखा गया। इस दौरान देश की राजनीति में भारी उथल-पुथल चल रही थी। सुभाष चन्द्र बोस 1930 की ही तरह 1932 में जेल की सलाखों के पीछे से मूक दर्शक बने इन घटनाओं को देख रहे थे।

ब्रिटिश सरकार ने भारतीय एकता को छिन्न-भिन्न करने के लिये अगस्त 1932 में कम्युनल अवार्ड के आयोजन की घोषणा की जिसके अन्तर्गत दलित वर्गों और अन्य राष्ट्रीय स्तर के अल्पसंख्यकों के लिये आरक्षण और पृथक निर्वाचन करने की चाल चली। ब्रिटिश सरकार की ये चाल सफल रही और उन्होंने कांग्रेस के सविनय अवज्ञा के आन्दोलन के रुख को अस्पृश्यता विरोधी आन्दोलन की तरफ मोड़ दिया। जेल में कैद बोस इस बेबसी के साथ उदास रहने लगे।

खराब स्वास्थ्य के कारण यूरोप प्रवास

सिवानी की जेल में रहते हुये सुभाष चन्द्र बोस और इनके भाई शरत् चन्द्र का स्वास्थ्य में तेजी से गिरावट होनी शुरु हो गयी। जिसके कारण दोनों भाईयों को जबलपुर जेल में भेज दिया गया। लेकिन यहाँ भी बोस के स्वास्थ्य में कोई सुधार नहीं हुआ तो इन्हें पहले मद्रास, भुवाली और अंन्त में लखनऊ भेजा गया। लेकिन न तो इनके स्वास्थ्य में ही कोई सुधार हुआ और न ही इनकी बीमारी का ही पता चला।

बोस की भाभी विभावती (शरत् चन्द्र की पत्नी) ने इनके स्वास्थ्य सम्बन्धी अनेक अर्जियाँ दिल्ली सरकार को भेजी लेकिन सरकार की ओर से इनके पक्ष में कोई भी फैसला नहीं लिया गया। सरकारी अफसरों का रुख इनकी ओर वैमनस्य पूर्ण (शत्रुता से भरा हुआ) रहा। बहुत ज्यादा स्वास्थ्य गिरने पर बोस को यूरोप भेज कर इलाज कराने की अनुमति दे दी गयी। लेकिन साथ ही सरकार, सरकारी खर्च पर इनका इलाज कराने से मुकर गयी।

13 फरवरी 1933 को सुभाष चन्द्र बोस को इतावली जलपोत गैजी से यूरोप भेज दिया गया। मार्च 1933 में ये वियना पहुँचे जहाँ इनकी भेंट एक योग्य चिकित्सक से हुई। उसके इलाज से थोड़े से समय में ही स्वस्थ्य होने लगे। बोस थोड़े से स्वस्थ्य होते ही भारतीय स्वाधीनता के मिशन को आगे बढ़ाने के लिये यूरोपीय राजनीति में भाग लेने लगे।

यूरोप में भारतीय राष्ट्रीयता के गैर सरकारी दूत के रुप में

भारत सरकार ने इन्हें यूरोप भेजते समय केवल आस्ट्रिया और ईटली का ही वीजा दिया ताकि ये ब्रिटेन सहित अन्य देशों में यात्रा न कर सके। सरकार इन्हें किसी भी हाल में इंग्लैण्ड और जर्मनी से दूर रखना चाहती थी, क्योंकि इन देशों में बहुत अधिक संख्या में भारतीय विद्यार्थी उच्च स्तर पर तकनीकी शिक्षा ले रहे थे और सरकार को डर था कि कहीं बोस इन देशों के छात्र समुदाय को अपनी परिवर्तनवादी सैन्य विचारधारा से प्रभावित करके अपनी ओर न कर ले। अतः सरकार ने केवल दो देशों का वीजा देकर इनके कार्यक्षेत्र को छोटा कर दिया।

यूरोप में रहने के दौरान सुभाष चन्द्र बोस ने भारतीय राष्ट्रीयता के गैर सरकारी दूत के रुप में कार्य किया। इस कार्य का प्रारम्भ इन्होंने आस्ट्रिया में किया क्योंकि ये अन्य देशों में नहीं जा सकते थे। लेकिन इनके इस कार्य का क्षेत्र पौलैण्ड, स्वीट्जरलैण्ड, इटली, फ्रांस, जर्मनी और इंग्लैण्ड आदि देशों तक फैल गया। राजनीति के क्षेत्र के साथ ही बोस बौद्धिक दल के लोगों के साथ भी सम्पर्क में थे। वो ऐसे व्यक्तियों के साथ पत्र व्यवहार करते थे जो साहित्य, इतिहास, अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक क्षेत्र से संबंधित थे।

विएना में रहते हुये बोस ने ‘आस्ट्रिया-भारत संघ’ की स्थापना की। प्राग जाकर इन्होंने चेकोस्लाविया के विदेश मंत्री, एडुअर्ड बेंस से मुलाकात की और महत्वपूर्ण राजनीतिक मुद्दों पर विचार-विमर्श किया। इन्होंने “चेकोस्लाविया-भारत समिति (1934)” के गठन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई साथ ही इसके उद्घाटन पर भाषण भी दिया।

1934 के अंत में इन्हें अपने पिता की मृत्यु की सूचना मिली। बोस अपने पिता के अन्तिम दर्शन के लिये भारत आये लेकिन ड़ेढ़ दिन की देरी होने के कारण ये पिता को आखिरी बार भी देख नहीं पाये। ब्रिटिश सरकार ने इन्हें कलकत्ता पहुँचते ही एलगिन रोड वाले घर में नजर बंद कर दिया गया। बोस इस कैद में लगभग 1 महीने तक रहे और जनवरी 1935 में दोबारा यूरोप लौट गये।

एमिली शेंकल से विवाह

आस्ट्रिया में इलाज के लिये रुकने के दौरान इन्होंने कई पत्र और पुस्तकें लिखी थी, जिन्हें इंग्लिश में टाइप करने के लिये एक टाइपिस्ट की आवश्यकता महसूस हुई। इन्होंने इस संबंध में अपने एक मित्र से बात की जिस पर इनके मित्र ने इनका परिचय एमिली शेंकल से कराया। इन्हें स्वभाविक आकर्षण के कारण एमिली से प्रेम हो गया और 1942 में बोस ने शेंकल से विवाह कर लिया। इनका विवाह बाड गास्टिन स्थान पर हिन्दू रीति-रिवाजों के अनुसार हुआ। इस विवाह से इनके एक पुत्री भी हुई जिसका नाम अनीता बोस रखा गया।

कांग्रेस के अध्यक्ष के रुप में (1938-1939)

सुभाष चन्द्र एक लम्बी बीमारी और यूरोप में उपचार के बाद वर्ष 1938 के अन्त में भारत लौट कर आये। कलकत्ता में इनका भव्य स्वागत हुआ। इनके भारत लौटने के साथ ही इन्हें कांग्रेस अध्यक्ष बनाने की अटकलें लगायी जाने लगी। कांग्रेस समिति में सी.आर.दास के बाद कोई भी बंगाल प्रान्त से अध्यक्ष नहीं चुना गया था। कांग्रेस के 51वें अधिवोशन में सुभाष चन्द्र बोस को कांग्रेस समिति का अध्यक्ष निर्वाचित किया गया।

सुभाष चन्द्र बोस अध्यक्ष निर्वाचित होते ही कांग्रेस की जड़ों को मजबूत करने में लग गये। अपने कार्यक्षेत्रों को बढ़ाने के साथ ही इन्होंने इस बात का विशेष ध्यान रखा कि ब्रिटिश सरकार द्वारा कांग्रेस के सदस्यों को किसी भी परिस्थिति में न तो कमजोर किया जा सके और न ही झुकाया जा सके। इन्हीं सब बातों को ध्यान में रखकर बोस ने देश का व्यापक दौरा किया। ये भारतीय जनता को बड़े पैमाने पर राष्ट्रीय संघर्ष के लिये तैयार कर रहे थे। पार्टी अध्यक्ष के रुप में ये सभी बैठकों में निष्पक्षता और कर्तव्य निष्ठा के साथ निर्णय लेते थे।

इनके राष्ट्रवादी विचारों के कारण गाँधी के विरोध के बाद भी इन्हें कांग्रेस का लगातार दूसरी बार अध्यक्ष चुना गया। इनके विपक्ष में गाँधी ने पट्टाभिसीता रमैया को खड़ा किया था जिनको बोस ने 200 वोटों के भारी अन्तर से हराया। चुनाव हाने तक तो गाँधी चुप थे लेकिन चुनाव के परिणाम घोषित होने पर महात्मा गाँधी ने घोषणा की कि सीता रमैया की हार उनकी हार है और वो इन चुनावी परिणामों से संतुष्ट नहीं है। अतः जब तक दोबारा चुनाव नहीं कराये जाते तब तक वो आमरण अनशन पर रहेंगे। बोस ने गाँधी को मनाने की बहुत कोशिश की लेकिन सभी प्रयास बेकार साबित हुए। अंत में परिस्थितियों से मजबूर होकर नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन के बाद अध्यक्ष पद से अपना इस्तीफा दे दिया। इस इस्तीफे ने उनके जीवन के एक महत्वपूर्ण अध्याय के अंत के साथ ही स्वाधीनता संग्राम में एक नये प्रयोग के शुभारम्भ की कहानी लिखी।

फारवर्ड ब्लाक की स्थापना (3 मई 1939)

29 अप्रैल 1939 को कांग्रेस से इस्तीफा देने के बाद बोस ने 3 मई 1939 को अपनी अलग पार्टी की स्थापना की। ये पार्टी लोगों को स्वाधीनता संग्राम के प्रति जागरुक करने के लिये एक नया साधन बनकर सामने आयी। इस पार्टी के नाम से बोस एक साप्ताहिक पत्रिका का सम्पादन भी करते थे। इस पत्रिका के लेखों में देश भर में हो रही सप्ताह भर की गतिविधियों का संक्षिप्त व आलोचना पूर्ण विवरण होता था। इस प्रकार वो लोगों में जन-चेतना का संचार करने लगे।

प्रथम विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटेन द्वारा जर्मनी के लिये अपनायी गयी तुष्टि पूर्ण नीतियों के कारण जर्मनी के शासक हिटलर ने मित्र राष्ट्रों के खिलाफ युद्ध की घोषणा कर दी। सुभाष चन्द्र बोस भी इस मौके का लाभ लेकर भारत को पूर्ण स्वतन्त्रता दिलाना चाहते थे क्योंकि ब्रिटेन इस समय बहुत कमजोर स्थिति में था। इन्होंने अपनी पार्टी के दूसरे सम्मेलन में देश की जनता के लिये “ऑल पावर टू इंडियन पीपूल” का नारा दिया। बोस चाहते थे कि भारत भी इंग्लैण्ड के खिलाफ युद्ध में भाग लेकर अपनी स्वतंत्रता के लिये संघर्ष करे। इसके लिये वो गाँधी के पास भी गये। लेकिन गाँधी ने ऐसा कोई भी कदम लेने से इंकार कर दिया।

दूसरी तरफ इनकी योजनाओं और विचारों से सरकार परेशान थी। वो बोस को कैद करने के मौकों को तलाशने लगी। इस दौरान इन्होंने स्वंय सेवकों के एक दल का नेतृत्व करते हुये हालवोट स्तम्भ के चारों ओर सत्याग्रह आन्दोलन किया। ब्रिटिश सरकार को तो जैसे बोस को फिर से कैद करने का बहाना मिल गया हो, उन्होंने बिना किसी देरी के सुभाष को डिफेंस ऑफ इंडिया रुल्स के तहत गिरफ्तार कर लिया गया और कलकत्ता की प्रेजीडेंसी जेल में डाल दिया साथ ही राजद्रोह के दो अन्य मुकदमें भी लगा दिये।

सुभाष को पूरा विश्वास था कि युद्ध ब्रिटिश शासन को जड़ से उखाड़ सकता है। लेकिन इस बार वो पहले की तरह जेल की सलाखों के पीछे निष्क्रिय पड़े रहकर ये सब नहीं देखना चाहते थे अतः इन्होंने सरकार को चुनौती दी कि उन्हें जेल में रखने के पीछे सरकार के पास कोई वैधानिक कारण नहीं है। यदि उन्हें मुक्त नहीं किया गया तो वो आमरण अनशन कर देंगें। इस बात को सरकार ने गम्भीरता से नहीं लिया। जेल में एक हफ्ते के अनशन के दौरान इनका स्वास्थ्य फिर से खराब होने लगा। बंगाल सरकार ने भयभीत होकर उच्च अधिकारियों की एक गुप्त बैठक बुलायी जिसने ये निर्णय लिया गया कि जब तक ये स्वस्थ्य नहीं हो जाते तब तक के लिये छोड़ दिया जाये और स्वास्थ्य होते ही पुनः जेल में डाल दिया जाये। इस निर्णय के साथ ही इन्हें आजाद कर दिया गया।

देश से पलायन

सरकार ने कथित तौर पर सुभाष चन्द्र को आजाद तो कर दिया लेकिन वो किसी भी तरह का जोखिम नहीं लेना चाहती थी। अतः बोस को इनके ही घर में नजरबंद कर दिया गया। जेल से बाहर आने के साथ ही बोस देश से बाहर निकलने के उपायों में जुट गये। पुलिस की नजर बंदी से निकलकर देश की सीमा पार करना बहुत ही जोखिम भरा काम था। इसके लिये इन्होंने अपने भतीजे शिशिर बोस के साथ एक गुप्त योजना बनायी। जिसके तहत इन्होंने अपने परिवार जनों को कहा कि वो कुछ समय के लिये एकांतवास में रहना चाहते हैं। जिस दौरान ना वो किसी से मिलेंगें, न बात करेंगें और न ही किसी को कोई पत्र लिखेंगे।

इस प्रकार योजना बनाकर घर वालों को अपने एंकातवास की सूचना देकर एक दिन पहले ही परिवार वालों से विदा ले लिया। ये सब कार्य बहुत ही गुप्त रुप से किया गया। 17 जनवरी 1941 को रात के करीब 1:30 बजे वो अपने भतीजे शिशिर के साथ धनबाद पहुँचे। वहाँ से अपने बड़े भतीजे अशोक (शरत् चन्द्र के बड़े बेटे) के साथ से दिल्ली कालका मेल की गोमोह स्टेशन से टिकट लेकर आगे का रास्ता अकेले तय किया। इसके बाद वो 19 जनवरी 1941 को दिल्ली से पेशावर के लिये रवाना हो गये।

वो पेशावर एक मुस्लिम भेष व मुस्लिम नाम, मोहम्मद जियाउद्दीन के नाम से गये। यहाँ योजनानुसार इनकी मुलाकात अकबर शाह से हुई। यहाँ करीब 6 दिन तक रहने के बाद यहाँ से काबुल (अफगानिस्तान) की यात्रा भगतराम तलवार के साथ की। अफगानिस्तान जाते समय बोस ने एक पठान का रुप ले लिया था। अब वो भगतराम के गूँगे बहरे चाचा थे, जिन्हें इलाज के लिये पहले दरगाह ले जाना था और बाद में काबुल। 31 जनवरी 1941 को दुर्गम रास्तों को पार करते हुये काबुल पहुँच गये।

अफगानिस्तान में प्रवासी का जीवन

काबुल पहुँचने के बाद वो दोनों लाहौरी गेट के पास सराय में रुके। वहाँ इन्हें लगातार ब्रिटिश गुप्तचरों की नजर में आने का भय बना रहता था। इस बीच वो रुस के दूतावास में प्रवेश करने की योजना बनाने लगे, लेकिन कोई सफलता नहीं मिली। सरायों में रहना खतरे से खाली नहीं था अतः वो भारतीय व्यापारी उत्तम चन्द के घर मेहमान के रुप में रहें।

6 फरवरी को जर्मन दूतावास लीगेशन के मिनिस्टर पिल्गर से मिले जिसने इनकी कोई भी मदद करने में असमर्थता व्यक्त की। लेकिन जर्मन कम्पनी सीमंस के साथ परिचय कराया। 23 फरवरी को इन्हें सीमंस के ऑफिस से इटली दूतावास के मिनिस्टर अलबर्टों करोनी से संपर्क करने का संदेश मिला। करोनी से सम्पर्क करके इन्होंने अपनी रणनीति को व्यक्त किया। जिससे 17 मार्च को एक इटली राजनयिक के रुप में प्रस्थान किया।

फ्री इंडिया सेंटर की स्थापना

जर्मनी पहुँचने के बाद सुभाष ने निर्वासित भारतीयों, छात्रों जर्मन राजनयिकों से सम्पर्क स्थापित करना शुरु कर दिया। लोगों से मैत्रीपूर्ण सम्पर्क जोड़ने और अपने विचारों के अनुयायी वर्ग में वृद्धि करने के लिये इनहेंने विभिन्न देशों का भ्रमण भी किया। जिनमें मुख्य रुप से इटली, आस्ट्रिया तथा फ्रांस शामिल था।

बोस ने अपने विचारों से जर्मन के राजनयिक वर्ग को बहुत प्रभावित किया। अपने इन प्रयासों के कारण वो सूचना विभाग में “वर्किंग ग्रुप इंडिया” को गठित करने में सफल हुये जो बाद में “स्पेशल इंडिया डिपार्टमेंट” बना और इसका नियंत्रण सीधे वान ट्राट और वर्ट को दिया गया। जर्मन के विदेश कार्यालय और जर्मन सैनिक कमान में इनकी लोगों से मित्रता बढ़ती चली गयी।

बोस ने अपने इन्ही सम्पर्कों की सहायता से 1941 में बर्लिन में “फ्री इंडिया सेंटर” की स्थापना की। इस सेंटर की स्थापना में इनके कुछ विश्वासपात्र सहयोगियों ने इनका साथ दिया जिनमें मुख्य रुप से एन.जी.गणपुले, ए.सी. एन.नांबियार, आबिद हसन, एम.आर.व्यास, गिरिजा मुखर्जी और एन.जी.स्वामी थे। इस सेंटर को एक विदेशी दूतावास के रुप में स्थापित किया गया साथ ही इसके सभी सदस्यों को विदेशी राजनयिकों को दी जाने वाली सभी सुविधाएँ प्राप्त करने का हक था। यहाँ से निम्नलिखित गतिविधियाँ क्रियान्वित की जाती थी–

  • जर्मनी में रहने वाले भारतीयों का संगठन और उनके ठीक रहने की व्यवस्था।
  • यूरोप में स्थापित सभी फ्री इंडिया सेंटर से सम्पर्क।
  • नेशनल कांग्रेस रेडियो, आजाद हिंद रेडियो और आजाद मुस्लिम रेडियो का प्रसारण।
  • फ्री इंडिया सेंटरों और दक्षिण-पूर्व एशिया की इंडियन इंडिपेंडेंस लीग में तालमेल स्थापित करने के लिये समन्वय केंद्र की स्थापना।
  • इंडियन नेशनल आर्मी, आजाद हिन्द फौज या इंडियन लीजन (जिसमें वो भारतीय युद्धबंदी भर्ती किये गये थे जो उत्तरी अफ्रीका से आये थे।) से समन्वय के साथ ही निकट संपर्क स्थापित करके फौजी हितों की रक्षा करना।
  • ‘आजाद हिन्द’ पत्रिका का दो भाषाओं (जर्मन व अंग्रेजी) में प्रकाशन (इस पत्रिका में भारतीय राजनीति, संस्कृति, अर्थव्यवस्था, कला आदि अनेक विषयों पर जो भी रिपोर्ट या खबरें उपल्ब्ध हो पाती उनका प्रकाशन किया जाता था तथा अनेक विषयों पर लेख लिखकर भी प्रकाशित किये जाते थे साथ ही इसका वितरण पूरे यूरोप में किया जाता था)।

फ्री इंडिया सेंटर के ही कारण आजाद हिन्द फौज का गठन और संचालन संभव हो पाया था। इस सेंटर ने रविन्द्रनाथ टैगोर द्वारा रचित कविता “जन-गन-मन” को राष्ट्रीय गान घोषित करने के साथ ही ‘जय हिंद’ का नारा भी दिया। इसके झंड़े को कांग्रेस से जोड़ते हुये इसके बिल्कुल बीच में छलांग लगाते हुये शेर की तस्वीर लगाई गयी जो पूरी तरह से शक्ति और साहस का प्रतीक थी।

हिटलर से मुलाकात

जर्मनी में पहुँचने के साथ ही सुभाष चन्द्र बोस ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम से संबंधित पृष्ठभूमि तैयार की। इस दौरान इनके बहुत से व्यक्ति जैसे विदेशी राजनियकों, विचारकों, पत्रकारों, जर्मन सेना के सैनिकों आदि से काफी करीबी और घनिष्ट संबंध बने। इन सबंधों ने समय आने पर बोस की बहुत मदद भी की। इस बीच इनकी मुलाकात जर्मन सरकार के एक विशिष्ट मंत्री एडम फॉर्न ट्रॉट से हुई जिनसे बोस की बहुत अच्छी मित्रता भी हो गयी।

29 मई 1942 को बोस की मुलाकात जर्मनी के तानाशाह (डिक्टेटर) हिटलर से हुई। इन्होंने भारतीय मुद्दों को लेकर उस से बात की लेकिन उसने भारतीयों के प्रति कोई सहानुभूति नहीं दिखायी और न ही भारतीय मुद्दों में कोई दिलचस्पी ही प्रदर्शित की। जिस कारण बोस को उससे मदद का कोई स्पष्ट संकेत और सन्तुष्टि नहीं मिली। लेकिन हिटलर ने उन्हें जर्मनी से बाहर निकलने में मदद करने के साथ ही पूर्वी क्षेत्र में जाने तक की यात्रा सुविधा उपलब्ध कराने के लिये सहमति दी।

जर्मनी से प्रस्थान

26 जनवरी 1943 को बर्लिन में भारतीय स्वाधीनता दिवस बहुत शानदार और भव्य आयोजन के साथ मनाने के दो दिन बाद फ्री इंडिया सेंटर के साथ मुलाकात की जिसके बाद वो यूरोप से प्रस्थान कर गये।

सुभाष चन्द्र बोस ने उत्तर-जर्मन बन्दरगाह से आबिद हसन के साथ पनडुब्बी में यात्रा की। ये यात्रा तीन महीने की थी। इस यात्रा के दौरान बोस ने अपने योजना बनाने संबंधी कार्यों को जारी रखा। इसी यात्रा के दौरान बोस ने झाँसी की रानी रेजीमेंट का बुनियादी ढाँचा तैयार किया। 24 अप्रैल 1943 को दूसरी पनडुब्बी में यात्रियों की अदला-बदली हुई। ये अदला-बदली बहुत ही ऐतिहासिक थी क्योंकि द्वितिय विश्व युद्ध के दौरान दो जर्मन पनडुब्बियों के मध्य ये सबसे पहली और आखिरी थी।

इस दूसरी पनडुब्बी ने इन्हें साबांग द्वीप समूह पर उतार दिया। यहाँ इनके चिकित्सिय परीक्षण के बाद क्वैरंटाइन (संगरोधक) के इंजेक्शन देकर कुछ समय के लिये आराम कराया गया। 13 मई 1943 को इन्होंने हवाई जहाज द्वारा टोकियों के लिये यात्रा की।

जापान की सरकार से भारत की मदद के लिये शिखर वार्ता

तीन महीने की लंबी यात्रा के दौरान सुभाष चन्द्र बोस ने अपने उद्देश्यों की प्राप्ति के लिये पूरी योजना का निर्माण किया और टोकियों पहुँचने के बाद इसे वास्तविक रुप देने के प्रयासों में लग गये। जापान पहुँचने के बाद बोस ने पूरे एक महीने तक जापान के प्रधानमंत्री से शिखऱ वार्ता करने की तैयारी की। इस बीच इन्होंने जापानी सेना के प्रमुख अधिकारियों, राजनयिकों, बौद्धिक वर्ग से भी सम्पर्क स्थापित किया।

वर्ष 1943 में जून के मध्य में बोस ने जापान के प्रधानमंत्री तोजो से पहली मुलाकात की। इस मुलाकात के अच्छे और सकारात्मक परिणाम प्राप्त हुये। मि. ताजो बोस के व्यक्तित्व से बहुत अधिक प्रभावित हुये। उन्होंने सुभाष चन्द्र बोस द्वारा रखी गयी ज्यादातर शर्तों को मान लिया।

दूसरी मुलाकात के लिये मि. तोजो ने नेताजी को दाईत (उस समय जापान की संसद को कहा जाता था) में आमंत्रित किया तथा बोस की उपस्थिति में भारतीय लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये बिना शर्त पूरा समर्थन की घोषणा की। ये पहली साहसिक घोषणा थी जिसे कोई अन्य जैसे महात्मा गाँधी या हिटलर नहीं कर पाये।

आजाद हिन्द फौज का गठन

4 जुलाई 1943 को नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने रासबिहारी बोस से पूर्व एशिया में चलाये जा रहे भारतीय आन्दोलन का नेतृत्व ग्रहण किया। ये नेतृत्व उन्होंने कैथे सिनेमा हॉल में लिया था। आजाद हिन्द फौज का नेतृत्व ग्रहण करते हुये बोस ने कहा –

“अपनी फौजों का कुशलता पूर्वक संचालन करने के लिये मैं स्वतंत्र भारत की अस्थाई सरकार बनाने का विचार रखता हूँ। इस अस्थाई सरकार का कर्तव्य होगा कि वह भारत की स्वतंत्रता की लड़ाई में सफलता प्राप्ति तक लड़ती रहे।”

5 अप्रैल 1943 को नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने सिंगापुर के टाउन हाल में सेना की सलामी के बाद औजस्वी भाषण दिया। इसी भाषण के दैरान इन्होंने “दिल्ली चलो”, “जय हिन्द” का भी नारा दिया। 8 अप्रैल को आयोजित सामूहिक रैली के दौरान नेताजी ने कहा था कि– “मुझे 3 लाख सैनिक और 3 करोड़ डॉलर चाहिये। मुझे एक मृत्यु से न डरने वाली भारतीय महिलाओं का दल चाहिये जो 1857 के प्रथम स्वतंत्रता आन्दोलन की वीरांगना झांसी की रानी की तरह युद्ध में तलवार चला सके।”

आजाद हिन्द के बोस से पहले केवल चार विभाग थे, उन चार विभागों को बल प्रदान करने के लिये सात नये विभागों का गठन किया गया। आई.एन.ए. का मुख्य आधार “एकता, त्याग एंव निष्ठा” रखा गया। इस भावना ने संगठन में नये आदर्शों की भावना का विकास किया। महिलाओं के लिये झाँसी की रानी रेजीमेंट का गठन किया गया जिसकी कमान कैप्टन लक्ष्मी सहगल (डॉ. लक्ष्मी स्वामीनाथन) को सौंपी गयी।

सिंगापुर में अपनी सेना को सुदृढ़ करने के बाद नेताजी ने वर्मा (म्यांमार) के लिये कूच किया और जनवरी 1944 को वर्मा में आई.एन.ए. का दूसरा मुख्यालय स्थापित किया। 1944 में रंगून रेडियो स्टेशन से नेताजी ने गाँधी को सम्बोधित करकते हुये अपन भाषण दिया। इस भाषण के दौरान नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने पहली बार गाँधी को “राष्ट्रपिता” कहकर संबोधित किया। अपनी जीत के लिये शुभकामनाएँ और आशीर्वाद देने के लिये कहा। नेताजी का गाँधी के लिये भावपूर्ण संदेश इस प्रकार था-

“भारत की स्वतंत्रता का अन्तिम युद्ध शुरु हो चुका है। आजाद हिन्द फौज भारत भूमि पर वीरता से युद्ध कर रही है और अनेक कठिनाईयों के होते हुये भी धीरे-धीरे दृढ़ता से आगे बढ़ रही है। ये सशस्त्र युद्ध उस समय तक चलता रहेगा जब तक कि हम अंतिम अंग्रेज को भारत से बाहर न निकाल देंगें और हमारा तिरंगा नयी दिल्ली में वॉयसराय भवन पर न फहराने लगे।”

“राष्ट्रपिता ! हम भारत के इस पवित्र मुक्ति युद्ध में आपका आशार्वाद और शुभकामनाएँ चाहते हैं, जय हिन्द।”

अपनी फौज के साथ नेताजी ने वर्मा के बहुत से क्षेत्रों को अंग्रेजी सेना से युद्ध करके छीन लिया। लेकिन ये सफलता ज्यादा दिन तक नहीं रहीं । औजाद हिन्द फौज विजय पताका लहराती हुई आगे बढ़ रही थी इसी समय उसके सैनिकों को बहुत सी परेशानियों से जूझना पड़ा और उन्हें रंगून से वापस बैंकॉक लौटना पड़ा।

आजाद हिन्द फौज का ये संघर्ष उस समय खत्म हुआ जब युद्ध में जापान के खिलाफ रुस व अमेरिका भी इंग्लैण्ड की ओर से शामिल हो गया। इन परिस्थितियों में नेताजी की फौज का भारत को स्वतंत्र कराने का संघर्ष धीमा हो गया। 1945 में द्वितीय विश्व युद्ध में अमेरिका ने जापान के दो प्रमुख शहरों हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बम गिरा दिये, जिससे जापान ने युद्ध में समर्पण कर दिया और अपनी हार मान ली। जापान की हार के बाद आजाद हिन्द फौज का विघटन कर दिया गया।

सुभाष चन्द्र बोस का लापता होना या नेताजी की रहस्यमयी मृत्यु

नेताजी ने आजाद हिन्द फौज के विघटन के बाद देशवासियों के नाम संदेश में कहा –

“भारतीय स्वाधीनता संग्राम का पहला अध्याय पूरा हुआ और इस अध्याय में पूर्व एशियाई बेटे-बेटियों का स्थान अमिट रहेगा। हमारी अस्थाई असफलता से निराश न हो। दुनिया की कोई ताकत भारत को गुलाम नहीं रख सकती।”

उस समय के उपलब्ध सुत्रों के अनुसार ये कहा जाता हे कि रंगून में पराजय के बाद बैंकॉक लौटते समय से ही नेताजी ने सोवियत रुस जाने का निर्णय कर लिया था। 15 अगस्त 1945 को नेताजी ने अपनी अस्थाई सरकार के साथ अन्तिम बैठक की गयी जिसमें फैसला किया गया कि आबिद हसन, देवनाथ दास, नेताजी हबीबुर्रहमान, एस.ए.अय्यर और कुछ अन्य साथियों के साथ बोस टोकियों से चले जाये। ये लोग विमान से बैंकॉक और सैगोन रुकते हुये रुस के लिये गये।

सैगोन में नेताजी को बड़े जापानी विमान में बिठा दिया गया। नेताजी ने इस विमान से हबीबुर्रहमान के साथ यात्रा की। 18 अगस्त को ये लड़ाकू विमान से ताइवान के लिये गये और इसके बाद इनका विमान रहस्यमयी तरीके से गायब हो गया। 23 अक्टूबर 1945 को टोकियों के रेडियो प्रसारण ने एक सूचना प्रसारित की कि ताइहोकू हवाई अड्डे पर विमान उड़ान भरते समय ही दुर्घटना ग्रस्त हो गया जिसमें चालक और इनके एक साथी की घटना स्थल पर ही मृत्यु हो गयी और नेताजी आग से बुरी तरह झुलस गये। इन्हें वहाँ के सैनिक अस्पताल में भर्ती कराया गया और इसी अस्पताल में इन्होंने अपने जीवन की आखिरी सांस ली।

नेताजी की मृत्यु पर विवाद

इस प्रकार नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की रहस्यमयी मृत्यु पर बहुत से विवाद खड़े हो गये। किसी को भी इस बात पर विश्वास नहीं हो पा रहा था कि जो व्यक्ति लोगों के हृदय में स्वतंत्रता की चिंगारी को जलाता रहा वो अब नहीं रहा। बंगाल प्रान्त के उनके समर्थकों ने उनकी विमान दुर्घटना में मृत्यु को सच नहीं माना। जिसके बाद 1947 को देश आजाद होने के बाद भारत की नयी निर्वाचित सरकार ने इनकी मृत्यु की जाँच के लिये तीन जाँच कमीशन नियुक्त किये। जिसमें से दो ने उनकी विमान दुर्घटना में मृत्यु को सही मान लिया जबकि एक कमीशन ने अपनी रिपार्ट में नेताजी की विमान दुर्घटना में मृत्यु की कहानी को कोरा झूठ बताया। भारत सरकार ने इस रिपोर्ट को बिना कोई ठोस कारण दिये रद्द कर दिया और बाकि दो कमीशन की रिपोर्ट के आधार पर नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की विमान दुर्घटना में मृत्यु की पुष्टि कर उन रिपोर्टों को सार्वजनिक कर दिया।

सुभाष चन्द्र बोस द्वारा लिखी गयी पुस्तकें

  • भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष।
  • आजाद हिन्द।
  • तरुनेर सपना।
  • अल्टरनेटिव लीडरशिप।
  • जरुरी कीचू लेखा।
  • द एसेंशशियल राइटिंग्स ऑफ सुभाष चन्द्र बोस।
  • 5th सुभाष चन्द्र बोस समग्र।
  • संग्राम रंचनाबली।
  • चलो दिल्ली: राइटिंग्स़ एंड स्पीच, 1943 -1945।
  • आइडियाज़ ऑफ ए नेशन: सुभाष चन्द्र बोस।
  • नेताजी सुभाष चन्द्र बोस, द लास्ट फेस इन हिस ओन वर्ल्डस।
  • इंडियाज़ स्पोक मैन अब्रॉड: लेटर्स, आर्टिकल्स, स्पीचस़ एंड सेटलमेंट।
  • लाइफ एंड टाइम्स ऑफ सुभाष चन्द्र बोस, एज़ टोल्ड इन हिज़ ओन वर्ड्स।
  • सेलेक्टेड स्पीचस़।
  • सुभाष चन्द्र बोस एजेंडा फॉर आजाद हिन्द।
  • स्वतंत्रता के बाद भारत: सुभाष चन्द्र बोस के चुनिंदा भाषण।
  • तरुणाई के सपने।
  • एट द क्रॉस रोड़स़ ऑफ चेंज़।

सुभाष चन्द्र बोस के कथन या नारे –

  • “तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा !”
  • “राष्ट्रवाद, मानव जाति के उच्चतम आदर्श सत्यम्, शिवम् और सुन्दरम् से प्रेरित है।”
  • “मेरे मन में कोई संदेह नहीं है कि हमारे देश की प्रमुख समस्याओं जैसे गरीबी, अशिक्षा, बीमारी, कुशल उत्पादन एवं वितरण का समाधान सिर्फ समाजवादी तरीके से ही किया जा सकता है।”
  • “ये हमारा कर्तव्य है कि हम अपनी स्वतंत्रता का मोल अपने खून से चुकाएं। हमें अपने बलिदान और परिश्रम से जो आज़ादी मिलेगी, हमारे अन्दर उसकी रक्षा करने की ताकत होनी चाहिए।”
  • “मध्या भावो गुडं दद्यात – अर्थात् जहाँ शहद का अभाव हो वहां गुड़ से ही शहद का कार्य निकालना चाहिए!”
  • “भारत में राष्ट्रवाद ने एक ऐसी सृजनात्मक शक्ति का संचार किया है जो सदियों से लोगों के अन्दर से सुसुप्त पड़ी थी।”
  • “आज हमारे अन्दर बस एक ही इच्छा होनी चाहिए, मरने की इच्छा ताकि भारत जी सके! एक शहीद की मौत मरने की इच्छा ताकि स्वतंत्रता का मार्ग शहीदों के खून से प्रशस्त हो सके।”
  • “यदि आपको अस्थायी रूप से झुकना पड़े तब वीरों की भाँति झुकना !”
  • “मुझे ये नहीं मालूम की स्वतंत्रता के इस युद्ध में हम में से कौन-कौन जीवित बचेंगा! परन्तु मैं ये जानता हूँ, अंत में विजय हमारी ही होगी!”
  • “असफलताएँ कभी-कभी सफलता की स्तम्भ होती हैं !”
  • “समझौतापरस्ती बहुत अपवित्र वस्तु है !”
  • “कष्टों का निसंदेह एक आंतरिक नैतिक मूल्य होता है !”
  • “मैंने जीवन में कभी भी खुशामद नहीं की है! दूसरों को अच्छी लगने वाली बातें करना मुझे नहीं आता!”
  • “संघर्ष ने मुझे मनुष्य बनाया! मुझमें आत्मविश्वास उत्पन्न हुआ, जो पहले नहीं था!”
  • “समय से पूर्व की परिपक्वता अच्छी नहीं होती, चाहे वह किसी वृक्ष की हो, या व्यक्ति की और उसकी हानि आगे चल कर भुगतनी ही होती है!”
  • “मैं जीवन की अनिश्चितता से जरा भी नहीं घबराता!”
  • “मुझमें जन्मजात प्रतिभा तो नहीं थी, परन्तु कठोर परिश्रम से बचने की प्रवृति मुझमे कभी नहीं रही!”
  • “अपने कॉलेज जीवन की दहलीज़ पर खड़े होकर मुझे अनुभव हुआ, जीवन का अर्थ भी है और उद्देश्य भी!”
  • “भविष्य अब भी मेरे हाथ में है!”
  • “चरित्र निर्माण ही छात्रों का मुख्य कर्तव्य है!”
  • “कर्म के बंधन को तोड़ना बहुत कठिन कार्य है!”
  • “माँ का प्यार सबसे गहरा और स्वार्थ रहित होता है! इसको किसी भी प्रकार नापा नहीं जा सकता!”
  • “याद रखिये अन्याय सहना और गलत के साथ समझौता करना सबसे बड़ा अपराध है।”
  • “एक सच्चे सैनिक को सैन्य और आध्यात्मिक दोनों ही प्रशिक्षण की ज़रुरत होती है।”
  • “इतिहास साक्षी है कि केवल विचार-विमर्श से कोई ठोस परिवर्तन नहीं हासिल किया गया है।”

संबंधित पोस्ट

संत रविदास की जीवनी – biography of sant ravidas in hindi, बाल गंगाधर तिलक, राम प्रसाद बिस्मिल, लाला लाजपत राय.

Easy Hindi

केंद्र एव राज्य की सरकारी योजनाओं की जानकारी in Hindi

नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जीवन परिचय | Subhash Chandra Bose Biography in Hindi (जन्म, शिक्षा, परिवार, मृत्यु वर्षगांठ, उपलब्धियां)

Shubhas Chandra Bose

सुभाष चंद्र बोस (Subhash Chandra Bose), जिन्हें आमतौर पर नेताजी सुभाष चंद्र बोस के नाम से जाना जाता है, भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन (Freedom Movement) में एक उल्लेखनीय व्यक्ति थे। 23 जनवरी, 1897 को भारत के कटक (Cuttack) में जानकीनाथ बोस और प्रभावती दत्त के घर जन्मे, उनकी जीवन कहानी अटूट समर्पण और बहादुरी में से एक है। 23 जनवरी को मनाया जाने वाला सुभाष चंद्र बोस का जन्मदिन अब भारत के स्वतंत्रता संग्राम में उनके अपार योगदान को स्वीकार करते हुए “ पराक्रम दिवस ” ( Parakaram Diwas ) ​​या “साहस दिवस” ​​के रूप में पहचाना जाता है।

नेताजी सुभाष चंद्र बोस (Netaji Subhash Chandra Bose) के विचारों को समझने और उनसे प्रेरित होने का अवसर न चूकें। आज ही अपनी प्रति प्राप्त करें और भारत की स्वतंत्रता के प्रति उनके दृष्टिकोण और अटूट प्रतिबद्धता के बारे में बहुमूल्य जानकारी प्राप्त करें। उन लोगों से जुड़ें जो इस प्रतिष्ठित नेता की बुद्धिमत्ता से सीखना चाहते हैं और उज्जवल भविष्य में योगदान देना चाहते हैं। यहां सुभाष चंद्र बोस की जीवनी (Subhash Chandra Bose Biography), सुभाष चंद्र बोस के परिवार (Subhash Chandra Bose Family), सुभाष चंद्र बोस की शिक्षा (Subhash Chandra Bose Education) के बारे में और जानें।

Subhash Chandra Bose Biography- Overview

आर्टिकल का प्रकारजीवनी
आर्टिकल का नामसुभाष चंद्र बोस जीवनी
साल2024
नेताजी जयंती कब है23 जनवरी को
कहां मनाया जाएगापूरे भारत में
मृत्यु कब हुई थी18 अगस्त 1945 को

इन्हें भी पढ़ें: सरदार वल्लभ भाई पटेल की जीवनी

Subhash Chandra Bose Biography (Wikibio) in Hindi

पूरा नामसुभाष चंद्र बोस
उपनामनेताजी
जन्मतिथि23 जनवरी 1891
जन्म स्थानकटक उड़ीसा
शैक्षणिक योग्यताकला में स्नातक
स्कूलएक प्रोटेस्टेंट यूरोपीयन स्कूल रेवेंशॉव कॉलेजिएट स्कूल, कटक, ओडिशा, भारत
कॉलेजPresidency College Scottish Church College Fitzwilliam College
राजनीतिक दलभारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
जातिकायस्थ
मृत्यु18 अगस्त 1948 (जापानी समाचार एजेंसी के अनुसार)

इन्हें भी पढ़ें: डॉ. राधाकृष्णन सर्वपल्ली का जीवन परिचय

नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जीवनी कहानी PDF ( Netaji Subhash Chandra Bose Life Story)

सुभाष चंद्र बोस की जीवनी की कहानी के बारे में अगर हम बात करें तो उनका पूरा जीवन संघर्ष और बलिदान से भरा हुआ है उन्होंने जिस प्रकार देश के आजादी में अपना योगदान दिया उसका कर्ज देश कभी भी चुका नहीं पाएगा इसलिए हम सबको सुभाष चंद्र बोस के जीवन की कहानी जरूर पढ़नी चाहिए क्योंकि उनसे आपको जीवन में कई प्रकार के महत्वपूर्ण चीज की प्रेरणा मिलेगी और आप भी अपने देश के लिए कुछ कर पाया उस भावना का आत्मसात आपके अंदर होगा अगर आपने सुभाष चंद्र बोस के जीवन की कहानी को करीब से पढ़ लिया तो सबसे महत्वपूर्ण बातें की हर एक भारतीय नागरिक को सुभाष चंद्र बोस के जीवन की कहानी जरूर पढ़नी चाहिए I सुभाष चंद्र बोस ऐसे वीर सेनानी थे जिन्होंने देश के स्वतंत्रता आंदोलन की पूरी दिशा ही बदल दी I

इन्हें भी पढ़ें: राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का जीवन परिचय

नेताजी सुभाष चंद्र बोस का प्रारम्भिक जीवन | Netaji Subhash Chandra Bose Bio

सुभाष चन्द्र बोस का जन्म 23 जनवरी, 1897 को ओडिशा के कटक में हुआ था। ये जानकी नाथ बोस और श्री मति प्रभावती देवी के 14 संतानों में से 9वीं संतान थे। सुभाष चंद्र बोस को देशभक्ति विरासत में मिली थी क्योंकि इनके पिता कांग्रेस अधिवेशन में जाया करते थे I

नेताजी सुभाष चंद्र बोस की शिक्षा | Netaji Subhash Chandra Bose Education

अपनी प्राइमरी की पढ़ाई कटक के प्रोटेस्टैंड यूरोपियन स्कूल से पूरी की और 1909 में उन्होनें रेवेनशा कोलोजियेट स्कूल में एडमिशन ले लिया। सुभाष चन्द्र बोस पर अपने प्रिंसिपल बेनीमाधव दास के व्यक्तित्व का बहुत प्रभाव पड़ा इसके अलावा सुभाष चंद्र बोस ने स्वामी विवेकानंद के जीवन पर आधारित किताबों को भी काफी विस्तार पूर्वक अध्ययन किया था मैट्रिक की परीक्षा में उन्होंने दूसरा स्थान प्राप्त किया और फिर 1911 में कोलकाता के  प्रेसीडेंसी कॉलेज में एडमिशन लिया था I 1918 में, कलकत्ता विश्वविद्यालय के स्कॉटिश कॉलेज से दर्शनशास्त्र में उन्होंने स्नातक की डिग्री हासिल किया I इसके अलावा ICS की परीक्षा पास करने के लिए वह लंदन के कैम्ब्रिज के फिट्जविल्लियम कॉलेज दाखिला लिया I

इन्हें भी पढ़ें:- 50+सुभाष चन्द्र बोस के अनमोल वचन

सुभाष चंद्र बोस का परिवार (Netaji Subhash Chandra Bose Family)

पिता का नामजानकीनाथ बोस
माता का नामप्रभावती देवी
भाई का नामशरद चंद्र बोस और 6 और भाई-बहन
बहन का नामउपलब्ध नहीं है
पत्नी का नामएमिली शेंक्ली
बेटी का नामअनीता बोस फाफ

सुभाष चंद्र बोस जयंती (Jayanti Of Subhash Chandra Bose)

सुभाष चंद्र बोस की जयंती 23 जनवरी को भारत में मनाया जाता है इस दिन विभिन्न प्रकार के सांस्कृतिक कायम आयोजित किए जाते हैं और देश के प्रधानमंत्री राष्ट्रपति उपराष्ट्रपति और सभी गणमान्य नेता सुभाष चंद्र बोस की प्रतिमा पर श्रद्धा सुमन अर्पित कर श्रद्धांजलि देते हैं I

इन्हें भी पढ़ें:- सुभाष चंद्र बोस पर निबंध हिंदी में

सुभाष चंद्र बोस पुण्यतिथि (Subhash Chandra Bose Death Anniversary)

18 अगस्त 1945 को सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु रहस्यमई तरीके से हो गई आज तक कोई भी व्यक्ति इस बात का पता नहीं लगा पाया है कि सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु आखिर कैसे हुई इसलिए 18 अगस्त को भारत में सुभाष चंद्र बोस की पुण्यतिथि मनाई जाती है इस दिन उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित कर याद किया जाता है I

सुभाष चंद्र बोस के बारे में 10 पंक्ति (Subhash Chandra Bose 10 Lines)

Subhash Chandra Bose 10 Lines

  • नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जन्म उड़ीसा के कटक क्षेत्र में 23 जनवरी 1897 को हुआ।
  • सुभाष चंद्र बोस अपने माता पिता की नौवीं संतान थे |
  • नेताजी के पिता जानकीनाथ बोस कटक के एक मशहूर सरकारी वकील थे।
  • नेताजी बी०ए० की परीक्षा कलकत्ता विश्वविद्यालय से प्रथम श्रेणी से पास किये।
  • सन् 1920 प्रशासनिक सेवा परीक्षा में उन्होंने चौथा स्थान हासिल किया
  • 1921 में उन्होंने अपनी नौकरी से इस्तीफा दे दिया
  •  नेताजी सुभाष चंद्र बोस भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के वीर क्रांतिकारी नायकों में से एक थे।
  • भगत सिंह को जब फांसी हुआ तो उनका गांधी के साथ मतभेद शुरू हो गया
  • 40000 भारतीयों के साथ नेताजी ने 1943 में ‘आजाद हिन्द फ़ौज’ बनाया।
  •  एक विमान दुर्घटना में 18 अगस्त 1945 को ताइवान में उनकी मृत्यु हो गयी

सुभाषचंद्र बोस की पुस्तकें | Books of Subhash Chandra

 नेताजी एक Indian Politician और Freedom Fighter थे। उन्होंने भारत को British Rule से आजादी दिलाने में सबसे बड़ी भूमिका निभाई। वह एक महान लेखक और सार्वजनिक वक्ता थे। उनके बहुत से पत्र, भाषण और अन्य ध्यान देने योग्य कृतियों को कई विद्वानों द्वारा पुस्तकों में सुरक्षित किया गया है। सुभाष चंद्र बोस द्वारा लिखित 9 पुस्तके निम्न हैं —

  • एक भारतीय तीर्थयात्री- यह पुस्तक आत्मकथा शैली के रूप में है।  1937 के अंत में उनकी यूरोप यात्रा के दौरान लिखी गई यह पुस्तक बोस के जन्म से लेकर भारतीय सिविल सेवा से इस्तीफा देने तक की जानकारी देती है।
  • युवा के सपने- 1928 मैं प्रकाशित पुस्तक राजनैतिक सैलीं की है।
  • एमिली शेंकल को पत्र 1934-1942।।।  इसका प्रकाशन 1994 को हुआ था।
  • आजाद हिंद: लेखन और भाषण, 1941-43 पुस्तक का प्रकाशन 2004 में किया गया जिसकी शैली ऐतिहासिक है।
  • दिल्ली के लिए: ऑन टू दिल्ली ए टेलिंग स्पीचेज ऑफ नेताजी सुभाष चंद्र बोस।।। इस पुस्तक की शैली भारतीय राजनीति है, इसका प्रकाशन 1946 में हुआ। “दिल्ली चलो” का नारा इस पुस्तक से लिया गया है।
  • ए बीकन एक्रॉस एशिया : इस पुस्तक की शैली ‘जीवनी’ आधारित है इस पुस्तक का प्रकाशन 1996 में हुआ था।
  • राष्ट्र के विचार :  इसकी शैली राजनैतिक है जिसे 2010 में प्रकाशित किया गया।
  • भारतीय संघर्ष : इस पुस्तक का प्रकाशन 1948 में हुआ। इसमें नेता जी ने दो भागों में बांटा। 1920 से 1934 तक के भारतीय इतिहास को शामिल किया और दूसरे भाग में 1934 से 1942 तक का इतिहास है।
  • जरूरी किचु  लेखा:  इसकी शैली राजनैतिक है, जिसका प्रकाशन 1977 में हुआ था। इसे बंगाली भाषा में लिखा गया, जिसका अनुवाद “कुछ जरूरी लिखना है” नाम से प्रकाशित हुआ।

सुभाषचंद्र बोस पर बनी फिल्म | Subhash Chandra Bose Movise

 नेताजी की 75 वीं पुण्यतिथि के मौके पर नेताजी के जीवन पर भारतीय फिल्म निर्माताओं ने 7 फिल्में बनाई गईं, जो निम्नलिखित है —

  •  समाधी, 1950 में
  •  सुभाष चंद्र, 1966
  •  नेताजी सुभाषचंद्र बोस : द फॉरगॉटेन हीरो 2004
  • अमी सुभाष बोलची, 2011
  •  बोस डेड अलाइव, 2017
  •  गुमनामी,2019
  •  द फॉरगॉटेन आर्मी, 2020

 सुभाष चंद्र बोस के अनमोल विचार एवं प्रसिद्ध भाषण

भारत को स्वतंत्रता दिलाने में बहुत से महान क्रांतिकारियों ने अपने प्राणों की आहुति दी है। उन्हीं में से एक सुभाष चंद्र बोस थे। बोस के सर्वश्रेष्ठ प्रेरणादायक अनमोल विचार निम्नलिखित हैं।।।

तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा।
जीवन में अगर संघर्ष ना रहे या भय का सामना ना करना पड़े तब जीवन का आधा स्वाद ही समाप्त हो जाता है।अपनी ताकत पर भरोसा करो, उधार की ताकत तुम्हारे लिए घातक है।
आजादी मिलती नहीं बल्कि उसे छीनना पड़ता है।
याद रखिए सबसे बड़ा अपराध अन्याय सहना और गलत के साथ समझौता करना है।
संघर्ष ने मुझे मनुष्य बनाया मुझमें आत्मविश्वास उत्पन्न हुआ जो पहले नहीं था।

FAQ’s: Subhash Chandra Bose Biography in Hindi

Q. नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जन्म कब हुआ था.

Ans. नेता जी का जन्म 23 जनवरी 1897 में हुआ था I

Q. नेताजी जयंती कब मनाया जाता है?

Ans . नेताजी जयंती 23 जनवरी को मनाया जाता है I

Q. आजाद हिंद फौज की स्थापना कब की थी?

Ans. 1943 में

इस ब्लॉग पोस्ट पर आपका कीमती समय देने के लिए धन्यवाद। इसी प्रकार के बेहतरीन सूचनाप्रद एवं ज्ञानवर्धक लेख easyhindi.in पर पढ़ते रहने के लिए इस वेबसाइट को बुकमार्क कर सकते हैं

One thought on “ नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जीवन परिचय | subhash chandra bose biography in hindi (जन्म, शिक्षा, परिवार, मृत्यु वर्षगांठ, उपलब्धियां) ”.

Thank you for sharing this amazing content. I like your post and I will shard the great article with my friends. khushi-kapoor

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment.

Related News

subhash chandra bose biography book in hindi

Vijay Sethupathi Biography In Hindi | विजय सेतुपति बायोग्राफी हिंदी में

subhash chandra bose biography book in hindi

Tenali Ramakrishna Biography In Hindi | तेनाली रामाकृष्ण का जीवन परिचय

Bachendri Pal

बछेंद्री पाल की जीवनी। About Bachendri Pal In Hindi

Birsa Munda

बिरसा मुंडा का हिंदी में जीवन परिचय इतिहास । Birsa Munda biography in hindi

subhash chandra bose biography book in hindi

नेताजी सुभाषचंद्र बोस की जीवनी

स्वतंत्रता अभियान के एक और महान क्रान्तिकारियो में सुभाष चंद्र बोस का नाम भी आता है। नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने भारतीय राष्ट्रिय सेना का निर्माण किया था। जो विशेषतः “आजाद हिन्द फ़ौज़” के नाम से प्रसिद्ध थी। सुभाष चंद्र बोस, स्वामी विवेकानंद को बहुत मानते थे।

“तुम मुझे खून दो मै तुम्हे आजादी दूंगा”

सुभाष चंद्र बोस का ये प्रसिद्ध नारा था। उन्होंने अपने स्वतंत्रता अभियान में बहोत से प्रेरणादायक भाषण दिये और भारत के लोगो को आज़ादी के लिये संघर्ष करने की प्रेरणा दी।

नेताजी सुभाषचंद्र बोस की जीवनी | Netaji Subhash Chandra Bose  Biography in Hindi

Netaji Subhash Chandra Bose

सुभाष चंद्र जानकीनाथ बोस
23 जनवरी 1897
कटक, उड़ीसा राज्य, बंगाल प्रांत, ब्रिटिश भारत
जानकीनाथ बोस
प्रभावती देवी
एमिली शेंकल
अनीता बोस फाफ
1909 में बैप्टिस्ट मिशन की स्थापना के बाद
रावेनशॉ कॉलेजिएट स्कूल में एडमिशन लिया।
1913 में मैट्रिक परीक्षा में द्वितीय स्थान हासिल करने
के बाद उन्हें प्रेसीडेंसी विश्वविद्यालय में दाखिल कराया गया
जहाँ उन्होंने अपनी पढ़ाई की।
आजाद हिन्द फौज,
आल इंडिया नेशनल ब्लॉक फॉर्वड,
स्वतंत्र भारत की अस्थायी सरकार
18 अगस्त 1945

बचपन और प्रारम्भिक जीवन – 

सुभाष चन्द्र बोस का जन्म 23 जनवरी, 187 को ओडिशा के कटक में हुआ था। ये जानकीनाथ बोस और श्री मति प्रभावती देवी के 14 संतानों में से 9वीं संतान थे। सुभाष चन्द्र जी के पिता जानकीनाथ उस समय एक प्रसिद्ध वकील थे उनकी वकालत से कई लोग प्रभावित थे आपको बता दें कि पहले वे सरकारी वकील थे इसके बाद फिर उन्होंने निजी प्रैक्टिस शुरू कर दी थी।

इसके बाद उन्होंने कटक की महापालिका में काफी लम्बे समय तक काम भी  किया था और वे बंगाल विधानसभा के सदस्य भी रहे थे। उन्हें रायबहादुर का ख़िताब भी अंग्रेजों द्वारा दिया गया था।

सुभाष चन्द्र बोस को देशभक्ति अपने पिता से विरासत के रूप में मिली थी। जानकीनाथ सरकारी अधिकारी होते हुए भी कांग्रेस के अधिवेशनों में शामिल होने जाते थे और लोकसेवा के कामों में बढ़चढ़ कर हिस्सा लेते थे आपको बता दें कि ये खादी, स्वदेशी और राष्ट्रीय शैक्षिक संस्थाओं के पक्षधऱ थे।

सुभाष चन्द्र बोस की माता प्रभावती उत्तरी कलकत्ता के परंपरावादी दत्त परिवार की बेटी थी। ये बहुत ही दृढ़ इच्छाशक्ति की स्वामिनी, समझदार और व्यवहारकुशल स्त्री थी साथ ही इतने बड़े परिवार का भरण पोषण बहुत ही कुशलता से करती थी।

Family Tree

Netaji Subhash Chandra Bose

पढ़ाई-लिखाई – 

साहसी वीर सपूत सुभाष चन्द्र बोस बचपन से ही पढ़ाई-लिखाई में काफी होनहार थे उन्होनें अपनी प्राइमरी की पढ़ाई कटक के प्रोटेस्टैंड यूरोपियन स्कूल से पूरी की और 1909 में उन्होनें रेवेनशा कोलोजियेट स्कूल में एडमिशन ले लिया।

नेता जी सुभाष चन्द्र बोस पर अपने प्रिंसिपल बेनीमाधव दास के व्यक्तित्व का बहुत प्रभाव पड़ा इसके साथ ही उन्होनें स्वामी विवेकानंद जी के साहित्य का पूरा अध्ययन कर लिया था।

पढ़ाई के प्रति अपने मेहनत और लगन से सुभाष चन्द्र बोस ने मैट्रिक परीक्षा में दूसरा स्थान हासिल किया था और अपने अध्ययन से सफलता हासिल की।

आपको बता दें कि इसके बाद 1911 में सुभाष चंद्र बोस ने प्रेसीडेंसी कॉलेज में एडमिशन लिया लेकिन बाद में अध्यापकों और छात्रों के बीच भारत विरोधी टिप्पणियों को लेकर झगड़ा हो गया।

जिसके बाद सुभाष चन्द्र बोस ने छात्रों का साथ दिया और उन्हें एक साल के लिए कॉलेज से निकाल दिया गया और परीक्षा नहीं देने दी थी। उन्होंने बंगाली रेजिमेंट में भर्ती के लिए परीक्षा दी लेकिन आंखों के खराब होने की वजह से उन्हें मना कर दिया गया।

इसके बाद सुभाष चन्द्र बोस ने 1918 में, कलकत्ता विश्वविद्यालय के स्कॉटिश कॉलेज से दर्शन शास्त्र में बी.ए की डिग्री प्राप्त की। फिर सुभाष चन्द्र बोस ने भारतीय सिविल सेवा परीक्षा (ICS) में शामिल होने के लिए कैम्ब्रिज के फिट्जविल्लियम कॉलेज में एडमिशन लिया।

अपने पिता जानकीनाथ की इच्छा पूरी करने के लिए, सुभाष चन्द्र  बोस ने चौथे स्थान के साथ परीक्षा उत्तीर्ण की और सिविल सेवा विभाग में नौकरी हासिल की लेकिन सुभाष चंद्र बोस लंबे समय तक इस नौकरी को नहीं कर पाए क्योंकि सुभाष चन्द्र बोस के लिए ये नौकरी मानो किसी ब्रिटिश सरकार के अंदर काम करने जैसी थी इसलिए उन्होनें इस नौकरी को नैतिक रूप से स्वीकार नहीं किया था।

इसके बाद सुभाष चन्द्र बोस ने इस नौकरी  को छोड़ने का फैसला लिया और वे भारत वापस आ गए। वहीं सुभाष चन्द्र बोस के अंदर बचपन से ही देश प्रेम की भावना थी इसलिए वे स्वतंत्रता संग्राम मे योगदान देने के लिए भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हो गए और भारत को आजादी दिलाने के लिए उन्होनें अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया।

इस संग्राम में विजयी होने के लिए सुभाष चंद्र बोस ने पहला कदम समाचार पत्र ‘स्वराज’ शुरु कर उठाया इसके अलावा उन्होनें बंगाल प्रांतीय कांग्रेस कमेटी के लिए भी प्रचार-प्रसार का काम संभाला।

चित्तरंजन दास के मार्गदर्शन और सहयोग के साथ, नेता जी सुभाष चन्द्र बोस में राष्ट्रवाद की भावना का विकास हुआ इसके बाद जल्द ही उन्होंने अखिल भारतीय युवा कांग्रेस के लिए राष्ट्रपति की अध्यक्षता हासिल की और 1923 में बंगाल राज्य के लिए कांग्रेस के सचिव के रूप में काम किया।

इसके अलावा सुभाष चन्द्र बोस को ‘फॉरवर्ड’ अखबार का संपादक बना दिया गया इस अखबार को चितरंजन दास ने स्थापित किया था इसके साथ ही बोस ने कलकत्ता नगर निगम के सीईओ पद के लिए भी सफलता हासिल की।

राष्ट्रहित की भावना सुभाष चन्द्र बोस में कूट-कूट कर भरी थी इसलिए आजादी के लिए भारतीय संघर्ष में उनका राष्ट्रवादी नजरिया और योगदान अंग्रेजों के साथ अच्छा नहीं रहा इसलिए 1925 में उन्हें मांडले में जेल भेजा गया।

राजनीतिक जीवन – 

नेता जी सुभाष चन्द्र बोस 1927 में जेल से बाहर आ गए इसके बाद उन्होनें अपने राजनैतिक करियर एक आधार देकर विकसित किया। सुभाष चन्द्र बोस ने कांग्रेस पार्टी के महासचिव के पद को सुरक्षित कर लिया और गुलाम भारत को अंग्रेजों के चंगुल से आजाद कराने की लड़ाई में भारत के प्रथम प्रधान मंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के साथ काम करना शुरू कर दिया।

सुभाषचंद्र बोस अपने कामों से लोगों पर अपना प्रभाव छोड़ रहे थे इसलिए इसके 3 साल बाद उन्हें कलकत्ता का मेयर के रूप में चुना गया। 1930 के दशक के मध्य में, नेता जी ने बेनिटो मुसोलिनी समेत पूरे यूरोप की यात्रा की।

अपने कामों से नेता जी ने कुछ ही सालों में लोगों के बीच अपनी एक अलग छवि बना ली थी इसके साथ ही वे एक नौजवान सोच लेकर आए थे जिसके चलते वे यूथ लीडर के रूप में लोगों के प्रिय और राष्ट्रीय नेता भी बन गए।

महात्मा गांधी से मेल नहीं खाती थी नेता जी की विचारधारा:

कांग्रेस की एक बैठक के दौरान कुछ नए और पुरानी विचारधारा के लोगों के बीच मतभेद हुआ जिनमें युवा नेता किसी भी नियम पर चलना नहीं चाहते थे जबकि वे खुद के हिसाब से चलना चाहते थे, वहीं पुराने नेता ब्रिटिश सरकार के बनाए नियम के साथ आगे बढ़ना चाहते थे।

वहीं सुभाष चन्द्र बोस और गांधी जी के विचार भी बिल्कुल अलग थे वे नेता जी महात्मा गांधी जी की अहिंसावादी विचारधारा से सहमत नहीं थे उनकी सोच नौजवानों वाली थी जो हिंसा में भी भरोसा रखते थे। दोनों की विचारधारा अलग थी लेकिन मकसद गुलाम भारत को आजाद कराने का ही था। 

आपको बता दें जब नेता जी सुभाष चन्द्र बोस ने कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में नामांकन जीता था उस समय उनके नामांकन से महात्मा गांधी खुश नहीं थे यहां तक कि उन्होनें बोस के प्रेसीडेंसी के लिए भी विरोध किया था जबकि ये पूर्ण स्वराज प्राप्त करने के लिए ही था।

बोस ने अपना कैबिनेट बनाने के साथ-साथ भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में मतभेदों का भी संघर्ष किया। 1939 के कांग्रेस के अध्यक्ष पद के चुनावों में बोस ने पट्टाभी सीताराय्या (गांधीजी के चुने हुए उम्मीदवार) को भी हराया था, लेकिन लंबे समय तक उनकी प्रेसीडेंसी जारी नहीं रह सकी क्योंकि उनकी विश्वास प्रणाली कांग्रेस कार्यकारिणी समिति के विपरीत थी।

नेताजी का कांग्रेस के अध्यक्ष पद से इस्तीफा, फॉरवर्ड ब्लॉक का गठन – F orward B loc

1939 का वार्षिक कांग्रेस अधिवेशन त्रिपुरी में हुआ। इस अधिवेशन में बीमारी की वजह से वह शामिल नहीं हो सके। इसके बाद 29 अप्रैल 1939 को सुभाष चन्द्र बोसने कांग्रेस के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया।

कांग्रेस के अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने के बाद सुभाष चन्द्र बोस ने 22 जून, 1939 को फॉरवर्ड ब्लॉक का गठन किया, हालांकि बोस ने ब्रिटिश शासकों का विरोध किया, लेकिन सुभाषचन्द्र बोस ब्रिटिश सरकार के सुव्यवस्थित और अनुशासित रवैया से बेहद प्रभावित थे।

जेल में नेता जी को काटनी पड़ी सजा:

द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, सुभाष चन्द्र बोस ने कांग्रेस नेतृत्व से बिना सलाह लिए बिना भारत की तरफ से युद्ध करने के लिए वाइसराय लॉर्ड लिनलिथगो के फैसले के विरोध में सामूहिक नागरिक अवज्ञा की वकालत की। उनके इस फैसले की वजह से उन्हें 7 दिन की जेल की सजा काटनी पड़ी और 40 दिन तक गृह गिरफ्तारी झेलनी पड़ी थी।

गृह गिरफ्तारी के 41 वें दिन जर्मनी जाने के लिए सुभाष चन्द्र बोस मौलवी का वेष धारण कर अपने घर से निकले और इटेलियन पासपोर्ट में ऑरलैंडो मैज़ोटा नाम से अफगानिस्तान , सोवियत संघ, मॉस्को और रोम से होते हुए जर्मनी पहुंचे।

जर्मनी से नेता जी सुभाष चन्द्र बोस का संबंध:

Netaji Subhash Chandra Bose

एडम वॉन ट्रॉट ज़ू सोल्ज़ के मार्गदर्शन में, सुभाष चन्द्र बोस ने भारत के विशेष ब्यूरो की स्थापना की, जिसने जर्मन प्रायोजित आज़ाद हिंद रेडियो पर प्रसारण किया। सुभाषचन्द्र बोस ने इस तथ्य पर भरोसा किया कि दुश्मन का दुश्मन एक दोस्त होता है और इस तरह उन्होनें ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ जर्मनी और जापान के सहयोग की मांग की।

बोस ने बर्लिन में फ्री इंडिया सेंटर की स्थापना की वहीं फ्री इंडिया लीजियन के लिए लगभग 3000 भारतीय कैदी ने साइन अप किया था।

जर्मनी का युद्ध में पतन और जर्मन सेना की आखिरी वापसी से सुभाष चन्द्र बोस ने इस बात का अंदाजा लगा लिया कि अब जर्मन सेना भारत से अंग्रेजों को बाहर निकालने में मद्द नहीं कर पाएगी।

Netaji Subhash Chandra Bose

आजाद हिंद फौज का गठन –

इसके बाद सुभाष चन्द्र बोस जुलाई 1943 में जर्मनी से सिंगापुर चले गए जहां उन्होनें भारतीय राष्ट्रीय सेना के गठन की उम्मीद फिर से जगाई आपको बता दें कि भारतीय राष्ट्रीय सेना को सबसे पहले कप्तान जनरल मोहन सिंह ने 1942 में स्थापित किया था इसके बाद राष्ट्रवादी नेता राश बिहारी बोस ने इसकी अध्यक्षता की थी।

बाद में रास बिहारी बोस ने इस संगठन की पूरी जिम्मेदारी सुभाष चन्द्र बोस को सौंप दी थी। वहीं इसके बाद INA को आजाद हिंद फौज और सुभाष चन्द्र बोस को नेता जी के नाम से जाने जाना लगा।

नेताजी ने न केवल सैनिकों को फिर से संगठित किया उन्होनें दक्षिणपूर्व एशिया में आप्रवासी भारतीयों का ध्यान भी अपनी तरफ खींचा। वहीं लोगों में फौज में भर्ती होने के अलावा, वित्तीय सहायता भी देना शुरू कर दिया।

आपको बता दें कि इसके बाद आज़ाद हिंद फौज एक अलग महिला इकाई के साथ भी उभर कर सामने आई, एशिया में इस तरह की पहला संगठन था।

आजाद हिंद फौज ने काफी विस्तार किया और इस संगठन ने अजाद हिंद सरकार के एक अस्थायी सरकार के तहत काम करना शुरू कर दिया। उनके पास अपनी डाक टिकट, मुद्रा, अदालतें और नागरिक कोड थे और नौ एक्सिस राज्यों द्वारा स्वीकृत थी।

नेताजी ने अपने भाषण से लोगों को किया प्रेरित – 

1944 में नेता जी सुभाष चन्द्र बोस अपने भाषण से लोगों को मंत्रमुग्ध कर दिया इसके साथ ही उनके इस भाषण ने उस समय काफी सुर्खियां भी बटोरी थी आपको बता दें  कि नेता जी ने अपने इस प्रेरक भाषण में लोगों से कहा कि –

” तुम मुझे खून दो , मै तुम्हें आजादी दूंगा ”

नेताजी सुभाष चन्द्र बोस का भाषण का लोगों पर इतना प्रभाव पड़ा कि काफी तादाद में लोग बिट्रिश शासकों के खिलाफ आजादी की लड़ाई में शामिल हो गए।

सेना, आजाद हिंद फौज के मुख्य कमांडर नेताजी के साथ, ब्रिटिश राज से देश को मुक्त करने के लिए भारत की तरफ बढ़ी।

रास्ते में अंडमान और निकोबार द्वीपों को स्वतंत्र किया गया इसके बाद इन दो द्वीपों का स्वराज और शहीद का नाम दिया गया। इसके साथ सेना के लिए रंगून नया आधार शिविर बन गया।

बर्मा मोर्चे पर अपनी पहली प्रतिबद्धता के साथ, सेना ने अंग्रेजों के खिलाफ प्रतिस्पर्धी लड़ाई लड़ी और आखिरकार इम्फाल, मणिपुर के मैदान पर भारतीय राष्ट्रीय ध्वज फहराने में कामयाब रहे।

हालांकि, राष्ट्रमंडल बलों के अचानक हमले में  जापानी और जर्मन सेना को आश्चर्यचकित कर लिया। रंगून बेस शिविर के पीछे हटने से सुभाष चन्द्र बोस का राजनीतिक हिन्द फौज का को प्रभावी राजनीतिक इकाई बनने के सपने को चूर-चूर कर दिया।

मृत्यु – 

आजाद हिंद फौज की हार से निराश, नेताजी ने सहायता मांगने के लिए रूस यात्रा करने की योजना बनाई। लेकिन 18 अगस्त 1945 को सुभाष चन्द्र बोस जी के विमान का ताईवान में क्रेश हो गया, जिसकी वजह से उनकी मृत्यु हो गई।

फिलहाल नेता जी की लाश नहीं मिली थी साथ ही उस दुर्घटना का कोई सबूत भी नहीं मिला था इसलिए सुभाष चन्द्र बोस की मौत आज भी विवाद का विषय है और भारतीय इतिहास में सबसे बड़ी संशय है।

व्यक्तिगत जीवन और विरासत – 

  • फॉरवर्ड ब्लॉक के सदस्यों की अवहेलना के बाद, बोस ने 1937 में ऑस्ट्रेलिया के पशुचिकित्सक की बेटी एमिली शेंकल के साथ विवाह कर लिया। दोनों की शादी हिन्दू रीति-रिवाजों से की गई थी इसके काफी समय बाद इन दोनों से एक बेटी अनीता बोस फाफ का जन्म हुआ था।
  • 18 अगस्त, 1945 को रूस जाते समय रास्ते में दुर्भाग्यपूर्ण उनका विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया जिससे उनकी मौत हो गई। बताया जाता है कि जापानी सेना वायुसेना मित्सुबिशी की -21 बॉम्बर, जिस पर वे यात्रा कर रहे थे उस विमान में इंजन में परेशानी होने की वजह से विमान ताइवान में दुर्घटनाग्रस्त हो गया।
  • इस दुर्घटना में नेता जी सुभाष चन्द्र बोस के पूरे शरीर में घाव थे और ये पूरी तरह जल चुके थे हालांकि इलाज के लिए उन्हें अस्पताल में भर्ती करवाया गया लेकिन बच नहीं सके और इसके चार घंटे बाद वे सदा के लिए सो गए ।
  • नेता जी सुभाष चन्द्र बोस का अंतिम संस्कार किया गया था और ताइहोकू में निशी हांगानजी मंदिर में बौद्ध स्मारक सेवा आयोजित की गई थी। बाद में, टोक्यो, जापान में रेन्कोजी मंदिर में उनकी अस्थियों को दफन कर दिया गया थ।

पुरस्कार और उपलब्धियां – 

  • नेताजी सुभाष चंद्र बोस को भारत के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार, भारत रत्न पुरस्कार से मरणोपरांत सम्मानित किया गया था। हालांकि, बाद में इसे पीआईएल के बाद वापस ले लिया गया, जिसे अदालत में पुरस्कार की ‘मरणोपरांत’ प्रकृति के खिलाफ दायर किया गया था।
  • नेता जी सुभाष चन्द्र बोस की एक प्रतिमा पश्चिम बंगाल विधान सभा के सामने बनाई गई है, जबकि उनकी तस्वीर की झलक भारतीय संसद की दीवारों में भी देखने को मिलती है।
  • कुछ दिनों पहले ही नेता जी सुभाष चन्द्र बोस को लोकप्रिय संस्कृतियों में चित्रित किया गया है। हालांकि वह कई लेखकों के विचारों के साथ धोखाधड़ी कर रहा है, जिन्होंने उन पर कई किताबें लिखी हैं, वहीं ऐसी कई फिल्में हैं जो इस भारतीय राष्ट्रवाद नायक को चित्रित करती हैं।

Netaji Subhash Chandra Bose

जयंती – 

भारत के महान स्वतंत्रता सेनानी तथा आजाद हिंद सेना के कार्यवाहक के रूप मे सुभाषचंद्र बोस खासे पहचाने जाते है। उनके स्वतंत्रता संग्राम मे दिये हुये निडर और प्रेरणादायी योगदान की वजह से उनका जन्मदिन यानि के २३ जनवरी को ‘पराक्रम दिवस’ के तौर पर देशभर मे उत्साह के साथ मनाया जाता है।

इस खास उपलक्ष पर नेताजी के कार्यो और स्वतंत्रता के लिये किये गये प्रयासो को मानवंदना अर्पित कर उनकी स्मृती मे विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमो का आयोजन किया जाता है। इस मौके पर गणमान्य व्यक्तियो  तथा समुचे देशभर के लोगो द्वारा नेताजी सुभाषचंद्र बोस जी को श्रद्धांजली अर्पित की जाती है।

  • “तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा!” आजादी के लिए छेड़े गए स्वतंत्रता संघर्ष के दौरान इस भारतीय राष्ट्रवादी नेता ने कहा था जिसके बाद से लोग इससे काफी प्रेरित हुए थे और इस संग्राम में बड़ी संख्या में शामिल भी हुए थे। नेता जी की अन्य प्रसद्धि नारेो में “दिल्ली चलो”, ‘जय हिंद’ शामिल हैं।
  • सुभाष चनद्र बोस अखिल भारतीय फॉरवर्ड ब्लॉक के संस्थापक थे।

विचार – 

Netaji Subhash Chandra Bose

  • तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा।
  • याद रखिये – सबसे बड़ा अपराध, अन्याय को सहना और गलत व्यक्ति के साथ समझौता करना हैं।
  • यह हमारा फर्ज हैं कि हम अपनी आजादी की कीमत अपने खून से चुकाएं| हमें अपने त्याग और बलिदान से जो आजादी मिले, उसकी रक्षा करनी की ताकत हमारे अन्दर होनी चाहिए।
  • मेरा अनुभव हैं कि हमेशा आशा की कोई न कोई किरण आती है, जो हमें जीवन से दूर भटकने नहीं देती।
  • जो अपनी ताकत पर भरोसा करता हैं, वो आगे बढ़ता है और उधार की ताकत वाले घायल हो जाते हैं।
  • हमारा सफर कितना ही भयानक, कष्टदायी और बदतर हो सकता हैं लेकिन हमें आगे बढ़ते रहना ही हैं। सफलता का दिन दूर हो सकता हैं, लेकिन उसका आना अनिवार्य ही हैं।

नेताजी सुभाष चंद्र बोस एक ऐसे स्वतंत्रता सैनानी थी जिन्होनें भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के तहत भारत को आजादी दिलावाने के लिए अपने प्राण भी न्यौछावर कर दिए।

उनमें वो तेज था जो लोगों को उनकी तरफ आर्कषित करता था इसके साथ ही वे उस समय युवाओं में नया जोश और शक्ति का प्रसार करने में भी कामयाब हुए थे। सुभाष चन्द्र बोस का नाम इतिहास के पन्नों पर सुनहरे अक्षरों में लिखा गया।

फिल्म ( मूवी ) –

नेताजी के जीवन पर आधारित हिंदी तथा और भाषाओ मे फिल्म बनी है, जिसमे हिंदी और बंगाली भाषा शामिल है, जैसे के

  • नेताजी सुभाषचंद्र बोस – द फॉरगॉटन हिरो  
  • गुमनामी
  • आमी शुभाष बोलची, इत्यादी..

किताबे – 

सुभाषचंद्र बोस जितने कुशल संघटक और नेतृत्व करने मे सक्षम व्यक्तिमत्व थे, उतना ही विचारो को कलम द्वारा प्रकट करने का कौशल्य भी उनमे अंतर्निहित था। इस परिपेक्ष मे उनके द्वारा लिखी हुई कुछ किताबे तत्कालीन समय के जनमानस मे काफी प्रसिध्द हुई थी, ऐसेही कुछ किताबो का ब्यौरा यहा हम आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहे है। 

  • द इंडिअन स्ट्रगल १९२० – १९४२
  • एन इंडिअन पिल्ग्रिम
  • कॉंग्रेस प्रेसिडेंट
  • आजाद हिंद :- राईटिंग एंड स्पिचेस
  • एसेंशिअल  राईटिंग ऑफ नेताजी सुभाषचंद्र बोस
  • अल्टरनेटिव्ह लिडरशिप
  • द कॉल ऑफ द मदरलैंड,  इत्यादि..

एक नजर में – 

  • 1921 में सुभाषचंद्र बोस  इन्होंने सरकारी नोकरी में बहोत उच्च स्थान का त्याग करके राष्ट्रीय स्वातंत्र के आंदोलन में कुद पडे। स्वातंत्र लढाई में हिस्सा लेने के लिये अपनी नौकरी का इस्तीफा देणे वाले वो पहले आय.सी.एस. अधिकारी थे।
  • 1924 में कोलकत्ता महानगर पालिका के मुख्य कार्यकारी अधिकारी के रूप में उनको चित्तरंजन दास इन्होंने चुना। पर इसी स्थान होकर और कौनसा भी सबुत न होकर अंग्रेज सरकार ने क्रांतीकारोयों के साथ सबंध रखा ये इल्जाम लगाकर उन्हें गिरफ्तार मंडाले के जेल में भेजा गया।
  • 1927 में सुभाषचंद्र बोस और पंडित जवाहरलाल नेहरू इन दो युवा नेताओं को कॉंग्रेस के महासचिव के रूप में चुना गया। इस चुनाव के वजह से देशके युवाओं में बड़ी चेतना बढ़ी।
  • सुभाषचंद्र बोस इन्होंने समझौते के स्वातंत्र के अलावा पुरे स्वातंत्र की मांग कॉंग्रेस ने ब्रिटिशों से करनी चाहिये। ऐसा आग्रह किया। 1929 के लाहोर अधिवेशन में कॉंग्रेस ने पूरा स्वातंत्र का संकल्प पारित किया। ये संकल्प पारित होने में सुभाषचंद्र बोस इन्होंने बहोत प्रयास किये।
  • 1938 में सुभाषचंद्र बोस हरिपुरा कॉंग्रेस अधिवेशन के अध्यक्ष बने।
  • 1939 में त्रिपुरा यहा हुये कॉंग्रेस के अधिवेशन में वो गांधीजी के उमेदवार डॉ. पट्टाभि सीतारामय्या इनको घर दिलाकर चुनकर आये। पर गांधीजी के अनुयायी उनको सहकार्य नहीं करते थे। तब उन्होंने उस स्थान का इस्तीफा दिया और ‘फॉरवर्ड ब्लॉक’ ये नया पक्ष स्थापन किया।
  • इंग्लंड दुसरे महायुध्द में फसा हुवा है। इस स्थिति का लाभ लेकर स्वातंत्र के लिए भारत ने सशस्त्र लढाई करनी चाहिए’ ऐसा प्रचार वो करते थे। इस वजह से अंग्रेज सरकार का उनके उपर का गुस्सा बढ़ा। सरकारने उन्हें जेल में डाला पर उनकी तबियत खराब होने के वजह से उन्हें घर पर ही नजर कैद में रखा। 15 जनवरी 1941 में सुभाषबाबू भेस बदलकर अग्रेजोंके चंगुल से भाग गये। काबुल के रास्ते से जर्मनी की राजधानी बर्लिन यहा गये।
  • भारत के स्वातंत्र लढाई के लिये सुभाषबाबू ने हिटलर के साथ बातचीत की। जर्मनी में ‘आझाद हिंद रेडिओ केंद्र’ शुरु किया। इस केंद्र से अंग्रेज के विरोध में राष्ट्रव्यापी संकल्प करने का संदेश वो भारतीयोंको देने लगे।
  • जर्मनी में रहकर भारतीय स्वतंत्र के लिये हम कुछ महत्वपूर्ण रूप की कृति कर सकेंगे। ऐसा ध्यान में आतेही सुभाषचंद्र बोस जर्मनी से एक पनडुब्बी से जपान गये।

रासबिहारी बोस ये भारतीय क्रांतिकारी उस समय जपान में रहते थे। उन्होंने मलेशिया, सिंगापूर, म्यानमार आदी। पूर्व आशियायी देशों में के भारतीयोका ‘इंडियन इंडिपेंडेंट लीग‘ (हिंदी स्वातंत्र संघ) स्थापन किया हुवा था।

जपान इ हिंदी के हाथ में आये हुये अंग्रेजो के लष्कर में के हिंदी सैनिकोकी ‘आझाद हिंद सेना’ उन्होंने संघटित की थी। उसका नेतृत्व स्वीकार करने की सुभाषबाबू को रासबिहारी बोस ने उन्होंने आवेदन किया। नेताजीने वो आवेदन स्वीकार किया। इस तरह सुभाषचंद्र बोस आझाद हिंद सेने के सरसेनापती बने।

10) 1943 में अक्तुबर महीने में सुभाषबाबू के अध्यक्षता में ‘आझाद हिंद सरकार’ की स्थापना हुयी। अंदमान और निकोबार इन व्दिपो कब्जा कटके आझाद हिंद सरकार ने वहा तिरंगा लहरा दिया।

अंदमान को ‘शहीद व्दिप’ और निकोबार को ‘स्वराज्य व्दिप’ ऐसे नाम दिये। जगन्नाथराव भोसले, शहनवाझ खान, प्रेम कुमार सहगल, डॉ. लक्ष्मी स्वामीनाथन आदी उनके पास के साथी थे। डॉ. लक्ष्मी स्वामी नाथन ये ‘ झाशी की राणी ’ पथक के प्रमुख थी।

‘ तिरंगा झेंडा ’ ये आझाद हिंद सेन का निशान ‘जयहिंद’ ये अभिवादन के शब्द, ‘चलो दिल्ली’ ये घोष वाक्य और ‘कदम कदम बढाये जा’ ये समरगित था। इसी सेना ने 1943 से 1945 तक शक्तिशाली अंग्रेजों से युध्द किया था तथा उन्हें भारत को स्वतंत्रता प्रदान कर देने के विषय में सोचने को मजबूर किया।

11) जपान सरकार के निवेदन के अनुसार सुभाषचंद्र बोस एक विमान से टोकियो जाने के लिये निकले उस विमान को फोर्मोसा मतलब ताइहोकू व्दिप के हवाई अड्डे के पास दुर्घटना हुयी। इस दुर्घटना में 18 अगस्त 1945 को नैताजी की मृत्यु हो गयी।

बचपन से ही सुभाष में राष्ट्रीयता के लक्षण प्रकट होने लगे थे और निस्वार्थ सेवा भावना उनके चरित्र की विशेषता थी। इन सभी उदात्त प्रवुत्तियों से ही उनके क्रांतिकारी पर उदार व्यक्तित्व का निर्माण हुआ था।

जरुर देखे एक विडियो –

अगले पेज पर नेताजी सुभाषचंद्र बोस के बारेमें अधिकतर बार पूछे जाने वाले सवाल…

27 thoughts on “नेताजी सुभाषचंद्र बोस की जीवनी”

' src=

SUBHSHCHANDRA JANKINATH BOSE IS GREAT MAN THERE IS BEST LEADER OF INDIA BOSS JI. BOSS JI DEATH SUSPENSE WISH KNOW

' src=

SUBHSHCHANDRA JANKINATH BOSE IS GREAT, NOT A FULL HISTORY PLEASE UPDATE HISTORY. YOUNG MAN IS EXCITED BOSS KNOWN ALL HISTORY, MY FAVORITE LEADER OF INDIA BOSS JI . BOSS JI DEATH SUSPENSE PLS UPDATE. THANKS

' src=

Actually mere ko kisi parkar me exam ya project ki teyari nahi karni thi. But I want about neta Ji deeply . Jo ki apne kafi achi parkar se de rakhi he. I believe you that in future you also add this type article on a freedom fighter. Pl tell me about his daughter status

' src=

Very nice I think issey thodi or gharaye me samajhana chahiye tha.

' src=

आपने अच्छा लिखा है नेताजी सुभाषचंद्र बोस जीवन के बारे में।

Leave a Comment Cancel Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment.

Gyan ki anmol dhara

Grow with confidence...

  • Computer Courses
  • Programming
  • Competitive
  • AI proficiency
  • Blog English
  • Calculators
  • Work With Us
  • Hire From GyaniPandit

Other Links

  • Terms & Conditions
  • Privacy Policy
  • Refund Policy
  • Art Culture
  • Business Economy
  • Science & Technology
  • Entertainment
  • Government Politics
  • Health Life Style

सुभाष चंद्र बोस का जीवन परिचय

सुभाष चंद्र बोस, भारत के स्वतंत्रता संग्राम के सबसे प्रमुख नेताओं में से एक थे। सुभाष चंद्र बोस नेताजी के नाम से लोकप्रिय है। उनका जन्म 23 जनवरी 1897 को उड़ीसा के कटक नामक शहर में जानकीनाथ बोस और प्रभावती देवी के घर में हुआ था। उनके पिता एक प्रसिद्ध वकील थे और उनकी माँ एक धार्मिक महिला थी। चौदह भाईयो में उनका 9 वाँ स्थान था।

वह अपने बचपन से ही एक प्रतिभाशाली छात्र थे और कलकत्ता से मैट्रिक की परीक्षा पास कर पूरे प्रदेश में प्रथम स्थान हासिल किया। उन्होंने कोलकाता के स्कॉटिश चर्च कॉलेज से स्नातक किया और पश्चिम बंगाल से प्रथम श्रेणी में दर्शनशास्त्र की डिग्री प्राप्त की। स्वामी विवेकानंद की शिक्षाओं से प्रभावित होकर वह छात्रावस्था से ही अपने देशभक्ति उत्साह के लिए जाने जाते थे। वह अपने माता-पिता की इच्छा पूरी करते हुए भारतीय नागरिक सेवा में नियुक्त होने के लिए इंग्लैंड चले गए थे। सुभाष चंद्र बोस ने 1920 में प्रतियोगी परीक्षा के लिए आवेदन किया और योग्यता के अनुसार उन्हें चौथा स्थान मिला। पंजाब में जलियाँवाला बाग हत्याकांड को गंभीरतापूर्वक सुनकर, सुभाष चंद्र बोस ने अपनी सिविल सर्विसेज की शिक्षा को बीच में ही छोड़ दिया और भारत लौट आये।

भारत लौटने के बाद सुभाष चंद्र बोस, महात्मा गाँधी के विचारों से प्रभावित हुए। वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हो गए और देशबंधु चित्तरंजन दास के नेतृत्व में काम करने लगे, जो बाद में उनके राजनीतिक गुरु बन गये। उन्होंने मोतीलाल नेहरू समिति के मार्गदर्शन में कांग्रेस द्वारा घोषित भारत के डोमिनियन स्टेट्स का विरोध किया। सुभाष चंद्र बोस पूर्णरूप से आजादी के पक्ष में समर्पित थे और इसके अतिरिक्त वह कुछ भी नही सुनना चाहते थे। 1930 में सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान उन्हें जेल भेज दिया गया और 1931 में गाँधी-इरविन समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद उन्हें रिहा कर दिया गया।

सुभाष चंद्र बोस को भारत से यूरोप में निर्वासित किया गया था। उन्होंने इस अनुकूल परिस्थिति का लाभ उठाया और यूरोप के विभिन्न राजधानी शहरों के माध्यम से भारत और यूरोप के बीच राजनीतिक और सांस्कृतिक संबंध स्थापित करने की कोशिश की। सुभाष चंद्र बोस, भारत में अपनी प्रविष्टि पर प्रतिबंध की परवाह किये बिना ही भारत वापस आ गये जिस कारण उन्हें गिरफ्तार करके एक साल के लिए जेल भेज दिया गया। 1937 के आम चुनाव के दौरान कांग्रेस ने सात राज्यों में जीत हासिल की और सुभाष चंद्र बोस को रिहा कर दिया गया। एक साल बाद वह हरिपुरा कांग्रेस अधिवेशन के अध्यक्ष चुने गए। उन्होंने एक बहुत ही कठोर निर्णय लिया और अंग्रजों से कहा कि भारत छह महीने के अन्दर भारतवासियों को सौंप दिया जाए।

सुभाष चंद्र बोस के कठोर निर्णय के बाद लोग विरोध करने लगे तब उन्होंने शांतिपूर्वक अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया और फॉरवर्ड ब्लॉक का गठन किया। सुभाष चंद्र बोस अफगानिस्तान की मदद से जर्मनी चले गये और वहाँ ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ, सहयोग करने के लिए जर्मनी और जापान को मनाने की कोशिश की। वह जुलाई 1943 में जर्मनी से सिंगापुर चले गए और आजाद हिंद फौज (भारतीय राष्ट्रीय सेना) का गठन किया। भारतीय राष्ट्रीय सेना में अधिकांश युध्द के कैदी शामिल थे। सेना बर्मा सीमा पार करके 18 मार्च 1944 को भारतीय सीमा तक पहुँच गयी।

जापान और जर्मनी द्वितीय विश्व युद्ध में हार गए और परिणामस्वरूप आई.एन.ए अपने उद्देश्य को पूरा नहीं कर सका। ताइपेई, ताइवान (फॉर्मोसा) के बीच में 18 अगस्त 1945 को एक हवाई दुर्घटना में सुभाष चंद्र बोस की मौत हो गई। लेकिन कुछ लोग ऐसे भी हैं जो अभी भी उन्हें जीवित मानते हैं और उनकी सच्चाई जानने के लिए कई समितियाँ गठित की जा चुकी हैं, लेकिन उनके बारे में अभी भी कुछ पता नहीं लगा है।

सुभाष चंद्र बोस के बारे में तथ्य व सूचनाएं

23 जनवरी 1897
हिन्दू धर्म
कटक, उड़ीसा राज्य, बंगाल प्रांत, ब्रिटिश भारत
भारतीय
जानकीनाथ बोस
प्रभावती देवी
18 अगस्त 1945 (48 वर्ष), ताइपेई (ताहोकू) और जापानी ताइवान के मध्य

 

एमिली शेंकल (1937 में बिना किसी की जानकारी में शादी कर ली थी)
अनीता बोस फाफ
सन् 1909 में बैप्टिस्ट मिशन की स्थापना के बाद सुभाष चन्द्र बोस ने रावेनशॉ कॉलेजिएट स्कूल में दाखिला लिया और वह एक प्रभावशाली और होनहार विद्यार्थी है, इस बात को एक दिन उस स्कूल के प्रबंधक बेनी माधब दास भी समझ गये थे। सन् 1913 में मैट्रिक परीक्षा में द्वितीय स्थान हासिल करने के बाद उन्हें प्रेसीडेंसी विश्वविद्यालय में दाखिल कराया गया जहाँ उन्होंने संक्षिप्त रूप से अध्ययन किया।

 

वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हो गए और देशबंधु चित्तरंजन दास के नेतृत्व में काम करने लगे, जो बाद में उनके राजनीतिक गुरु बन गये। उन्होंने मोतीलाल नेहरू समिति के मार्गदर्शन में, कांग्रेस द्वारा घोषित भारत के डोमिनियन स्टेट्स का विरोध किया। सुभाष चंद्र बोस पूर्ण आजादी के पक्ष में थे और कुछ नहीं सुनना चाहते थे। 1930 में सविनय अवज्ञा के दौरान उन्हें जेल भेजा गया और 1931 में गाँधी-इरविन समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद उन्हें रिहा कर दिया गया।
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का आंदोलन।
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में 1921-1940 तक कार्य किया।

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment.

  • पुष्पलता दास की जीवनी
  • बैरम खाँ की जीवनी
  • शहीद भगत सिंह की जीवनी
  • अशफाक उल्ला खाँ की जीवनी

subhash chandra bose biography book in hindi

  • Education & Teaching
  • Schools & Teaching

Sorry, there was a problem.

Kindle app logo image

Download the free Kindle app and start reading Kindle books instantly on your smartphone, tablet, or computer - no Kindle device required .

Read instantly on your browser with Kindle for Web.

Using your mobile phone camera - scan the code below and download the Kindle app.

QR code to download the Kindle App

Image Unavailable

Biography of Subhash Chandra Bose (Hindi Edition)

  • To view this video download Flash Player

Biography of Subhash Chandra Bose (Hindi Edition) Paperback – October 1, 2020

  • Print length 58 pages
  • Language Hindi
  • Publisher Ramesh Publishing House
  • Publication date October 1, 2020
  • Dimensions 5.5 x 0.12 x 8.5 inches
  • ISBN-10 9350122642
  • ISBN-13 978-9350122648
  • See all details

Product details

  • Publisher ‏ : ‎ Ramesh Publishing House (October 1, 2020)
  • Language ‏ : ‎ Hindi
  • Paperback ‏ : ‎ 58 pages
  • ISBN-10 ‏ : ‎ 9350122642
  • ISBN-13 ‏ : ‎ 978-9350122648
  • Item Weight ‏ : ‎ 2.47 ounces
  • Dimensions ‏ : ‎ 5.5 x 0.12 x 8.5 inches

Products related to this item

Ancient India: A Captivating Guide to Ancient Indian History, Starting from the Beginning of the Indus Valley Civilization Through the Invasion of Alexander ... the Mauryan Empire (Exploring India’s Past)

Customer reviews

  • 5 star 4 star 3 star 2 star 1 star 5 star 34% 35% 14% 8% 9% 34%
  • 5 star 4 star 3 star 2 star 1 star 4 star 34% 35% 14% 8% 9% 35%
  • 5 star 4 star 3 star 2 star 1 star 3 star 34% 35% 14% 8% 9% 14%
  • 5 star 4 star 3 star 2 star 1 star 2 star 34% 35% 14% 8% 9% 8%
  • 5 star 4 star 3 star 2 star 1 star 1 star 34% 35% 14% 8% 9% 9%

Customer Reviews, including Product Star Ratings help customers to learn more about the product and decide whether it is the right product for them.

To calculate the overall star rating and percentage breakdown by star, we don’t use a simple average. Instead, our system considers things like how recent a review is and if the reviewer bought the item on Amazon. It also analyzed reviews to verify trustworthiness.

  • Sort reviews by Top reviews Most recent Top reviews

Top reviews from the United States

Top reviews from other countries.

subhash chandra bose biography book in hindi

  • About Amazon
  • Investor Relations
  • Amazon Devices
  • Amazon Science
  • Sell products on Amazon
  • Sell on Amazon Business
  • Sell apps on Amazon
  • Become an Affiliate
  • Advertise Your Products
  • Self-Publish with Us
  • Host an Amazon Hub
  • › See More Make Money with Us
  • Amazon Business Card
  • Shop with Points
  • Reload Your Balance
  • Amazon Currency Converter
  • Amazon and COVID-19
  • Your Account
  • Your Orders
  • Shipping Rates & Policies
  • Returns & Replacements
  • Manage Your Content and Devices
 
 
 
   
  • Conditions of Use
  • Privacy Notice
  • Consumer Health Data Privacy Disclosure
  • Your Ads Privacy Choices

subhash chandra bose biography book in hindi

hindi parichay

नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जीवनी

Netaji subhash chandra bose in hindi.

जन्म 23 जनवरी 1897 कटक, बंगाल प्रेसीडेंसी का ओड़िसा डिवीजन, ब्रिटिश भारत
मृत्यु 18 अगस्त 1945
माता-पिता श्री जानकी नाथ बोस और प्रभावती बोस (दत्त
बच्चे अनीता बोस फाक
पत्नी श्रीमति एमिली शेंकल
राष्ट्रीयता भारतीय
जाती धर्म बंगाली लोग, हिन्दू
शिक्षा 1919 बी०ए० (ओनर्स), 1920 आई.सी.एस.पारीक्षा उत्तीर्ण
शिक्षा प्राप्ति कलकत्ता विश्वविद्यालय
पद अध्यक्ष भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (1938)
पार्टी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (1921-1940), फॉरवर्ड ब्लॉक (1939- 1940)
अन्य संबंधी श्री शरदचंद्र बोस भाई और श्री शिशिर कुमार बोस भतीजा

प्रश्न: तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा यह नारा किसने दिया? उत्तर: नेताजी सुभाष चंद्र बोस

नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जीवनी और उनके योगदान

नेताजी सुभाष चंद्र बोस जीवनी: सुभाष चन्द्र बोस जिन्हें सभी लोग नेताजी के नाम से भी जानते है, भारत के स्वतंत्र होने में उनका महत्वपूर्ण योगदान था। द्वितीय विश्वयुद्ध (second world war) अंग्रेजों के खिलाफ जापान की सहायता से भारतीय राष्ट्रीय सेना का निर्माण किया था। जो “आजाद हिन्द फ़ौज” के नाम से जानी जाती है। सुभाष चंद्र बोस,  स्वामी विवेकानंद की कही हुई बातों पे अमल करते थे।

सुभाष चन्द्र बोस का कथन: “ तुम मुझे खून दो मै तुम्हे आजादी दूंगा ”

नेताजी सुभाष चन्द्र बोस का प्रसिद्ध नारा था। जिसे पूरा भारत जानता है। कुछ लोगों का मानना था की जब नेताजी ने जापान और जर्मनी से सहयोग लेने का प्रयत्न किया तो ब्रिटिश सरकार ने उन्हें मारने के लिए 1914 में अपने गुप्तचर भेजे थे।

1920 के अंत में बोस भारतीय युवा कांग्रेस के बड़े नेता माने गए और सन् 1938 और 1939 को वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष बने। 1939 में  महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) के चलते हुए विवाद के कारण अपने पद को छोड़ना पड़ा और 1940 में भारत छोड़ने से पहले ही उन्हें ब्रिटिश ने अपने गिरफ्त में कर लिया था। अप्रैल 1941 को बोस को जर्मनी ले जाया गया।

05 जुलाई 1943 को सिंगापुर के टाउन हाल के सामने “सुप्रीम कमांडर” बन कर सेना को संबोधित करते हुए “दिल्ली चलो” का नारा लगाने वाले सुभाष चन्द्र बोस ही थे। जापानी सेना के साथ मिलकर ब्रिटिश और कॉमनवेल्थ सेना से बर्मा, इम्फाल, और कोहिमा में एक साथ जमकर मोर्चा लगाया।

नेताजी सुभाष चन्द्र बोस का जीवन परिचय

Subhash Chandra Bose Biography in Hindi

नेताजी सुभाष चंद्र बोस पर निबंध

नेताजी सुभाष चंद्र बोस के व्यक्तित्व की बात करें तो 21 अक्टूबर 1943 को सुभाष चन्द्र बोस ने आजाद हिन्द फ़ौज के सर्वोच्च सेनापती के पद से स्वतंत्र भारत की अस्थिर सरकार बनायी जिसे जर्मनी, जापान, फिलीपींस, कोरिया, चीन, इटली, मान्छेको और आयरलैंड ने मान्यता दी। जापान ने अंडमान व निकोबार द्वीप इस अस्थिर सरकार को सौंपा और सुभाष उन द्वीपों में गए और उनको नया नाम दिया।

कोहिमा का युद्ध 4 अप्रैल 1944 से 22 जून 1944 तक लड़ा गया एक भयंकर युद्ध माना गया और इस युद्ध में जापानी सेना की हार हुई।

जापान में 18 अगस्त को उनका जन्म दिन बड़े ही धूमधाम से आज भी मनाया जाता है और वहीं भारत में रहने वाले उनके परिवार के लोगों का कहना है कि  सुभाष चन्द्र बोस की मृत्यु सन् 1945 में हुई ही नहीं थी। वे रूस में नजरबंद थे और यदि ये बात गलत है तो भारत सरकार ने उनकी मृत्यु से संबंधित दस्तावेज अब तक सार्वजनिक क्यों नहीं किया? इस बात को लेकर आज भी विवाद है। कलकत्ता हाई कोर्ट ने नेताजी के लापता होने के रहस्य को लेकर खुफिया दस्तावेजों को सार्वजनिक करने की मांग को जनहित याचिका पर सुनवाई के लिए स्पेशल बेंच के गठन का आदेश दिया था।

सुभाष चन्द्र बोस का जन्म कब हुआ था और कहाँ हुआ था?

23 जनवरी 1897 को कटक (ओडिशा) शहर में सुभाष चन्द्र बोस का जन्म हुआ। उनके पिता श्री जानकीनाथ बोस और माँ श्रीमती प्रभावती थे।

सुभाष जी के पिता जी शहर के मशहूर वकील थे। पहले वे सरकारी वकील थे फिर उन्होंने निजी अभ्यास शुरू कर दी थी। उन्होंने कटक की महापालिका में लम्बे समय तक काम किया और वे बंगाल विधानसभा के सदस्य भी रहे थे। उन्हें रायबहादुर का खिताब भी अंग्रेजन द्वारा मिला।

सुभाष चन्द्र के नानाजी का नाम गंगा नारायण दत्त था। दत्त परिवार को कोलकाता का एक कुलीन कायस्थ परिवार माना जाता था। सुभाष चन्द्र बोस को मिला कर वे 6 बेटियां और 8 बेटे यानी कुल 14 संतानें थी । सुभाष चन्द्र जी 9 स्थान पर थे। कहा जाता है कि सुभाष चन्द्र जी को अपने भाई शरद चन्द्र से सबसे अधिक लगाव था। शरद बाबु प्रभावती जी और जानकी नाथ के दूसरे बेटे थे । शरद बाबु की पत्नी का नाम विभावती था।

Grammarly Writing Support

Education : Information About Subhash Chandra Bose in Hindi

सुभाष चन्द्र बोस की शिक्षा और आई.सी.एस. का सफर: प्राइमरी शिक्षा कटक के प्रोटेस्टेंट यूरोपियन स्कूल से पूरी की और 1909 में उन्होंने रावेनशॉ कॉलेजिएट स्कूल में दाखिला लिया। उन पर उनके प्रिंसिपल बेनीमाधव दास के व्यक्तित्व का बहुत प्रभाव पड़ा। वह विवेकानंद जी के साहित्य का पूर्ण अध्ययन कर लिया था।

सन् 1915 में उन्होंने इंटरमीडिएट की परीक्षा बीमार होने पर भी दूसरी श्रेणी में उत्तीर्ण की। 1916 में बी० ए० (ऑनर्स) के छात्र थे। प्रेसीडेंसी कॉलेज के अध्यापकों और छात्रों के बीच झगड़ा हो गया। सुभाष ने छात्रों का साथ दिया जिसकी वजह से उन्हें एक साल के लिए निकाल दिया और परीक्षा नहीं देने दी। उन्होंने बंगाली रेजिमेंट में भर्ती के लिए परीक्षा दी मगर आँखों के खराब होने की वजह से उन्हें मना कर दिया गया। स्कॉटिश चर्च में कॉलेज में उन्होंने प्रवेश किया लेकिन मन नहीं माना क्योंकि मन केवल सेना में ही जाने का था।

जब उन्हें लगा की उनके पास कुछ समय शेष बचता है तो उन्होंने टेटोरियल नामक आर्मी में परीक्षा दी और उन्हें विलियम सेनालय में प्रवेश मिला और फिर बी०ए० (आनर्स) में खूब मेहनत की और सन् 1919 में एक बी० ए० (आनर्स) की परीक्षा प्रथम आकर पास की और साथ में कलकत्ता विश्वविद्यालय में उनका स्थान दूसरा था। उनकी अब उम्र इतनी हो चुकी थी की वे केवल एक ही बार प्रयास करने पर ही आईसीएस बना जा सकता था। उनके पिता जी की ख्वाहिश थी की वह आईसीएस बने और फिर क्या था सुभाष चन्द्र जी ने पिता से एक दिन का समय लिया। केवल ये सोचने के लिए की आईसीएस की परीक्षा देंगे या नही। इस चक्कर में वे पूरी रात सोये भी नहीं थे। अगले दिन उन्होंने सोच लिया की वे परीक्षा देंगे।

वे 15 सितम्बर 1919 को इंग्लैण्ड चले गए। किसी वजह से उन्हें किसी भी स्कूल में दाखिला नहीं मिला फिर क्या था उन्होंने अलग रास्ता निकाला। सुभाष जी ने किड्स विलियम हाल में मानसिक एवं नैतिक ज्ञान की ट्राईपास (ऑनर्स) की परीक्षा के लिए दाखिला लिया इससे उनके रहने व खाने की समस्या हल हो गयी और फिर ट्राईपास (ऑनर्स) की आड़ में आईसीएस की तैयारी की और 1920 में उन्होंने वरीयता सूची में चौथा स्थान प्राप्त कर परीक्षा उत्तीर्ण की।

स्वामी विवेकानंद और महर्षि अरविन्द घोष के आदर्शों और ज्ञान ने उन्हें अपने भाई शरत चन्द्र से बात करने पर मजबूर कर दिया और उन्होंने एक पत्र अपने बड़े भाई शरत चन्द्र को लिखा जिसमें उन्होंने पूछा की मैं आईसीएस बन कर अंग्रेजों की सेवा नहीं कर सकता। फिर उन्होंने 22 अप्रैल 1921 को भारत सचिव ई० एस० मांटेग्यू को आईसीएस से त्यागपत्र दिया। एक पत्र देशबंधु चित्तरंजन दस को लिखा। उनके इस निर्णय में उनकी माता ने उनका साथ दिया, उनकी माता को उन पर गर्व था। फिर सन् 1921 में ट्राईपास (ऑनर्स) की डिग्री लेकर अपने देश वापस लौटे।

भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में सुभाष चंद्र बोस की भूमिका

Netaji Subhash Chandra Bose PNG

भारत की आजादी में सुभाष चन्द्र जी का योगदान

सुभाष चन्द्र बोस ने ठान ली थी की वे भारत की आजादी के लिए कार्य करेंगे। वे कोलकाता के देशबंधु चित्तरंजन दास से प्रेरित हुए और उनके साथ काम करने के लीये इंग्लैंड से उन्होंने दिबबू को पत्र लिखा और साथ में काम करने के लिए अपनी इच्छा जताई। कहा जाता है कि रवीन्द्रनाथ ठाकुर की सलाह के अनुसार ही सुभाष जी मुंबई गए और महात्मा गांधी जी से मिले। सुभाष जी, महात्मा गांधी जी से 20 जुलाई 1921 को मिले और गांधी जी के कहने पर सुभाष जी कोलकाता जाकर दास बाबू से मिले।

असहयोग आंदोलन का समय चल रहा था। दासबाबु और सुभाष जी इस आन्दोलन को बंगाल में देख रहे थे। दासबाबु ने सन् 1922 कांग्रेस के अंतर्गत स्वराज पार्टी की स्थापना की। अंग्रेज सरकार का विरोध करने के लिए कोलकाता महापालिका का चुनाव स्वराज पार्टी ने विधानसभा के अन्दर से लड़ा और जीता।

फिर क्या था…

दासबाबू कोलकाता के महापौर बन गए और इस अधिकार से उन्होंने सुभाष चन्द्र को महापालिका का प्रमुख कार्यकारी अधिकारी बना दिया। सुभाष चन्द्र ने सबसे पहले कोलकाता के सभी रास्तों के नाम ही बदल डाले और भारतीय नाम दे दिए। उन्होंने कोलकाता का रंगरूप ही बदल डाला। सुभाष देश के महत्वपूर्ण युवा नेता बन चुके थे। स्वतंत्र भारत के लिए जिन लोगों ने जान दी थी उनके परिवार के लोगों को महापालिका में नौकरी मिलने लगी। सुभाष जी की पंडित जवाहर लाल नेहरु जी के साथ अच्छी बनती थी। उसी कारण सुभाष जी ने जवाहर लाल जी के साथ कांग्रेस के अंतर्गत युवकों की इंडिपेंडेंस लीग शुरू की।

सन् 1928 में जब साइमन कमीशन भारत आया था तब कांग्रेस के लोगों ने उसे काले झंडे दिखाए और कांग्रेस ने आठ लोगों की सदस्यता आयोग बनाया ताकि साइमन कमीशन को उसका जवाब दे सके, सुभाष ने इस आन्दोलन का नेतृत्व किया। उस आयोग में मोतीलाल नेहरू अध्यक्ष और सुभाष जी सदस्य थे। आयोग ने नेहरू रिपोर्ट पेश की और और कांग्रेस का वार्षिक अधिवेशन मोतीलाल नेहरू की अध्यक्षता में कोलकाता में हुआ। ये बात सन् 1928 में हुआ था, सुभाष चन्द्र जी ने खाकी कपड़े पहन के मोतीलाल जी को सलामी दी थी।

इस अधिवेशन में गांधी जी ने अंग्रेज सरकार से पूर्ण स्वराज की जगह डोमिनियन स्टेट्स मांगे। सुभाष और जवाहर लाल जी तो पूर्ण स्वराज की मांग कर रहे थे, लेकिन  गांधी जी उनकी बात से सहमत नहीं थे। आखिर में फैसला ये हुआ की गांधी जी ने अंग्रेज सरकार को 2 साल का वक्त दिया जिसमें डोमिनियन स्टेट्स वापस दे दिया जाए, मगर सुभाष और जवाहर लाल जी को गांधी जी का ये निर्णय अच्छा नहीं लगा और गांधी जी से 2 साल की वजह अंग्रेजी सरकार को 1 साल का वक्त देने को कहा।

निर्णय ये हुआ की अगर 1 साल में अंग्रेज सरकार ने डोमिनियन स्टेट्स नहीं दिए तो कांग्रेस पूर्ण स्वराज की मांग करेगी। लेकिन अंग्रेज सरकार के कानों के नीचे जूं भी नहीं रेंगा। अंत में आकर सन् 1930 में जब कांग्रेस का वार्षिक अधिवेशन जवाहर लाल नेहरू की अध्यक्षता में लाहौर में हुआ तब ऐसा तय किया गया कि 26 जनवरी का दिन स्वतंत्रता का दिन मनाया जाएगा।

कोलकाता में राष्ट्र ध्वज फहराकर सुभाष बड़ी मात्रा में लोगों के साथ मोर्चा निकाल रहे थे। 26 जनवरी 1931 की बात है ये उनके इस कारनामे से पुलिस ने उन पर लाठियां चलाई और उन्हें घायल कर जेल में भेज दिया। महात्मा गांधी जी ने अंग्रेज सरकार से समझौता किया और सभी कैदियों को जेल से सुभाष चन्द्र सहित छुड़ा लिया और अंग्रेज सरकार ने भगत सिंह जैसे बहादुर क्रांतिकारी को आजाद करने से मना कर दिया।

गांधी जी ने भगत सिंह की फांसी रुकवाने के लिए अंग्रेज सरकार से बात की मगर नरमी के साथ सुभाष जी कभी नहीं चाहते थे कि ऐसा हो उनका कहना था की गांधी जी इस समझौते को तोड़ दे। मगर कहा जाता है कि गांधी जी अपने दिए हुए वचन को कभी नहीं तोड़ते थे। अंग्रेज सरकार ने भगत सिंह व उनके साथ काम करने वालों को फांसी दे दी और सुभाष चन्द्र जी के दिलों दिमाग में आग लगा दी उन्हें गांधी जी और कांग्रेस के तरीके बिलकुल पसंद नहीं आये ।

Netaji Subhash Chandra Bose Wikipedia in Hindi

कितनी बार कारावास जाना पड़ा सुभाष चन्द्र बोस को.

पूरे जीवन में सुभाष चन्द्र जी को करीब 11 बार कारावास हुआ। 16 जुलाई 1921 में छह महीने का कारावास हुआ। गोपीनाथ साहा नाम के एक क्रांतिकारी ने सन् 1925 मे कोलकाता की पुलिस में अधिकारी चार्ल्स टेगार्ट को मारना चाहा, मगर गलती से अर्नेस्ट डे नाम के व्यापारी को मार दिया जिस वजह से गोपीनाथ को फांसी दे दी गयी। इस खबर से सुभाष चन्द्र जी फूट फूट कर रोये और गोपीनाथ का मृत शरीर मांगकर अंतिम संस्कार किया।

सुभाष चन्द्र जी के इस कार्य से अंग्रेजी सरकार ने सोचा की सुभाष चन्द्र कहीं क्रांतिकारियों से मिला हुआ तो नहीं है या फिर क्रांतिकारियों को हमारे लिए भड़काता है। किसी बहाने अंग्रेज सरकार ने सुभाष को गिरफ्तार किया और बिना किसी सबूत के बिना किसी मुकदमे के सुभाष चन्द्र को म्यांमार के मंडल कारागार में बंदी बनाकर डाल दिया। चित्तरंजन दास 05 नवम्बर 1925 को कोलकाता में चल बसे । ये खबर रेडियो में सुभाष जी ने सुन ली थी। कुछ दिन में सुभाष जी की तबियत ख़राब होने लगी थी, उन्हें तपेदिक हो गया था। लेकिन अंग्रेजी सरकार ने उन्हें रिहा फिर भी नहीं किया था।

सरकार की शर्त थी की उन्हें रिहा जभी किया जायेगा जब वे इलाज के लिए यूरोप चले जाए, मगर सुभाष चन्द्र जी ने ये शर्त भी ठुकरा दी क्योंकि सरकार ने ये बात साफ नहीं की थी की सुभाष चन्द्र जी कब भारत वापस आ सकेंगे। अब अंग्रेजी सरकार दुविधा में पड़ गई थी क्योंकि सरकार ये भी नहीं चाहती थी की सुभाष चन्द्र जी कारावास में ही खत्म हो जाए। इसलिए सरकार के रिहा करने पर सुभाष जी ने अपना इलाज डलहौजी में करवाया। सन् 1930 में सुभाष कारावास में ही थे और चुनाव में उन्हें कोलकाता का महापौर चुन लिया गया था। जिस कारण उन्हें रिहा कर दिया गया। सन् 1932 में सुभाष जी को फिर कारावास हुआ और उन्हें अल्मोड़ा जेल में रखा गया, अल्मोड़ा जेल में उनकी तबियत फिर खराब हो गयी, चिकित्सकों की सलाह पर वे यूरोप चले गए।

Netaji Subhash Chandra Bose Biography in Hindi

Netaji Subhash Chandra Bose LogoNetaji Subhash Chandra Bose Logo

यूरोप में रह कर देश भक्ति:  सन् 1933-1936 सुभाष जी यूरोप में ही रहे। वहां वे इटली के नेता मुसोलिनी से मिले, जिन्होंने उन्हें भारत के स्वतंत्रता संग्राम में सहायता करने का वादा किया। आयरलैंड के नेता डी वलेरा सुभाष के अच्छे मित्र बन गए।  उन दिनों जवाहर लाल जी की पत्नी कमला नेहरू का आस्ट्रिया में निधन हो गया । सुभाष जी ने जवाहर जी को वहां जाकर हिम्मत दी। बाद में विट्ठल भाई पटेल से भी मिले।

विठ्ठल भाई पटेल के साथ सुभाष ने मंत्रण की जिसे पटेल व बोस की विश्लेषण के नाम से प्रसिद्धि मिली। उस वार्तालाप में उन दोनों ने गांधी जी की घोर निंदा की, यहाँ तक की विठ्ठल भाई पटेल के बीमार होने पर सुभाष जी ने उनकी सेवा भी की मगर विठ्ठल भाई पटेल जी का निधन हो गया। विठ्ठल भाई पटेल ने अपनी सारी संपत्ति सुभाष जी के नाम कर दी और सरदार भाई पटेल जो विठ्ठल भाई पटेल छोटे भाई थे उन्होंने इस वसीयत को मना कर दिया और मुकदमा कर दिया। मुकदमा सरदार भाई पटेल जीत गये और सारी संपत्ति गांधी जी के हरिजन समाज को सौंप दी।

सन् 1934 में सुभाष जी के पिता जी की मृत्यु हो गयी । जब उनके पिता जी मृत्युशय्या पर थे तब वे कराची से हवाई जहाज से कोलकाता लौट आये, मगर देर हो चुकी थी। कोलकाता आये ही थे कि उन्हें अंग्रेजी सरकार ने गिरफ्तार कर लिया और करावास में डाल दिया और बाद में यूरोप वापस भेज दिया।

History of Subhash Chandra Bose in Hindi

History of Subhash Chandra Bose in Hindi

Subhash Chandra Bose Essay in Hindi

👉 क्या आपको पता है कि प्रेम विवाह हुआ था सुभाष चंद्र जी का?

ऑस्ट्रिया में जब वे अपना इलाज करवा रहे थे तब उन्हें अपनी पुस्तक लिखने के लिए अंग्रेजी जानने वाले टाइपिस्ट की जरूरत पड़ी। उनकी मुलाकात अपने मित्र द्वारा एक महिला से हुई जिनका नाम एमिली शेंकल था। एमिली के पिता जी पशुओं के प्रसिद्ध चिकित्सक थे। ये बात सन् 1934 की थी। एमिली और सुभाष जी एक दूसरे की और आकर्षित हुए और प्रेम करने लगे। उन्होंने हिन्दू रीति रिवाज से सन् 1942 में विवाह कर लिया और उनकी एक पुत्री हुई । सुभाष जी ने जब वो बच्ची चार सप्ताह की थी बस तभी देखा था और फिर अगस्त सन् 1945 में ताद्वान में उनकी विमान दुर्घटना हो गयी और उनकी मृत्यु हो गयी जब उनकी पुत्री अनीता पौने तीन साल की थी।

अनीता अभी जीवित है और अपने पिता के परिवार जानो से मिलने के लिए भारत आती रहती हैं।

हरिपुरा कांग्रेस का अध्यक्ष पद

सन् 1938 में कांग्रेस का वार्षिक अधिवेशन हरिपुरा में हुआ। कांग्रेस के 51वां अधिवेशन था इसलिए उनका स्वागत 51 बैलों द्वारा खींचे गए रथ से किया गया। इस अधिवेशन में उनका भाषण बहुत ही प्रभाव शाली था। सन् 1937 में जापान ने चीन पर आक्रमण कर दिया । सुभाष जी ने चीनी जनता की सहायता के लिए डॉ. द्वारकानाथ कोटनिस के साथ चिकित्सा दल भेजने के लिए निर्णय लिया। भारत की स्वतंत्रता संग्राम में जापान से सहयोग लिया । कई लोगों का कहना था कि सुभाष जी जापान की कठपुतली और फासिस्ट कहते थे। मगर ये सब बातें गलती थी।

Essay on Subhash Chandra Bose in Hindi

👉 गांधी जी की जिद की वजह से कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा देना पड़ा

सन् 1938 में गांधी जी ने कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए सुभाष को चुना था लेकिन सुभाष जी की कार्य पद्धति उन्हें पसंद नहीं आयी और द्वितीय विश्वयुद्ध के बादल छा गए थे। सुभाष जी ने सोचा की क्यों न इंग्लैण्ड की इस कठिनाई का फायदा उठा कर भारत का स्वतंत्रता संग्राम में तेजी लाइ जाए, परन्तु गांधी जी इस से सहमत नहीं हुए।

सन् 1939 में जब दुबारा अध्यक्ष चुनने का वक्त आया तब सुभाष जी चाहते थे की कोई ऐसा इंसान अध्यक्ष पद पर बैठे जो किसी बात पर दबाव न बर्दाश्त करें और मानव जाति का कल्याण करें। जब ऐसा व्यक्ति सामने नहीं आया तो उन्होंने दुबारा अध्यक्ष बनने का प्रताव रखा तो गांधी जी ने मना कर दिया। दुबारा अध्यक्ष पद के लिए पट्टाभि सीतारमैया को चुना, मगर कवि रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने गांधी जी को खत लिखा और कहा की अध्यक्ष पद के लिए सुभाष जी ही सही है।

प्रफुल्लचंद्र राय और मेघनाथ जैसे महान वैज्ञानिक भी सुभाष की फिर अध्यक्ष के रूप मे देखना चाहते थे मगर महात्मा गांधी जी ने किसी की भी बात नहीं सुनी और कोई समझौता नहीं किया। जब महात्मा गांधी जी ने पट्टाभि सीतारमैया  का साथ दिया और उधर सुभाष जी ने भी चुनाव में अपना नाम दे दिया। चुनाव में सुभाष जी को 1580 मत और पट्टाभि सीतारमैया को 1377 मत प्राप्त हुए और सुभाष जी जीत गए। मगर गांधी जी ने पट्टाभि सीतारमैया हार को अपनी हार बताया और अपने कांग्रेस के साथियों से कहा की अगर वे सुभाष जी के तौर तरीके से सहमत नहीं है तो वो कांग्रेस से हट सकते है। इसके बाद कांग्रेस में 14 में से 12 सदस्यों ने इस्तीफा दे दिया। पंडित जवाहरलाल नेहरू तटस्थ बने और शरदबाबू सुभाष जी के साथ रहे।

सन् 1939 का वार्षिक अधिवेशन त्रिपुरी में हुआ। इस अधिवेशन के समय सुभाष जी को तेज बुखार हो गया और वो इतने बीमार थे कि उन्हें स्ट्रेचर पर लिटाकर अधिवेशन में लाया गया। गांधी जी और उनके साथी इस अधिवेशन में नहीं आये और इस अधिवेशन के बाद सुभाष जी ने समझौते के लिए बहुत कोशिश की मगर गांधी जी ने उनकी एक न सुनी। स्थिति ऐसी थी की वे कुछ नहीं कर सकते थे। आखिर में तंग आकर 29 अप्रैल 1939 को सुभाष जी ने इस्तीफा दे दिया।

नजराबंदी से पलायन : सुभाष चंद्र बोस की जीवनी

16 जनवरी 1941 को वे पुलिस को चकमा देते हुए एक पठान मोहम्मद जियाउद्दीन के वेश में अपने घर से निकले। शरद बाबू के बड़े बेटे शिशिर ने उन्हें अपनी गाडी में कोलकाता से दूर गोमो तक पहुँचाया।  गोमो रेलवे स्टेशन से फ्रंटियर मेल पकड़कर वे पेशावर पञ्च गए। उन्हें पेशावर में फॉरवर्ड ब्लॉक के एक सहकारी, मियां अकबर शाह मिले। मियां अकबर शाह ने उनकी मुलाकात, कीर्ति किसान पार्टी के भगतराम तलवार से करा दी। भगतराम के साथ सुभाष जी अफगानिस्तान की राजधानी काबुल की और निकल गए। इस सफर में भगतराम तलवार, रहमत खान नाम के पठान और सुभाष उनके गूंगे-बहरे चाचा जी बन गए। पहाड़ियों में पैदल चल कर सफर पूरा किया।

सुभाष जी काबुल में उत्तमचंद मल्होत्रा एक भारतीय व्यापारी के घर दो महिने रहे। वहां उन्होंने पहले रूसी दूतावास में प्रवेश पाना चाहा। इसमें सफलता नहीं मिली तब उन्होने जर्मन और इटालियन दूतावास में प्रवेश पाने की कोशिश की। इटालियन दूतावास में उनकी कोशिश सफल रही। जर्मन और इतालियन के दूतावास ने उनकी मदद की। अंत में आयरलैंड मैजेंटा नामक इटालियन व्यक्ति के साथ सुभाष काबुल से निकल कर रूस की राजधानी मास्को होते हुए जर्मनी राजधानी बर्लिन पहुचे।

Subhash Chandra Bose and Hitler Story in Hindi

👉 सुभाष बर्लिन में कई नेताओं के साथ मिले उन्होंने जर्मनी में भारतीय स्वतंत्रता संघठन और आजाद हिन्द रेडियो की स्थापना की।

👉 इसी दौरान सुभाष नेताजी के नाम से भी मशहूर हो गए। जर्मन के एक मंत्री एडम फॉन सुभाष जी के अच्छे मित्र बन गए।

👉 29 मई 1942 के दिन, सुभाष जर्मनी के सर्वोच्च नेता एडोल्फ हिटलर से मिले। लेकिन हिटलर को भारत के विषय में विशेष रूचि नहीं थी। उन्होंने सुभाष की मदद को कोई पक्का वादा नहीं किया।

हिटलर ने कई साल पहले माईन काम्फ नामक आत्मचरित्र लिखा था।

इस किताब में उन्होंने भारत और भारतीय लोगों की बुराई की थी। इस विषय पर सुभाष ने हिटलर से अपनी नाराजगी दिखाई। हिटलर ने फिर माफ़ी मांगी और माईन काम्फ़ के अगले संस्करण में वह परिच्छेद निकालने का वादा किया। अंत में सुभाष को पता लगा की हिटलर और जर्मनी से किये वादे झुटे निकले इसलिए 8 मार्च 1943 को जर्मनी के कील बंदरगाह में वे अपने साथी आबिद हसन सफरानी के साथ एक जर्मन पनडुब्बी में बैठकर पर्वी एशिया की और निकल दिए। वह जर्मनी पनडुब्बी उन्हें हिन्द महासागर में मैडागास्कर के किनारे तक लेकर गयी फिर वहां दोनों ने समुद्र में तैरकर जापानी पनडुब्बी तक पहुचे।

द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान किन्हीं भी दो देशों की नौसेनाओं की पनडुब्बियों के द्वारा नागरिकों की यह एक मात्र अदला-बदली हुई थी, वो जापनी पनडुब्बी उन्हें इंडोनेशिया के बंदरगाह तक पहुँचाकर आई।

सुभाष चन्द्र बोस की मृत्यु कैसे हुई?

सुभाष चन्द्र जी की मृत्यु का कारण क्या था

जापान द्वितीय विश्वयुद्ध में हार गया, सुभाष जी को नया रास्ता निकलना जरूरी था। उन्होंने रूस से मदद मांगने की सोच रखी और 18 अगस्त 1945 को नेताजी हवाई जहाज से मंचूरिया की तरफ जा रहे थे। इस सफर के दौरान वे लापता हो गए। इस दिन के बाद वे कभी किसी को दिखाई नहीं दिए। 23 अगस्त 1945 को रेडियो ने बताया कि सैगोन में नेताजी एक बड़े बमवर्षक वीमान से आ रहे थे कि 18 अगस्त को जापान के ताइहोकू हवाई अड्डे के पास उनका विमान दुर्घटीत हो गए।

विमान में उनके साथ सवार जापानी जनरल और कुछ अन्य लोग मारे गए। नेताजी गंभीर रूप से जल गए थे। वहां जापान में अस्पताल में ले जाया गया और जहाँ उन्हें  मृत घोषित कर दिया गया और उनका अंतिम संस्कार भी वही कर दिया गया। सितम्बर में उनकी अस्थियों को इकठ्ठा करके जापान की राजधानी टोकियो के रेंकोजी मंदिर में रख दी गयी।

भारतीय लेखागार ने सुभाष जी की मृत्यु 18 अगस्त 1945 को ताइहोकू के सैनिक अस्पताल में रात्रि 09:00 बजे हुई थी।
  • आजदी के बाद भारत सरकार ने इस घटना की जांच करने के लिए सन् 1956 और 1977 में दो बार जांच आयोग नियुक्त किया गया पर दोनों बार ये साबित हुआ की दुर्घटना में ही सुभाष जी की मृत्यु हुई थी।
  • सन् 1999 में मनोज कुमार मुखर्जी के नेतृत्व में तीसरा आयोग बनाया गया।
  • 2005 में ताइवान सरकार ने मुखर्जी आयोग को बता दिया की ताइवान की भूमि पर उस दिन कोई जहाज दुर्घटना हुई ही नहीं थी। मुखर्जी आयोग रिपोर्ट पेश की जिसमें सुभाष जी की मृत्यु का कोई साबुत पाया नहीं गया। लेकिन भारत के सरकार ने मुखर्जी आयोग की रिपोर्ट को खारिज कर दिया।

आज तक ये रहस्य ही बना हुआ है कि  आखिर सुभाष जी की मृत्यु कैसे हुई थी (Subhash Chandra Bose Death) और अभी 2018 से करीब एक दो साल पहले न्यूज रिपोर्ट द्वारा ये बात सामने आई थी कि सुभाष जी कुछ साल बाद भी जिन्दा थे और वेश बदल कर जी रहे थे। फैजाबाद के गुमनामी बाबा से लेकर छत्तीसगढ़ राज्य में जिला रायगढ़ तक में नेताजी के होने को लेकर कई दावे किये गए लेकिन कोई साबुत सामने नहीं आया।

सुभाष चंद्र बोस से संबंधित कुछ ऐसे प्रश्न है जिनके जवाब बहुत लोग छोड़ते रह जाते है, लेकिन उन्हें मिल नहीं पाते। इसलिए मैंने कुछ प्रश्न व उत्तर सुभाष चंद्र बोस जी से संबंधित नीचे लिख दिए हैं। कृपया करके उन्हें पढ़ें और अन्य किसी प्रश्न के लिए आप मुझे कमेंट के माध्यम से बताएं कि आपको उनके बारे में क्या जानना था और क्या चीज है जो आपको नहीं पता।

सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु कैसे हुई थी?

18 अगस्त 1945 को सुभाष चंद्र बोस जी ने देह त्याग कर दिया था। सुभाष चंद्र बोस की मौत एक विमान हादसे के कारण हुई थी। भारत सरकार की इस बात से सुभाष चंद्र बोस का परिवार काफी नाराज था और इसे एक गैर जिम्मेदाराना हरकत कहा गया था।

सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु कब और कैसे हुई?

सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु 18 अगस्त 1945 को हुई। मृत्यु का कारण विमान दुर्घटना था।

सुभाष चंद्र बोस का जन्म कहां हुआ था?

नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जन्म कटक में हुआ था।

सुभाष चंद्र बोस के कितने बच्चे थे?

सुभाष चंद्र बोस की केवल एक पुत्री थी।

सुभाष चंद्र बोस की पत्नी का नाम क्या था?

सुभाष चंद्र बोस की पत्नी का नाम एमिली शेंकल था।

सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु कब हुई थी?

18 अगस्त 1945 के बाद सुभाष चंद्र बोस का जीवन और मृत्यु आज तक एक रहस्य में बना हुआ है जो कि आज तक नहीं सुलझाए जा सकी है।

नेताजी की मृत्यु कब हुई थी?

18 अगस्त 1945

सुभाष चंद्र बोस का जन्म कब हुआ था?

23 जनवरी 1897

सुभाष चंद्र बोस के पिता का नाम क्या था?

जानकीनाथ बोस

सुभाष चंद्र बोस के माता पिता का नाम क्या था?

सुभाष चंद्र बोस के पि ता का नाम जानकीनाथ बोस और मां का नाम प्रभावती था।

सुभाष चंद्र बोस के पिता कौन थे?

जानकीनाथ बोस कटक शहर के मशहूर वकील थे।

सुभाष चंद्र बोस की कौन सी जयंती है 2021 में?

124वां जन्मदिन है।

सुभाष चंद्र बोस ने देश के लिए क्या क्या किया?

सुभाष चंद्र बोस ने देश के लिए बहुत कुछ किया है। स्वतंत्रता समय में भी उन्होंने अपना सर्वोत्तम योगदान दिया था।

स्वतंत्रता आंदोलन में सुभाष चंद्र बोस की क्या क्या भूमिका थी?

स्वतंत्रता आंदोलन में सुभाष चंद्र बोस की भूमिका एक क्रांतिकारी के रूप में थी और उन का योगदान हमारे लिए बहुत ही मूल्यवान है।

सुभाष चंद्र बोस ने सिंगापुर में कहां सबसे पहली बार आजाद हिंद सरकार की घोषणा की थी?

9 फ़रवरी 1943 को सुभाष चंद्र बोस पनडुब्बी द्वारा जर्मनी से जापानी नियंत्रण वाले सिंगापुर पहुंचे और पहुंचते ही जून 1943 में टोक्यो रेडियो से घोषणा की अंग्रेजों से यह आशा करना बिल्कुल व्यवसाय की भी अपना साम्राज्य छोड़ देंगे, हमें भारत के भीतर व बाहर सफलता के लिए खुद ही संघर्ष करना होगा।

आजाद हिंद सरकार की स्थापना कब हुई थी?

सन् 1993 में नेताजी सुभाष चंद्र बोस इंदापुर प्राकृतिक आजाद हिंद सरकार की स्थापना की।

1943 में इंडियन नेशनल आर्मी की स्थापना कहां हुई थी?

द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान वर्ष 1942 में भारत को अंग्रेजों के चंगुल से स्वतंत्रता दिलाने के लिए आजाद हिंद फौज या इंडियन नेशनल आर्मी आई एन ए (I. N. A.) नामक सेना का संगठन किया गया था। इस फौज का गठन जापान में हुआ था, इसकी स्थापना भारत के एक क्रांतिकारी नेता रासबिहारी बोस ने टोक्यो में की।

आजाद हिंद सरकार का गठन कब हुआ था?

21 अक्टूबर 1943 को सिंगापुर में सुभाष चंद्र बोस ने आजाद हिंद फौज के सर्वोच्च सेनापति की हैसियत से स्वतंत्र भारत की अस्थायी सरकार बनाई थी जिसे जापान ने 23 अक्टूबर 1943 को मान्यता दी थी।

हिंदू सरकार का राष्ट्रपति कौन थे?

1915 में भी गठित हो चुकी थी आजाद हिंद की सरकार। इससे पहले अक्टूबर 1915 में अफगानिस्तान में भारत की पहली स्वाधीन सरकार “आजाद हिन्द सरकार” का गठन हुआ था। राजा महेन्द्र प्रताप इसके राष्ट्रपति थे और मोहम्मद बरकतउल्ला प्रधानमंत्री ।

आजाद हिंद फौज की पराजय का मुख्य कारण क्या था?

यह अक्ष शक्तियों की सहायता से भारत को स्वाधीनता के लिए लड़ने वाले भारतीय राष्ट्रवादियों द्वारा बनाया गया था। जिसका नेतृत्व सुभाष चंद्र बोस कर रहे थे। जर्मनी से एक “यू बॉट”  से दक्षिण एशिया आए, फिर वहाँ से जापान गये। सुभाष चन्द्र बोस की मृत्यु के दावे के बाद ही इसकी सेना, आज़ाद हिन्द फ़ौज को पराजय मिली।

आज आजाद हिंद फौज के प्रथम कमांडर कौन थे?

40 हजार भारतीय युद्ध बंदियों में से इसमें 12 हजार युद्धबंदी शामिल थे जो मलाया अभियान में पकड़े गये थे या जिसने सिंगापुर में आत्मसमर्पण किया था। इस सेना का नेतृत्व मोहन सिंह के हाथ में था।

आजाद हिंद फौज की महिला शाखा का क्या नाम था?

नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने आज़ाद हिन्द फ़ौज की स्थापना  के साथ ही एक महिला बटालियन भी गठित की थी, जिसमें उन्होंने रानी झांसी रेजिमेंट का गठन किया था और उसकी कैप्टन लक्ष्मी सहगल बनीं थी।

आजाद हिंद के संस्थापक कौन थे?

सुभाष चंद्र बोस

आजाद हिंद फौज के संस्थापक कौन थे?

Mohan Singh

कौन से स्वतंत्रता सेनानी दो खंडों में विभाजित पुस्तक द इंडियन स्ट्रगल 1920 से 1942 के लेखक है?

Netaji Subhas Chandra Bose and Indian Freedom Struggle (Set in 2 Vols.)

Subhash Chandra Bose Poem in Hindi

सुभाष चंद्र बोस पर कविता

Netaji Subhash Chandra Bose Motivational Thoughts in Hindi

प्रिय देशवासियों सुभाष चन्द्र बोस के बारे में पूरी दुनिया अच्छे से जानती है और उनके द्वारा बोली गयी कुछ लाइंस नीचे लिखी गयी है। आपको सुभाष चन्द्र बोस की जानकारी भी इस लेख में मिल जाएगी। स्वतंत्रता की लड़ाई में सुभाष चन्द्र जी का बहुत बड़ा योगदान रहा है और उनकी सोच जिसने उन्हे सबसे अलग बनाया है। भारत की आजादी में सुभाष चंद्र बोस ने अपने साईंकोन को बहुत प्रेरित किया और उनके दिशा निर्देश पर लोगों ने अपने कदम रखे।

Netaji Subhash Chandra Bose Quotes in Hindi

‘तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा !’ यह कहना था भारत के महान स्वतंत्रता सेनानी “नेताजी सुभाष चन्द्र बोस” का।

नेताजी सुभाष चन्द्र बोस जिन्होंने  द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जापान के सहयोग से आज़ाद हिन्द फ़ौज की स्थापना की और देश में राज्य कर रहे अंग्रेज़ों के खिलाफ युद्ध का ऐलान किया, जिसने भारत को स्वतंत्र कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके द्वारा दिया गया “ जय हिन्द जय भारत का नारा”  भारत का राष्ट्रीय नारा बन गया हैं।

“एक सच्चे सैनिक को सैन्य प्रशिक्षण और आध्यात्मिक प्रशिक्षण दोनों की जरूरत होती है।”
“मेरे पास एक लक्ष्य है जिसे मुझे हर हाल में पूरा करना हैं। मेरा जन्म उसी के लिए हुआ है ! मुझे नैतिक विचारों की धारा में नहीं बहना है।”
“अपने पूरे जीवन में मैंने कभी खुशामद नहीं की है। दूसरों को अच्छी लगने वाली बातें करना मुझे नहीं आता।”

नेताजी सुभाष चंद्र बोस के अनमोल वचन

“आज हमारे पास एक इच्छा होनी चाहिए ‘मरने की इच्छा’, क्योंकि मेरा देश जी सके – एक शहीद की मौत का सामना करने की शक्ति, क्योंकि स्वतंत्रता का मार्ग शहीद के खून से प्रशस्त हो सके।”

“जब आज़ाद हिंद फौज खड़ी होती हैं तो वो ग्रेनाइट की दीवार की तरह होती हैं ; जब आज़ाद हिंद फौज मार्च करती है तो स्टीमर की तरह होती हैं।”
“राजनीतिक सौदेबाजी का एक रहस्य यह भी है जो आप वास्तव में हैं उससे अधिक मजबूत दिखते हैं।”

Netaji Subhash Chandra Bose Speech in Hindi

“अजेय (कभी न मरने वाले) हैं वो सैनिक जो हमेशा अपने राष्ट्र के प्रति वफादार रहते हैं, जो हमेशा अपने जीवन का बलिदान करने के लिए तैयार रहते हैं।” – सुभाष चंद्र बोस के विचार

“मैंने अपने अनुभवों से सीखा है ; जब भी जीवन भटकता हैं, कोई न कोई किरण उबार लेती है और जीवन से दूर भटकने नहीं देती।” – सुभाष चंद्र बोस के नारे

“इतिहास गवाह है की कोई भी वास्तविक परिवर्तन चर्चाओं से कभी नहीं हुआ।” – Subhash Chandra Bose Slogan in Hindi

“एक व्यक्ति एक विचार के लिए मर सकता है, लेकिन वह विचार उसकी मृत्यु के बाद, एक हजार जीवन में खुद को अवतार लेगा।”

“यह हमारा कर्तव्य है कि हम अपनी स्वतंत्रता का भुगतान अपने रक्त से करें। आपके बलिदान और परिश्रम के माध्यम से हम जो स्वतंत्रता जीतेंगे, हम अपनी शक्ति के साथ संरक्षित करने में सक्षम होंगे।”

NetaJi Subhash Chandra Bose Quotes In Hindi On Struggle & Success

“माँ का प्यार स्वार्थ रहित और होता सबसे गहरा होता है ! इसको किसी भी प्रकार नापा नहीं जा सकता।”
“हमारा कार्य केवल कर्म करना हैं ! कर्म ही हमारा कर्तव्य है ! फल देने वाला स्वामी ऊपर वाला है।”
“जीवन में प्रगति का आशय यह है की शंका संदेह उठते रहें, और उनके समाधान के प्रयास का क्रम चलता रहे।”

प्रिय पाठकों, यदि आपको श्री सुभाष चंद्र बोस की जीवनी का यह लेख अच्छा लगा हो तो अपने मित्रों आदि में शेयर करना न भूलें। आपके शेयर करने से हमें एक अलग ऊर्जा मिलती है और हम इसी तरह आपके लिए लेख लिखते रहेंगे। यदि आपको सुभाष चंद्र बोस के बारे में कुछ कहना है तो आप टिप्पणी बॉक्स में लिख कर भेज सकते हैं। “धन्यवाद”

– Biography of Subhash Chandra Bose in Hindi

Table of Contents

Similar Posts

एल्विश यादव का जीवन परिचय | Who Is Elvish Yadav In Hindi

एल्विश यादव का जीवन परिचय | Who Is Elvish Yadav In Hindi

एल्विश यादव कौन हैं? (Who is Elvish Yadav in Hindi) एल्विश यादव के बारे में सम्पूर्ण जानकारी? (Elvish Yadav Biography in Hindi), एल्विश यादव क्या करते हैं? एल्विश यादव के माता पिता कौन है ? एल्विश यादव की शादी कब है? (Elvish Yadav GF Name). Who is Elvish Yadav in Hindi ऐसे बहुत से प्रश्न…

राम नाथ कोविंद कौन है? (सम्पूर्ण जीवन परिचय)

राम नाथ कोविंद कौन है? (सम्पूर्ण जीवन परिचय)

रामनाथ कोविंद का जन्म 1 अक्टूबर 1945 को हुआ था और वो भारतीय राजनीतिज्ञ है। उनको 20 जुलाई 2017 को राष्ट्रपति चुना गया। 25 जुलाई 2017 को उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश जे एस खेहर (J.S. KHEHAR) ने भारत के राष्ट्रपति पद के लिए शापथ दिलाई थी। वे पहले राज्यसभा सदस्य और बिहार राज्य के…

ईशान खट्टर बायोग्राफी (जीवन परिचय) – Ishaan Khattar

ईशान खट्टर बायोग्राफी (जीवन परिचय) – Ishaan Khattar

आज हम आपको ईशान खट्टर बायोग्राफी बताएँगे| ईशान खट्टर का जीवन परिचय जानकर आपको बेहद अच्छा लगेगा आज के समय में एक नए जोश के साथ एक नया सितारा उभरा है. ईशान ने अपने फ़िल्मी करियर की शुरुआत तो बहुत समय पहले आई फिल्म “वाह लाइफ हो तो ऐसी” से शुरू कर दी थी| करण जौहर…

Parmish Verma Biography in Hindi – Life History & Success Story

Parmish Verma Biography in Hindi – Life History & Success Story

शीर्षक : Parmish Verma Biography in Hindi. शायद ही ये बताने की जरूरत है की परमीश वर्मा कौन है ? मैं आपको परमीश वर्मा के बारे में बताता हूँ| आज की युवा पीढ़ी परमीश वर्मा को अपना हीरो मानती है. परमीश वर्मा के गाने इतने मशहूर हो चुके हैं की बच्चे बच्चे के मुंह पे उनके…

अभिनेत्री कियारा आडवाणी की जीवनी, पति, फोटो

अभिनेत्री कियारा आडवाणी की जीवनी, पति, फोटो

कियारा आडवाणी एक भारतीय अभिनेत्री है। उन्होंने 2014 में आई फिल्म Fugly (फुगली) से शुरुआत की और आज एक अच्छी लोकप्रिय अभिनेत्री बन चुकी है। कियारा आडवाणी ने अभी तक करीब 12 फिल्मों में काम किया है लेकिन उन्हे सबसे ज्यादा लोकप्रियता 2019 में आई फिल्म Kabir Singh (कबीर सिंह) से मिली जिसमें उन्होंने शाहिद…

श्री गुरु तेग बहादुर जी का इतिहास और सम्पूर्ण जीवन परिचय

श्री गुरु तेग बहादुर जी का इतिहास और सम्पूर्ण जीवन परिचय

श्री गुरु तेग बहादुर जी का जीवन परिचय : सबसे पहले तो दोस्तों श्री गुरु तेग बहादुर जी के बारे में जानेंगे की वे कौन थे श्री गुरु तेग बहादुर जी ने क्या क्या किया अपने जीवन के सफर में ? गुरु तेग बहादुर इतने क्यों प्रसिद्ध थे की उन्हे सीख धर्म में सर्वश्रेष्ठ माना…

सराहनीय प्रयास….

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Subhas Chandra Bose Biography in Hindi – नेताजी सुभाषचन्द्र बोस की जीवनी

इंडिया बायोग्राफी ब्लॉग में आपका स्वागत है, इस बायो लेख में आप भारत के महान क्रन्तिकारी और जन सेवक नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के जीवन परिचय (Subhas Chandra Bose Biography in Hindi) से जुड़ी जानकारी प्राप्त करेंगे, चलिए जान लेते हैं की नेताजी कौन थे? नेताजी से जुड़े कुछ सवाल जो इंटरनेट पर हमेशा सर्च होते हैं जैसे – सुभाष चंद्र बोस की कहानी, सुभाष चंद्र बोस के बारे में निबंध, सुभाष चंद्र बोस की बेटी, सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु कैसे हुई, सुभाष चंद्र बोस का पूरा नाम और सुभाष चंद्र बोस को किसने मारा आदि। इस पोस्ट में आपको इनसब सवालों के जबाब देने का प्रयास किया गया है उम्मीद है आपको जानकारी पसंद आएगी।

जीवन परिचय – नेताजी सुभाष चंद्र बोस कौन थे?

नेताजी सुभाष चंद्र बोस जी भारत के महान क्रान्तिकारियो में से एक थे, इन्होने “आजाद हिन्द फ़ौज़” का निर्माण किया था, भारत को आजादी दिलाने में इनका भी काफी महत्वपूर्ण योग्यदान रहा है। इन्हें “आजाद हिन्द फ़ौज़” का सुप्रीम कमाण्डर भी कहा जाता है। यह 1921 से 1945 तक भारत की आजादी के लिए कार्य किये थे। इनका “तुम मुझे खून दो मैं तुम्हे आजादी दूँगा” नारा बहुत प्रसिद्ध रहा जो आजादी के समय काफी कामयाब रहा था। आजादी की लड़ाई में सुभाष चन्द्र बोस वर्ष 1921 से 1945 तक रहे थे।

Subhas Chandra Bose Biography in Hindi – संछिप्त परिचय

Subhas Chandra Bose Biography in Hindi

वास्तविक नाम – सुभाष चन्द्र बोस अन्य नाम – शुभाष चॉन्द्रो बोशु प्रचलित नाम – नेताजी जन्म – 23 जनवरी 1897 कटक, बंगाल प्रेसीडेंसी राष्ट्रीयता – भारतीय शिक्षा – बी०ए० (आनर्स) भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष – 1938 में प्रसिद्धि मिली – भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के अग्रणी सेनानी होने की वजह से पत्नी – एमिली शेंकल विवाह का वर्ष – 1937 दुनिया (जनता) को विवाह के बारे में जानकारी – 1993 में संतान – अनिता बोस फाफ भाई – शरतचन्द्र बोस भतीजा – शिशिर कुमार बोस कोलकाता में इनके नाम से कई संस्था और धार्मिक जगह है मृत्यु – 18 अगस्त 1945 को मृत्यु के बारे में आजतक किसी को सही जानकारी नहीं

सुभाष चन्द्र बोस की शिक्षा –

नेताजी ने अपनी शुरुआती शिक्षा कटक के प्रोटेस्टेण्ट स्कूल से की थी, उसके बाद इन्होने वर्ष 1909 में रेवेनशा कॉलेजियेट स्कूल में एडमिशन लिया था, इनके कॉलेज के प्रिन्सिपल बेनीमाधव दास इनसे काफी प्रभावित हुए थे, बताया जाता है की नेताजी ने महज १५ वर्ष की उम्र में ही विवेकानन्द जी के साहित्य का पूर्ण अध्ययन कर डाला था। इनके बारे में कहा जाता है की जब यह वर्ष 1915 में इंटर की पढाई कर रहे थे तो बीमार हो गए थे जिसकी वजह से इण्टरमीडियेट की परीक्षा द्वितीय श्रेणी में उत्तीर्ण किये थे। वर्ष 1916 में जब नेताजी दर्शनशास्त्र (ऑनर्स) में बीए की पढ़ाई कर रहे थे उस समय कॉलेज के अध्यापकों और छात्रों के बीच इनका झगड़ा हो गया था, जिसकी वजह से इनको प्रेसीडेंसी कॉलेज से एक साल के बाहर कर दिया गया था और परीक्षा भी नहीं देने दिया गया था।

बाद में समय बीतने के साथ नेताजी ने 49वीं बंगाल रेजीमेण्ट में भर्ती के लिए आवेदन किया, और भर्ती होने के लिए गए मगर आँखें खराब होने के कारण उनको सेना में नहीं लिया गया, बाद में किसी तरह से इन्होने स्कॉटिश चर्च कॉलेज में एडमिशन लिया मगर इनके मन में सेना में जाने की बात चलती रहती थी, इसी बीच खाली समय पाकर इन्होने टेरीटोरियल आर्मी की परीक्षा दे डाली जिसके बाद इनका सिलेक्शन फोर्ट विलियम के सेनालय में रँगरूट के रूप में हुआ, उसी समय यह खूब मेहनत करके वर्ष 1919 में बीए (ऑनर्स) की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण कर ली। उस ज़माने में कलकत्ता यूनिवर्सिटी में इनका दूसरा स्थान रहा था।

इनके पिताजी की इच्छा थी कि नेताजी आईएएस बने किन्तु उनकी उम्र को देखकर केवल एक बार ही परीक्षा पास करनी थी, जिसकी वजह से उनके पिताजी काफी परेशान रहते थे उसी बीच सुभाष चंद्र जी ने आईएएस की परीक्षा देने का फैसला किया और वे 15 सितम्बर 1919 को तैयारी करने इंग्लैण्ड चले गये। वहां लंदन में उनको एडमिशन नहीं मिला तो वह किट्स विलियम हाल में मानसिक एवं नैतिक विज्ञान की ट्राइपास (ऑनर्स) की परीक्षा का अध्ययन करने लगे बाद में इन्होने आईएएस की परीक्षा दी और वर्ष 1920 में इन्होने आईएएस में चौथा स्थान हासिल किया।

आईएएस की नौकरी से इस्तीफा –

उन दिनों की बात है जब नेताजी सुभाष चंद्र आईएएस की नौकरी करने लगे थे, तब कुछ दिनों बाद इनको एहसास होने लगा की आईसीएस बनकर वह अंग्रेजों की गुलामी कैसे कर पायेंगे? ऐसे में कुछ समय बाद इन्होने आईएएस की नौकरी से इस्तीफा दे दिया और देश को आजाद करवाने में लग गए।

स्वतन्त्रता संग्राम में प्रवेश –

नेताजी ने बंगाल के स्वतन्त्रता सेनानी देशबंधु चित्तरंजन दास के कार्यों से प्रेरित होकर स्वतन्त्रता संग्राम में प्रवेश लिया था, इंग्लैंड से उन्होंने दासबाबू को लेटर लिखकर देशबंधु जी के साथ काम करने की इक्ष्छा जताई थी। बाद में रवींद्रनाथ ठाकुर की सलाह पर नेताजी भारत आये और वर्ष 1921 में पहली बार महात्मा गाँधी से मिले और मुलाकात की। गाँधी जी ने सबसे पहले उनको दासबाबू के साथ काम करने की सलाह दी थी।

उन दिनों गाँधी जी द्वारा अंग्रेजों के खिलाफ असहयोग आंदोलन शुरू किये थे, उसी समय बंगाल में दासबाबू इस आंदोलन का नेतृत्व कर रहे थे, उन्हीं के साथ नेताजी भी थे वर्ष 1922 में दासबाबू ने कांग्रेस के अन्तर्गत स्वराज पार्टी की स्थापना की और अंग्रेज़ सरकार का विरोध करने के लिए वो कलकत्ता महापालिका में महापौर बन गए और नेताजी को महापालिका का प्रमुख कार्यकारी अधिकारी बनने का मौका मिला। यह कार्य नेताजी ने आईएएस की नौकरी छोड़ने के बाद किये थे।

उसके बाद बहुत जल्दी ही नेताजी एक महत्वपूर्ण युवा नेता बन गए, बाद में सुभाष जी ने जवाहरलाल नेहरू जी के साथ मिलकर युवकों की इण्डिपेण्डेंस लीग शुरू कर दी, 1927 में जब साइमन कमीशन भारत आया था तो उस समय नेताजी ने कोलकाता से इसका नेतृत्व किया था।

26 जनवरी 1931 को नेताजी ने कोलकाता में राष्ट्र ध्वज फहराकर और एक विशाल मोर्चे का नेतृत्व किया उसी समय पुलिस ने उन पर लाठी चलायी और उन्हें घायल कर जेल भेज दिया। जब सुभाष जेल में थे उसी समय गाँधी जी ने अंग्रजों से समझौता किया और सब कैदियों को रिहा करवा दिया, लेकिन अंग्रेजों ने भगत सिंह जैसे क्रान्तिकारियों को रिहा करने से साफ इन्कार कर दिया था, ऐसे में गाँधी जी ने भगत सिंह की फाँसी माफ कराने के लिये थोड़ी नरमी बरती जिसकी वजह से भगत सिंह को फांसी की सजा हो गयी, इसी बात पर नेताजी गाँधी से नाराज हो गए थे। सार्वजनिक जीवन में नेताजी को कुल 11 बार कारावास हुआ था।

रोचक जानकारी –

  • वर्ष 1933 से लेकर 1936 तक सुभाष यूरोप में रहे थे।
  • नेताजी इटली में वहां के नेता मुसोलिनी से मिले थे।
  • उसी समय आयरलैंड के नेता डी वलेरा सुभाष जी के काफी अच्छे दोस्त बन गये थे।
  • नेताजी यूरोप में ही विठ्ठल भाई पटेल से मिले थे।
  • सन् 1934 में इन्होने ऑस्ट्रिया की एक टाइपिस्ट महिला एमिली शेंकल से प्रेम विवाह किया था।
  • बताया जाता है की अगस्त 1945 में ताइवान में हुई तथाकथित विमान दुर्घटना में सुभाष की मौत हुई थी, यह बात आज भी एक गूढ़रहस्य है।
  • इन्होने जर्मनी में प्रवास एवं हिटलर से मुलाकात भी की थी।

आज़ाद हिन्द फौज का गठन –

आज़ाद हिन्द फौज के बारे में सबसे पहले पहल राजा महेन्द्र प्रताप सिंह द्वारा 29 अक्टूबर 1915 को अफगानिस्तान में की गयी थी, मूल रूप से उस वक्त यह आजाद हिन्द सरकार की सेना थी, जिसका लक्ष्य अंग्रेजों से लड़कर भारत को स्वतंत्रता दिलानी थी, उसी समय दक्षिण-पूर्वी एशिया में जापान के सहयोग द्वारा नेताजी सुभाषचंद्र बोस काफी लोगों (लगभग चालीस हजार से ज्यादा) भारतीय स्त्री-पुरुषों की प्रशिक्षित किया और एक नयी सेना बनायीं जिसका नाम “आजाद हिन्द फौज” रखा गया जिसका सुप्रीम कमांडर नेताजी को बनाया गया था।

नेताजी के महत्वपूर्ण नारे –

दिल्ली चलो। “तुम मुझे खून दो मैं तुम्हे आजादी दूँगा” ।

नेताजी से जुड़ी और जानकारी के लिए आप विकिपीडिया और यूट्यूब पर देखें।

Subhas Chandra Bose Biography in Hindi से जुड़ी जानकारी आपको कैसी लगी?

Leave a Reply Cancel reply

You must be logged in to post a comment.

हिंदी साहित्य मार्गदर्शन

  • Chanakya Neeti
  • Mahabharata Stories
  • प्रेमचंद्र
  • Panchatantra
  • लियो टोल्स्टोय
  • बेताल पच्चीसी
  • Rabindranath Tagore
  • Neeti Shatak
  • Vidur Neeti
  • Guest Posts

Header$type=social_icons

  • twitter-square
  • facebook-square

डाउनलोड करें नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की जीवनी (हिंदी में )। Download Biography of NetaJi Subhash Chandra Bose In Hindi

जीवन के विभिन्न पहलुओं पर नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के अनमोल विचार । NetaJi Subhash Chandra Bose Quotes In Hindi. The Original Title of the Book is "The Flaming Sword Forever Unsheathed : A Concise Biography Of Netaji Subhash Chandra Bose".

subhash chandra bose biography PDF,Netaji Biography Ebook.

जीवन के विभिन्न पहलुओं पर नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के अनमोल विचार । NetaJi Subhash Chandra Bose Quotes In Hindi

डाउनलोड करें  नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की जीवनी ( हिंदी में  )।  download biography of netaji subhash chandra bose in hindi.

  • योगी कथामृत मुफ्त डाउनलोड करें । Download Autobiography Of a Yogi In Hindi
  • चाणक्य नीति ईबुक हिंदी में मुफ्त डाउनलोड करें | Download Chanakya Neeti PDF In Hindi Free!!
  • Download Hindi & English Translation of Gitanjali By Rabindranath Tagore
  • श्रीमदभगवत गीता हिंदी और अंग्रेजी में मुफ्त डाउनलोड करें !! Download Bhagwat Geeta in Hindi & English  
  • भारत का संविधान हिंदी और अंग्रेजी में डाउनलोड करें मुफ्त!!|Download Constitution Of India FREE In Hindi & English !!  
  • डाउनलोड चाणक्य नीति | Download Chanakya Neeti

Categories:

Twitter

great collection..inspiring as previous collection! Thanks for sharing such a useful information.

Many thanks to,your team

Very Nice informayion

subhash chandra bose biography book in hindi

Best to best thank

Best to best

All book link send me 4 download [email protected]

best motivational blog

नए पोस्ट मुफ्त पाएँ

/fa-fire/ सदाबहार$type=list.

  • सम्पूर्ण चाणक्य नीति [ हिंदी में ] | Complete Chanakya Neeti In Hindi आचार्य चाणक्य एक ऐसी महान विभूति थे, जिन्होंने अपनी विद्वत्ता, बुद्धिमता और क्षमता के बल पर भारतीय इतिहास की धारा को बदल दिया। मौर्य...
  • चाणक्य नीति [ हिंदी में ]: प्रथम अध्याय | Chanakya Neeti [In Hindi]: First Chapter Acharya Chanakya Neeti First Chapter in Hindi चाणक्य नीति : प्रथम अध्याय | Chanakya Neeti In Hindi : First Chapter १.   तीनो ...
  • Shrimad Bhagwat Geeta In Hindi ~ सम्पूर्ण श्रीमद्‍भगवद्‍गीता Shrimad Bhagwat Geeta In Hindi श्रीमद्भगवद्‌गीता हिन्दुओं के पवित्रतम ग्रन्थों में से एक है। महाभारत के अनुसार कुरुक्षेत्र युद्ध मे...
  • चाणक्य नीति [ हिंदी में ] : द्वितीय अध्याय | Chanakya Neeti [In Hindi]: Second Chapter Chankya Hindi Quotes चाणक्य नीति : द्वितीय अध्याय | Chanakya Neeti In Hindi : Second Chapter 1.  झूठ बोलना, कठोरता, छल करना, ब...
  • Top 250+ Kabir Das Ke Dohe In Hindi~ संत कबीर के प्रसिद्द दोहे और उनके अर्थ गुरु गोविंद दोउ खड़े, काके लागूं पाँय । बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो मिलाय॥ भावार्थ: कबीर दास जी इस दोहे में कहते हैं कि अगर ह...
  • सफलता की कुंजी | Hindi Quotes About Success Success Quotes In Hindi "एक विचार लें. उस विचार को अपनी जिंदगी बना लें. उसके बारे में सोचिये, उसके सपने देखिये, उस विचा...
  • भारत का संविधान हिंदी और अंग्रेजी में डाउनलोड करें मुफ्त!!|Download Constitution Of India FREE In Hindi & English !! Constitution Of India किसी भी  देश के नागरिक का ये कर्त्तव्य है की वो अपने संविधान को  ठीक से जाने और समझे। " Download Hindi,Sans...
  • Complete Panchatantra Stories In Hindi ~ पंचतंत्र की सम्पूर्ण कहानियाँ! Complete Panchatantra Tales/Stories In Hindi संस्कृत नीतिकथाओं में पंचतंत्र का पहला स्थान माना जाता है।   इस ग्रंथ के रचयिता पं. वि...
  • Great Quotations By Swami Vivekananda In Hindi ~ स्वामी विवेकानन्द के अनमोल विचार Swami Vivekananda Quotes in Hindi स्वामी विवेकानन्द के व्याख्यान | स्वामी विवेकानन्द के वचन | स्वामी विवेकानन्द के सुविचार § ...
  • Best Shiv Khera Quotes In Hindi ~ शिव खेड़ा के अनमोल विचार | Shiv Khera Quotes in Hindi~ Inspirational Quotes By Shiv Khera In Hindi जीतने वाले अलग चीजें नहीं करते, वो चीजों को  अलग तरह से ...

सर्वश्रेष्ठ श्रेणियाँ!

  • अलिफ लैला (64)
  • कहावतें तथा लोकोक्तियाँ (11)
  • पंचतंत्र (66)
  • महाभारत की कथाएँ (60)
  • मुंशी प्रेमचंद्र (32)
  • रबीन्द्रनाथ टैगोर (22)
  • रामधारी सिंह दिनकर (17)
  • लियो टोल्स्टोय (13)
  • श्रीमद्‍भगवद्‍गीता (19)
  • सिंहासन बत्तीसी (33)
  • Baital Pachchisi (27)
  • Bhartrihari Neeti Shatak (48)
  • Chanakya Neeti (70)
  • Downloads (19)
  • Great Lives (50)
  • Great Quotations (183)
  • Great Speeches (11)
  • Great Stories (613)
  • Guest Posts (114)
  • Hindi Poems (143)
  • Hindi Shayari (18)
  • Kabeer Ke Dohe (13)
  • Panchatantra (66)
  • Rahim Ke Done (3)
  • Sanskrit Shlok (91)
  • Self Development (43)
  • Self-Help Hindi Articles (72)
  • Shrimad Bhagwat Geeta (19)
  • Singhasan Battisi (33)
  • Subhashitani (37)

Footer Logo

  • All The Articles
  • Write For Us
  • Privacy Policy
  • Terms Of Use

Footer Social$type=social_icons

Enter the characters you see below

Sorry, we just need to make sure you're not a robot. For best results, please make sure your browser is accepting cookies.

Type the characters you see in this image:

subhash chandra bose biography book in hindi

सुभाष चंद्र बोस का जीवन परिचय | Subhash Chandra Bose in Hindi

सुभाष चंद्र बोस भारत के महान स्वतंत्रता सेनानी में से एक थे। उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय सेना को दुबारा जीवन दिया, जिसे “आजाद हिंद फौज” के नाम से जाना जाता था, शुरुवात में यानी 1942 में इसे रास बिहारी बोस द्वारा गठित किया गया था। उन्होंने स्वतंत्रता से पहले लेबर पार्टी के सदस्यों के साथ भारत के भविष्य पर चर्चा करने के लिए लंदन का दौरा किया था।

Subhash Chandra Bose को असाधारण नेतृत्व कौशल और एक करिश्माई वक्ता के साथ सबसे प्रभावशाली स्वतंत्रता सेनानी माना जाता है। भारत के प्रति इनकी देशभक्ति ने कई भारतीयों के दिलों में छाप छोड़ी है। Subhash Chandra Bose का प्रसिद्ध नारा ‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा’ है। इन्होने भारत को आजाद कराने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, चलिए इनके (Subhash Chandra Bose in Hindi) के बारे में विस्तार से जानते हैं!

सुभाष चंद्र बोस का जन्म | Birth of Subhash Chandra Bose

सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी, 1897 को कटक, उड़ीसा में हुआ था Subhash Chandra Bose के पिता का नाम जानकीनाथ बोस और माता का नाम प्रभावती देवी था। जानकीनाथ बोस कटक के सफल वकीलों में से एक थे और उन्होंने “राय बहादुर” की उपाधि भी प्राप्त की थी। वह बाद में बंगाल विधान परिषद के सदस्य भी बने।

Subhash Chandra Bose एक बहुत ही बुद्धिमान और ईमानदार छात्र थे लेकिन खेलों में उनकी कभी ज्यादा दिलचस्पी नहीं थी। उन्होंने B.A. कलकत्ता के प्रेसीडेंसी कॉलेज से दर्शनशास्त्र से पूरा किया। वह स्वामी विवेकानंद की शिक्षाओं से बहुत प्रभावित थे और एक छात्र के रूप में अपने देशभक्ति के उत्साह के लिए जाने जाते थे। उन्होंने विवेकानंद को अपना आध्यात्मिक गुरु भी माना।

Subhash chandra bose in hindi

स्वामी विवेकानंद के माता पिता ने उनकी शिक्षा से प्रभावित होकर उन्हें भारतीय सिविल सेवा की तैयारी के लिए इंग्लैंड के कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय भेजा। 1920 में उन्होंने सिविल सेवा परीक्षा उत्तीर्ण की, लेकिन अप्रैल 1921 में, भारत में राष्ट्रवादी उथल-पुथल को सुनने के बाद, उन्होंने अपनी उम्मीदवारी से इस्तीफा दे दिया और भारत वापस आ गए।

राजनीतिक गतिविधियों में शुरुवाती जीवन | Early life in political activities

अंग्रेजों द्वारा साथी भारतीयों के शोषण के बारे में इतनी सारी घटनाओं को पढ़ने के बाद सुभाष चंद्र बोस ने अंग्रेजों से बदला लेने का फैसला किया। 1916 में सुभाष चंद्र बोस ने कथित तौर पर अपने एक ब्रिटिश शिक्षक E F Otten को पीटा क्यूंकि उस प्रोफेसर ने भारतीय छात्रों के खिलाफ नस्लीय टिप्पणी की थी।

परिणामस्वरूप, सुभाष चंद्र बोस को प्रेसीडेंसी कॉलेज से निष्कासित कर दिया गया और कलकत्ता विश्वविद्यालय से निकाल दिया गया। इस घटना ने सुभाष को विद्रोही-भारतीयों की सूची में ला दिया। दिसंबर 1921 में, बोस को प्रिंस ऑफ वेल्स की भारत यात्रा के उपलक्ष्य में समारोहों के बहिष्कार के आयोजन के लिए गिरफ्तार किया गया और जेल में डाल दिया गया।

वर्ष 1927 में जेल से रिहा होने के बाद, सुभाष चंद्र बोस कांग्रेस पार्टी के महासचिव बने और स्वतंत्रता के लिए जवाहरलाल नेहरू के साथ काम किया। वह महात्मा गांधी द्वारा शुरू किए गए असहयोग आंदोलन में शामिल हो गए, जिन्होंने कांग्रेस को एक शक्तिशाली अहिंसक संगठन बनाया।

आंदोलन के दौरान, उन्हें महात्मा गांधी ने चित्तरंजन दास के साथ काम करने की सलाह दी, जो उनके राजनीतिक गुरु बने। उसके बाद, वह एक युवा शिक्षक और बंगाल कांग्रेस के स्वयंसेवकों के कमांडेंट बन गए। उन्होंने ‘स्वराज’ अखबार शुरू किया।

1938 में Subhash Chandra Bose भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए और एक राष्ट्रीय योजना समिति का गठन किया, जिसने व्यापक औद्योगीकरण की नीति तैयार की। हालाँकि, यह गांधीवादी आर्थिक विचार के साथ मेल नहीं खाता था, जो कुटीर उद्योगों की धारणा से जुड़ा हुआ था और देश के अपने संसाधनों के उपयोग से लाभान्वित हो रहा था।

स्वतंत्रता संग्राम में कांग्रेस एक बड़ा संगठन था। सुभाष चंद्र बोस कांग्रेस में एक मजबूत नेता बन गए और उन्होंने पूरी पार्टी को अलग तरह से ढालने का साहसिक प्रयास किया। कांग्रेस पार्टी हमेशा उदार रही और कभी विरोध करने की स्थिति में नहीं रही। सौभाशबाबू ने इस व्यवहार का घोर विरोध किया। यह विरोध गांधी के दर्शन के खिलाफ था। इसलिए महात्मा गांधी और अन्य नेता आहत हुए और तब से उन्होंने उनका विरोध किया।

सुभाष चंद्र बोस और कांग्रेस :

स्वतंत्रता संग्राम में कांग्रेस एक बड़ा संगठन था। सुभाष चंद्र बोस कांग्रेस में एक मजबूत नेता बन गए और उन्होंने पूरी पार्टी को अलग तरह से ढालने का साहसिक प्रयास किया। कांग्रेस पार्टी हमेशा उदार रही और कभी विरोध करने की स्थिति में नहीं रही।

सुभाष चंद्र बोस ने उनके इस व्यवहार का घोर विरोध किया। यह विरोध गांधी के दर्शन के खिलाफ था। जिससे महात्मा गांधी और अन्य नेता आहत हुए और उन्होंने उनका विरोध किया।

कांग्रेस पार्टी ने उनके हर विचार का विरोध करने, उनका अपमान करने और उनकी बुलंद महत्वाकांक्षाओं को दबाने का एक मिशन शुरू कर दिया था। कांग्रेस के इस युद्धाभ्यास में उन्हें कई बार घुटन महसूस हुई। आमतौर पर सुभाष चंद्र बोस महात्मा गांधी के करीबी सहयोगी चुने जाते थे!

लेकिन इस बार सुभाष चंद्र बोस अधिक मतों से निर्वाचित हुए। इसने गांधी समूह का अपमान किया, जिससे स्वतंत्रता के लिए पार्टियों के अभियान के प्रति उनकी सोच कम हो गई। बाहरी समर्थन को स्वीकार करने और स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए उन्होंने दूर जर्मनी, जापान की यात्रा की!

सुभाष चंद्र बोस ने स्वतंत्रता पाने के लिए बाहर से सैनिकों को प्रेरित करने का निर्णय लिया। उस समय नेहरू ने कहा था, “अगर सुभाष बाहर से सैनिकों को लाकर भारत में प्रवेश करते तो मैं तलवार चलाने वाला और उनका विरोध करने वाला पहला व्यक्ति होता”।

सुभाष चंद्र बोस और आजाद हिंद फौज | Subhas Chandra Bose and Azad Hind Fauj

द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान स्वतंत्रता के लिए संघर्ष में एक महत्वपूर्ण विकास, आजाद हिंद फौज का गठन था, जिसे भारतीय राष्ट्रीय सेना या INA के रूप में भी जाना जाता है। रास बिहारी बोस, एक भारतीय क्रांतिकारी, जो भारत से भाग गए थे और कई वर्षों से जापान में रह रहे थे!

उन्होंने दक्षिण-पूर्व एशिया के देशों में रहने वाले भारतीयों के समर्थन से भारतीय स्वतंत्रता लीग की स्थापना की। जब जापान ने ब्रिटिश सेनाओं को हराया और दक्षिण-पूर्व एशिया के लगभग सभी देशों पर कब्जा कर लिया, तो लीग ने भारत को ब्रिटिश शासन से मुक्त कराने के उद्देश्य से युद्ध लड़ने वाले भारतीय कैदियों में से भारतीय राष्ट्रीय सेना का गठन किया।

जनरल मोहन सिंह, जो ब्रिटिश भारतीय सेना में अधिकारी रह चुके थे उन्होंने इस सेना को संगठित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस बीच सुभाष चंद्र बोस 1941 में भारत को स्वतंत्र कराने के काम से जर्मनी चले गए थे।

धुरी शक्तियों (मुख्य रूप से जर्मनी) ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस को अंग्रेजों से लड़ने के लिए सेना और अन्य मदद का आश्वासन दिया। इस समय तक जापान एक और मजबूत विश्व शक्ति के रूप में विकसित हो चुका था, जिसने एशिया में डच, फ्रेंच और ब्रिटिश उपनिवेशों के प्रमुख उपनिवेशों पर कब्जा कर लिया था।

नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने जर्मनी और जापान के साथ गठबंधन किया था। उन्हें यह विश्वास था कि पूर्व में उनकी उपस्थिति स्वतंत्रता संग्राम में उनके देशवासियों की मदद करेगी और उनकी गाथा का दूसरा चरण शुरू हुआ। ऐसा कहा जाता है कि उन्हें आखिरी बार 1943 की शुरुआत में जर्मनी में कील नहर के पास देखा गया था।

उन्होंने दुश्मन के इलाकों को पार करते हुए हजारों मील की दूरी तय करते हुए पानी के नीचे से सबसे खतरनाक यात्रा की थी। जो अटलांटिक, मध्य पूर्व, मेडागास्कर और हिंद महासागर में था। जमीन पर, हवा में लड़ाई लड़ी जा रही थी पहले चरण में उन्होंने एक जापानी पनडुब्बी तक पहुँचने के लिए एक रबर डिंगी में 400 मील की यात्रा की, जो उन्हें टोक्यो ले गई।

1943 में वह इंडियन इंडिपेंडेंस लीग का नेतृत्व करने के लिए सिंगापुर आए और भारतीय राष्ट्रीय सेना (आजाद हिंद फौज) का पुनर्निर्माण किया

ताकि इसे भारत की स्वतंत्रता के लिए एक प्रभावी साधन बनाया जा सके। आजाद हिंद फौज में लगभग 45,000 सैनिक शामिल थे, जिनमें युद्ध के भारतीय कैदी और दक्षिण-पूर्व एशिया के विभिन्न देशों में बसे भारतीय भी शामिल थे।

21 अक्टूबर 1943 को सुभाष बोस, जो अब नेताजी के नाम से लोकप्रिय हो गए थे, उन्होंने सिंगापुर में स्वतंत्र भारत (आजाद हिंद) की अस्थायी सरकार के गठन की घोषणा की। नेताजी अंडमान गए जिस पर जापानियों का कब्जा था और वहां भारत का झंडा फहराया।

1944 की शुरुआत में, आजाद हिंद फौज (INA) की तीन इकाइयों ने भारत के उत्तर-पूर्वी हिस्सों पर अंग्रेजों को भारत से बाहर निकालने के लिए हमले में भाग लिया। शाह नवाज खान आजाद हिन्द फौज के सबसे प्रमुख अधिकारियों में से एक थे सैनिकों ने भारत में प्रवेश किया और जमीन पर अपना माथा टेका और पूरी भावना के साथ अपनी मातृभूमि की पवित्र मिट्टी को चूमा। हालाँकि, आज़ाद हिंद फौज द्वारा भारत को आज़ाद करने का प्रयास विफल रहा।

भारतीय महिलाओं ने भी भारत की स्वतंत्रता के लिए गतिविधियों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। आजाद हिंद फौज की एक महिला रेजिमेंट का गठन किया गया, जो कैप्टन लक्ष्मी स्वामीनाथन की कमान में थी। इसे रानी झांसी रेजिमेंट कहा जाता था।

आजाद हिंद फौज भारत के लोगों के लिए एकता और वीरता का प्रतीक बन गई। नेताजी, जो भारत के स्वतंत्रता संग्राम के सबसे महान नेताओं में से एक थे उनकी जापान के आत्मसमर्पण के कुछ दिनों बाद एक हवाई दुर्घटना में मारे जाने की सूचना मिली थी।

लेकिन 17 मई 2006 को संसद में पेश किए गए न्यायमूर्ति मुखर्जी आयोग की रिपोर्ट में कहा गया कि Netaji Subhash Chandra Bose की विमान दुर्घटना में मृत्यु नहीं हुई थी और रेनकोजी मंदिर की राख उनकी नहीं थी। हालांकि, निष्कर्षों को भारत सरकार द्वारा खारिज कर दिया गया था।

द्वितीय विश्व युद्ध 1945 में फासीवादी जर्मनी और इटली की हार के साथ समाप्त हुआ। युद्ध में लाखों लोग मारे गए थे। जब युद्ध अपने अंत के करीब था और इटली और जर्मनी पहले ही हार चुके थे, यू.एस.ए ने जापान के दो शहरों-हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बम गिराए।

कुछ ही क्षणों में, ये शहर जल कर राख हो गए और 200,000 से अधिक लोग मारे गए। इसके तुरंत बाद जापान ने आत्मसमर्पण कर दिया। यद्यपि परमाणु बमों के उपयोग ने युद्ध को समाप्त कर दिया, इसने दुनिया में नए तनाव और अधिक से अधिक घातक हथियार बनाने के लिए एक नई प्रतिस्पर्धा को जन्म दिया, जो पूरी मानव जाति को नष्ट कर सकता है।

सुभाष चंद्र बोस को मिली पुरस्कार और उपलब्धियां | Subhash Chandra Bose Achievements

  • पश्चिम बंगाल विधान सभा के सामने सुभाष चन्द्र बोस की एक प्रतिमाबनाई गई, इसके साथ ही उनकी तस्वीर की झलक भारतीय संसद की दीवारों पर भी देखने को मिलती है।
  • सुभाष चंद्र बोस को भारत के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार भारत रत्नसे मरणोपरांत सम्मानित किया गया था। 
  • सुभाष चन्द्र बोस को लोकप्रिय संस्कृतियों में चित्रित किया गया है। वहीं ऐसी कई फिल्में भी हैं जो इस भारतीय राष्ट्रवाद नायक को दर्शाती है।

सुभाषचंद्र बोस जयंती | Subhash Chandra Bose Jayanti

23 जनवरी को ‘पराक्रम दिवस’ के तौर पर देशभर मे सुभाषचंद्र बोस जयंती को उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस मौके पर गणमान्य व्यक्तियो  तथा समुचे देशभर के लोगो द्वारा नेताजी सुभाषचंद्र बोस जी को श्रद्धांजली अर्पित की जाती है। Subhash Chandra Bose ने भारत को आजादी दिलाने के लिए केवल भारत नहीं बल्कि दूसरे देशों में जाकर भी भारत की आजादी के लिए संघर्ष किया !

उनके इन प्रयासों को कभी भुलाया नहीं जाए सकता !

  • स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय
  • A.P.J Abdul Kalam का जीवन परिचय
  • Kiran Bedi का जीवन परिचय

सुभाषचंद्र बोस के प्रेरणादायक विचार | Subhash Chandra Bose Quotes in Hindi

सुभाषचंद्र बोस ने भारत की आजादी में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई हमें ऐसे स्वतंत्रता सेनानी से सीखना चाहिए और उनके विचारों को अपने जीवन में उतारने का प्रयास करना चाहिए !

  • यदि आपको अस्थायी रूप से झुकना पड़े, तब वीरों की भांति झुकना !
  • हमारी राह भले ही भयानक और पथरीली हो, हमारी यात्रा चाहे कितनी भी कष्टदायक  हो, फिर भी हमें आगे बढ़ना ही है! सफलता के दिन दूर हो सकते है,पर उनका आना निश्चित है  !
  • समझोता परस्ती बड़ी अपवित्र वस्तु है !
  • जीवन में प्रगति का आशय यह है की शंका संदेह उठते रहें और उनके समाधान के प्रयास का क्रम चलता रहे !
  • तुम मुझे खून दो ,मैं तुम्हें आजादी दूंगा !
  • ये हमारा कर्तव्य है कि हम अपनी स्वतंत्रता का मोल अपने खून से चुकाएं! हमें अपने बलिदान और परिश्रम से जो आज़ादी मिलेगी,  हमारे अन्दर उसकी रक्षा करने की ताकत होनी चाहिए !
  • राष्ट्रवाद  मानव  जाति  के  उच्चतम आदर्श सत्य, शिव और  सुन्दर  से   प्रेरित  है !
  • आज हमारे अन्दर बस एक ही इच्छा होनी चाहिए, मरने की इच्छा ताकि भारत जी सके! एक शहीद की मौत मरने की इच्छा ताकि स्वतंत्रता का मार्ग शहीदों के खून से प्रशश्त हो सके !
  • भारत  में  राष्ट्रवाद  ने  एक ऐसी सृजनात्मक शक्ति  का  संचार  किया  है  जो सदियों से   लोगों  के  अन्दर   से  सुसुप्त पड़ी  थी !
  • संघर्ष ने मुझे मनुष्य बनाया, मुझमे आत्मविश्वास उत्पन्न हुआ जो पहले नहीं था !
  • मुझमे जन्मजात प्रतिभा तो नहीं थी,परन्तु कठोर परिश्रम से बचने की प्रवृति मुझमे कभी नहीं रही !
  • सुबह से पहले अँधेरी घडी अवश्य आती है, बहादुर बनो और संघर्ष जारी रखो ,क्योंकि स्वतंत्रता निकट है  !
  • मैंने अमूल्य जीवन का इतना समय व्यर्थ ही नष्ट कर दिया, यह सोच कर बहुत ही दुःख होता है कभी कभी यह पीड़ा असह्य हो उठती है, मनुष्य जीवन पाकर भी जीवन का अर्थ समझ में नहीं आया, यदि मैं अपनी मंजिल पर नहीं पहुँच पाया, तो यह जीवन व्यर्थ है इसकी क्या सार्थकता है?
  • मुझे जीवन में एक निश्चित लक्ष्य को पूरा करना है, मेरा जन्म उसी के लिए हुआ है मुझे नेतिक विचारों की धारा में नहीं बहना है !
  • याद  रखें अन्याय सहना और  गलत  के  साथ  समझौता  करना सबसे  बड़ा  अपराध है !
  • हमें अधीर नहीं होना चहिये, न ही यह आशा करनी चाहिए की जिस प्रश्न का उत्तर खोजने में न जाने कितने ही लोगों ने अपना सम्पूर्ण जीवन समर्पित कर दिया ,उसका उत्तर हमें एक-दो दिन में प्राप्त हो जाएगा  !

Subhash Chandra Bose Short Biography in Hindi :

सुभाष चंद्र बोस का जन्म23 जनवरी 1897
जन्म स्थान कटक, बंगाल प्रेसीडेंसी का ओड़िसा डिवीजन, ब्रिटिश भारत
शिक्षाबी०ए० (आनर्स), कलकत्ता विश्वविद्यालय
पिता का नाम जानकीनाथ बोस
माता का नाम प्रभावती देवी
राष्ट्रीयताभारतीय
प्रसिद्धि का कारणभारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के अग्रणी सेनानी तथा सबसे बड़े नेता
राजनैतिक पार्टीभारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (1921–1940)
फॉरवर्ड ब्लॉक (1939–1940)
बच्चेअनिता बोस फाफ

1 thought on “सुभाष चंद्र बोस का जीवन परिचय | Subhash Chandra Bose in Hindi”

Good day! This is my first visit to your blog! We are a team of volunteers and starting a new initiative in a community in the same niche. Your blog provided us beneficial information to work on. You have done a extraordinary job!

Leave a Comment जवाब रद्द करें

अगली बार जब मैं टिप्पणी करूँ, तो इस ब्राउज़र में मेरा नाम, ईमेल और वेबसाइट सहेजें।

योजना दर्पण

Yojanadarpan.in

Subhash Chandra Bose Biography in Hindi

Netaji Subhash Chandra Bose Biography in Hindi | नेताजी सुभाष चंद्र बोस जीवनी: जन्म, मृत्यु वर्षगांठ, उपलब्धियां, परिवार, शिक्षा के बारे में जानें

सुभाष चंद्र बोस (Subhash Chandra Bose Biography in Hindi) , जिन्हें आमतौर पर नेताजी सुभाष चंद्र बोस के नाम से जाना जाता है, भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन (Freedom Movement) में एक उल्लेखनीय व्यक्ति थे। 23 जनवरी, 1897 को भारत के कटक (Cuttack) में जानकीनाथ बोस और प्रभावती दत्त के घर जन्मे, उनकी जीवन कहानी अटूट समर्पण और बहादुरी में से एक है। 23 जनवरी को मनाया जाने वाला सुभाष चंद्र बोस का जन्मदिन अब भारत के स्वतंत्रता संग्राम में उनके अपार योगदान को स्वीकार करते हुए “ पराक्रम दिवस ” (Parakaram Diwas) ​​या “साहस दिवस” ​​के रूप में पहचाना जाता है।

नेताजी सुभाष चंद्र बोस (Netaji Subhash Chandra Bose) के विचारों को समझने और उनसे प्रेरित होने का अवसर न चूकें। आज ही अपनी प्रति प्राप्त करें और भारत की स्वतंत्रता के प्रति उनके दृष्टिकोण और अटूट प्रतिबद्धता के बारे में बहुमूल्य जानकारी प्राप्त करें। उन लोगों से जुड़ें जो इस प्रतिष्ठित नेता की बुद्धिमत्ता से सीखना चाहते हैं और उज्जवल भविष्य में योगदान देना चाहते हैं। यहां सुभाष चंद्र बोस की जीवनी ( Subhash Chandra Bose Biography in Hindi ), सुभाष चंद्र बोस के परिवार ( Subhash Chandra Bose Family ), सुभाष चंद्र बोस की शिक्षा (Subhash Chandra Bose Education) के बारे में और जानें।

Subhash Chandra Bose Biography (Wikipedia) in Hindi- Overview

लेख प्रकारइनफॉर्मेटिव आर्टिकल
भाषाहिंदी
साल2024
पूरा नाम सुभाष चंद्र बोस
जन्मतिथि23 जनवरी, 1897
जन्म स्थानकटक, ओडिशा
शिक्षारेवेनशॉ कॉलेजिएट स्कूल, कटक; प्रेसीडेंसी कॉलेज, कलकत्ता; कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय, इंग्लैंड
प्रसिद्ध नारा तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा’ 
संघ (राजनीतिक दल)भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस; फॉरवर्ड ब्लॉक; भारतीय राष्ट्रीय सेना
आंदोलनभारतीय स्वतंत्रता आंदोलन
राजनीतिक विचारधाराराष्ट्रवाद; साम्यवाद; फासीवाद-प्रमुख
धार्मिक मान्यताएँहिंदू धर्म

नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जीवनी (Subhash Chandra Bose Biography in Hindi )

भारत के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान कई नेताओं को बदनामी मिली। सुभाष चंद्र बोस इन नि:डर नेताओं में से एक थे और सभी उनका बहुत सम्मान करते थे। उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के सविनय अवज्ञा आंदोलन में भाग लिया। वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से भी जुड़े थे। 1943 में वे जापान गये और वहां आजाद हिंद फौज (Hind fauj) की स्थापना करने लगे।

उनकी दृढ़ता के कारण, सुभाष चंद्र बोस को “लौह पुरुष” की उपाधि दी गई थी। 1897 में कोलकाता में एक उच्च-मध्यम वर्गीय परिवार में सुभाष का जन्म हुआ। वह श्री जानकीनाथ बोस और श्रीमती प्रभावती दत्ता बोस के पुत्र थे। तेजस्वी, आत्मविश्वासी सुभाष को अपनी महत्ता का दृढ़ एहसास था। जब सुभाष चंद्र बोस का जन्म हुआ तब भारत अंग्रेजों द्वारा उपनिवेशित था और उन्होंने हमेशा एक स्वतंत्र भारत का सपना देखा था।

सुभाष चंद्र बोस की 6 बहनें और 7 भाई थे। अपने माता-पिता की 14 संतानों में से वह नौवीं संतान थे। जानकीनाथ बोस उनके पिता थे, और प्रभावती देवी उनकी माँ थीं। सुभाष चंद्र बोस (Subhash Chandra Bose) ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा गाँव के स्कूल में प्राप्त की। अपनी शिक्षा को आगे बढ़ाने के लिए उन्होंने कलकत्ता के प्रेसीडेंसी कॉलेज में दाखिला लिया। उन्होंने 1915 में इंटरमीडिएट की परीक्षा प्रथम स्थान से उत्तीर्ण की। सुभाष चंद्र बोस के माता-पिता चाहते थे कि वे भारतीय प्रशासनिक सेवा में भर्ती हों। सिविल सेवा की तैयारी के लिए उन्हें इंग्लैंड के कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय भेजा गया।

दिल से “स्वदेशी” सुभाष चंद्र बोस 1939 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हुए, लेकिन 1940 में पार्टी के नेताओं के साथ मौखिक विवाद के बाद चले गए। सुभाष का कहना है कि स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए हिंसा आवश्यक है क्योंकि इसे केवल अहिंसक तरीकों से प्राप्त नहीं किया जा सकता है। 1940 में सुभाष चंद्र बोस अपने घर से भागने में सफल रहे, जहां कांग्रेस छोड़ने के बाद ब्रिटिश अधिकारियों ने उन्हें नजरबंद कर दिया था। 1941 में आईएनए (इंडियन नेशनल आर्मी) की स्थापना से पहले, बोस ने दुनिया की यात्रा की और जर्मनी, इटली के प्रभावशाली नेताओं से मुलाकात की। , और जापान। वह एक भयंकर योद्धा और बुद्धिमत्ता का प्रतीक था। वह अपने उग्र भारतीय मंत्र, “मुझे खून दो, और मैं तुम्हें आजादी दूंगा” के लिए जाने जाते थे।

सुभाष चंद्र बोस जीवनी ( Subhash Chandra Bose Biography )

हमारे देश के सबसे महान और सबसे साहसी स्वतंत्रता सेनानियों में से एक नेताजी सुभाष चंद्र बोस थे। उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ देश की आजादी के लिए कई अभियानों में भाग लिया। उन्हें सच्ची देशभक्ति का प्रतीक माना जाता है। हालाँकि नेताजी सुभाष चंद्र बोस और महात्मा गांधी ने कभी विचारों का आदान-प्रदान नहीं किया, लेकिन उनका साझा उद्देश्य – “भारत की स्वतंत्रता” – एक ही था। क्रांतिकारी दल का नेतृत्व सुभाष चंद्र बोस ने किया, जबकि नरम दल का नेतृत्व महात्मा गांधी ने किया। नेताजी सुभाष चंद्र बोस बल प्रयोग से दूर रहने के बजाय उसका प्रयोग करने के लिए प्रसिद्ध थे।

1897 में सुभाष चंद्र बोस (bose) का जन्म कटक, उड़ीसा में हुआ था। उन्होंने एक बच्चे के रूप में भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के साथ पहचान की एक मजबूत भावना विकसित की और बाद में 1920 के दशक में इसमें शामिल हो गए। 1920 और 1930 के दशक के दौरान, उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC) के एक कट्टरपंथी गुट की देखरेख की, इसके नेता बनने के लिए पर्याप्त मान्यता और समर्थन प्राप्त किया। अंततः 1938 में उन्हें कांग्रेस का अध्यक्ष चुना गया, लेकिन कांग्रेस नेतृत्व के अन्य सदस्यों के साथ असहमति के कारण, उन्होंने अंततः 1939 में पार्टी छोड़ दी।

कांग्रेस (Congress) से उनके इस्तीफे के बाद ब्रिटिश सरकार ने उन्हें नजरबंद कर दिया था, लेकिन वह 1940 में भारत छोड़ने में कामयाब रहे। वह भाग निकले और जर्मनी चले गए, जहां उन्होंने ब्रिटिश कब्जे को उखाड़ फेंकने की अपनी योजना के लिए नाजी पार्टी का समर्थन और सहयोग हासिल किया। जर्मनी की सहायता से 1941 में फ्री इंडिया रेडियो की स्थापना की गई और बोस अक्सर उस स्टेशन पर भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन पर चर्चा करते थे। वह अपने करिश्मा और आकर्षण की बदौलत भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के लिए समर्थन की लहर जुटाने में सक्षम थे। ब्रिटिश कब्जे को ख़त्म करने की अपनी योजना के लिए उन्होंने नाज़ी पार्टी का समर्थन भी हासिल किया।

Subhash Chandra Bose Biography in Hindi

गणतंत्र दिवस (Republic Day) का समारोह अब हर साल सुभाष चंद्र बोस के जन्मदिन पर शुरू होगा। भारत सरकार ने यह चुनाव नेताजी के सम्मान में और स्वतंत्रता की लड़ाई के दौरान उनके बलिदान की याद में किया। भारत इस वर्ष सुभाष चंद्र बोस का 124वां जन्मदिन मना रहा है। सुभाष चंद्र बोस ने आज़ाद हिंद फ़ौज की स्थापना की और उन्हें “जय हिंदी” वाक्यांश गढ़ने का श्रेय दिया जाता है। उनके करिश्मा और सशक्त व्यक्तित्व ने कई लोगों को स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल होने के लिए प्रेरित किया और आज भी भारतीयों को प्रेरित करते हैं। ऐसा माना जाता है कि 18 अगस्त, 1945 को एक विमान दुर्घटना में उनकी मृत्यु हो गई। उन्हें देश के सबसे महान शहीदों में से एक के रूप में हमेशा याद किया जाएगा।

महान स्वतंत्रता सेनानी सुभाष चंद्र बोस ने भारत की आजादी में अहम भूमिका निभाई। युवाओं को देश की आजादी की लड़ाई में देश के बच्चों और युवाओं द्वारा दिए गए योगदान के बारे में शिक्षित करना और उनमें राष्ट्र के प्रति वफादारी की भावना पैदा करना महत्वपूर्ण है। हमें इतने बलिदानों से मिली आजादी को हमेशा याद रखना चाहिए।

नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जीवनी कहानी (Biography Story of Netaji Subhash Chandra Bose)

ब्रिटिश शासन के खिलाफ भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के नेता, सुभाष चंद्र बोस एक क्रांतिकारी स्वतंत्रता सेनानी थे। उनका जन्म 1897 में भारत के कटक में एक धनी, सुशिक्षित परिवार में हुआ था। बोस एक असाधारण छात्र थे जो कक्षा में सफल हुए और इंग्लैंड में कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में भाग लेने के लिए छात्रवृत्ति प्राप्त की।

इंग्लैंड में अपना अध्ययन पूरा करने के बाद, बोस भारत लौट आए और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हो गए, जो ब्रिटिश नियंत्रण से भारत की आजादी के लिए लड़ने वाला एक राजनीतिक संगठन था। वह पार्टी पदानुक्रम में तेजी से आगे बढ़े और स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्वपूर्ण व्यक्ति के रूप में उभरे। बोस ने स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए और अधिक आक्रामक उपायों का आह्वान किया और ब्रिटिश सरकार के मुखर आलोचक थे। उन्होंने सोचा कि भारत की स्वतंत्रता हासिल करने के लिए अहिंसक विरोध के अलावा और अधिक आक्रामक रणनीति की आवश्यकता है।

द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान अंग्रेजों के खिलाफ अपने संघर्ष में, बोस ने धुरी शक्तियों – जर्मनी, इटली और जापान पर ध्यान दिया। वह जर्मनी गए और एडोल्फ हिटलर से मिलकर भारत की स्वतंत्रता के लिए सैन्य सहायता और समर्थन मांगा। भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में प्रमुख योगदानकर्ता और भारतीय लोगों के बीच स्वतंत्रता के लिए समर्थन को सक्रिय करने वाली ताकतें बोस का नेतृत्व और आईएनए के प्रयास थे। लेकिन भारत के ब्रिटिश प्रभुत्व से मुक्त होने से कुछ महीने पहले, 1945 में एक विमान दुर्घटना में बोस की मृत्यु हो गई।

Also Read: गणतंत्र दिवस 2024 स्टेटस हिंदी में

नेताजी सुभाष चंद्र बोस का प्रारम्भिक जीवन | Netaji Subhash Chandra Bose Bio

सुभाष चंद्र बोस, जिन्हें अक्सर नेता जी के नाम से जाना जाता है, का प्रारंभिक जीवन दिलचस्प था और वे एक प्रतिष्ठित परिवार से आते थे:

  • सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी, 1897 को कटक में हुआ था, जो उस समय ब्रिटिश भारत का हिस्सा था। उनके माता-पिता जानकीनाथ बोस और प्रभावती देवी थे।
  • वह सार्वजनिक सेवा की मजबूत परंपरा वाले एक सुशिक्षित और प्रभावशाली परिवार से आते थे।

नेताजी सुभाष चंद्र बोस की शिक्षा | Netaji Subhash Chandra Bose Education

  • बोस एक असाधारण मेधावी छात्र थे। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा कटक में पूरी की और शिक्षा में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया।
  • बाद में वह उच्च अध्ययन के लिए इंग्लैंड चले गए और कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से दर्शनशास्त्र में सम्मान के साथ स्नातक की उपाधि प्राप्त की।

Also Read: गणतंत्र दिवस पर शानदार भाषण हिंदी में 2024

सुभाष चंद्र बोस का परिवार ( Netaji Subhash Chandra Bose Family)

  • सुभाष चंद्र बोस का परिवार भारत के स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रूप से शामिल था। उनके पिता, जानकीनाथ बोस, एक प्रमुख वकील और भारतीय स्वशासन के समर्थक थे।
  • उनके बड़े भाई, शरत चंद्र बोस भी स्वतंत्रता आंदोलन में गहराई से शामिल थे और उन्होंने अपने छोटे भाई के प्रयासों का समर्थन करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
  • बोस ने ऑस्ट्रियाई महिला एमिली शेंकल से शादी की और उनकी एक बेटी हुई जिसका नाम अनीता बोस पफैफ है।

सुभाष चंद्र बोस के प्रारंभिक जीवन और पारिवारिक पृष्ठभूमि ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में उनकी बाद की भागीदारी के लिए एक मजबूत आधार प्रदान किया। उनके पालन-पोषण ने उनमें अपने देश के प्रति कर्तव्य की भावना पैदा की और वह भारत की स्वतंत्रता के संघर्ष के सबसे प्रमुख और गतिशील नेताओं में से एक बन गए।

सुभाष चंद्र बोस जयंती ( Subhash Chandra Bose Jayanti)

सुभाष चंद्र बोस जयंती (Bose Jayanti), जिसे नेताजी जयंती के नाम से भी जाना जाता है, भारत में एक महत्वपूर्ण स्मारक दिन है। यह भारत के सबसे प्रभावशाली स्वतंत्रता सेनानियों और नेताओं में से एक, सुभाष चंद्र बोस की जयंती का प्रतीक है। इस अवसर के बारे में आपको यह जानने की आवश्यकता है:

सुभाष चंद्र बोस जयंती हर साल 23 जनवरी को मनाई जाती है, क्योंकि यह नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जन्मतिथि है।

यह दिन भारत के स्वतंत्रता संग्राम में सुभाष चंद्र बोस के जीवन और योगदान का सम्मान करने के लिए मनाया जाता है। बोस की स्वतंत्रता की निरंतर खोज और ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के खिलाफ लड़ाई में उनके नेतृत्व ने राष्ट्र पर एक स्थायी प्रभाव छोड़ा।

ध्वजारोहण: नेताजी को श्रद्धांजलि देने के लिए सरकारी संस्थानों, स्कूलों और विभिन्न संगठनों में राष्ट्रीय ध्वज फहराया जाता है।

सांस्कृतिक कार्यक्रम: स्कूल और कॉलेज अक्सर सुभाष चंद्र बोस के जीवन और विरासत पर केंद्रित सांस्कृतिक कार्यक्रम, वाद-विवाद और निबंध प्रतियोगिताओं का आयोजन करते हैं।

भाषण और सेमिनार: सार्वजनिक हस्तियां, इतिहासकार और विद्वान बोस के योगदान और आज के संदर्भ में उनकी प्रासंगिकता पर चर्चा करने के लिए भाषण देते हैं और सेमिनार आयोजित करते हैं।

नेताजी को याद करना: लोग सुभाष चंद्र बोस के प्रसिद्ध नारे जैसे “जय हिंद” और “तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा” को याद करते हैं।

वृत्तचित्र स्क्रीनिंग: इस दिन बोस के जीवन और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के बारे में वृत्तचित्र प्रदर्शित किए जा सकते हैं।

पुष्पांजलि: नेताजी सुभाष चंद्र बोस को समर्पित प्रतिमाओं और स्मारकों पर पुष्पांजलि अर्पित की जाती है।

सुभाष चंद्र बोस जयंती नेताजी जैसे स्वतंत्रता सेनानियों द्वारा किए गए बलिदान और भारत की स्वतंत्रता हासिल करने के लिए उनकी अटूट प्रतिबद्धता की याद दिलाती है। यह लोगों को देशभक्ति, निस्वार्थता और न्याय की खोज के सिद्धांतों पर विचार करने के लिए प्रोत्साहित करता है जिसने बोस के जीवन और कार्यों को निर्देशित किया।

सुभाष चंद्र बोस पुण्यतिथि (Subhash Chandra Bose Death Anniversary)

नेताजी (Netaji) सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु विवाद और रहस्य का विषय बनी हुई है। 18 अगस्त, 1945 को, द्वितीय विश्व युद्ध के अंतिम चरण के दौरान, ताइवान के ताइहोकू (अब ताइपेई) में एक विमान दुर्घटना में नेताजी सुभाष चंद्र बोस की असामयिक मृत्यु हो गई। वह कथित तौर पर जापान के कब्जे वाले मंचूरिया से टोक्यो की उड़ान पर था। उनकी मृत्यु के आसपास की परिस्थितियों ने कई सिद्धांतों और अटकलों को जन्म दिया है, कुछ का सुझाव है कि दुर्घटना का मंचन किया गया था, और अन्य का प्रस्ताव है कि वह बच गए और गुमनामी में रहे। स्थायी रहस्य के बावजूद, एक दुर्जेय स्वतंत्रता सेनानी के रूप में नेताजी की विरासत और भारत की स्वतंत्रता के लिए उनकी अथक खोज भारतीयों की पीढ़ियों को प्रेरित करती रहती है, और उनका योगदान भारत के इतिहास का अभिन्न अंग बना हुआ है।

सुभाष चंद्र बोस के बारे में 10 पंक्ति (Subhash Chandra Bose 10 Lines)

  • सुभाष चंद्र बोस एक प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी और भारतीय राष्ट्रवादी हैं, जिन्हें देश में हर कोई जानता है।
  • उनका जन्म ओडिशा के कटक में एक संपन्न परिवार में हुआ था। उनके पिता जानकीनाथ बोस एक सफल वकील थे और उनकी माँ प्रभावती देवी थीं।
  • बोस नौवीं संतान थे और उनके तेरह भाई-बहन थे।
  • सुभाष चंद्र बोस स्वामी विवेकानन्द की शिक्षाओं से काफी प्रभावित थे, जिसने उनके स्वतंत्रता संग्राम के प्रयासों में योगदान दिया।
  • बोस अपने राजनीतिक कौशल और सैन्य ज्ञान के लिए जाने जाते थे और अब भी जाने जाते हैं।
  • स्वतंत्रता के लिए भारतीय संघर्ष के दौरान उनके प्रयासों के लिए, उन्हें ‘नेताजी’ सुभाष चंद्र बोस कहा जाता था, जिसका अर्थ है ‘नेता’।
  • उनका एक उद्धरण, ‘तुम मुझे खून दो, और मैं तुम्हें आजादी दूंगा’, स्वतंत्रता संग्राम की गंभीरता को प्रतिबिंबित करने के लिए प्रसिद्ध हुआ।
  • उनकी भारतीय राष्ट्रीय सेना को आज़ाद हिंद फ़ौज भी कहा जाता था।
  • सविनय अवज्ञा आंदोलन में भाग लेने के कारण सुभाष चंद्र बोस को जेल में डाल दिया गया।
  • 1945 में ताइवान में एक विमान दुर्घटना में सुभाष चंद्र बोस का निधन हो गया।

सुभाषचंद्र बोस की पुस्तकें (Books of Subhash Chandra Bose)

  • एक भारतीय तीर्थयात्री
  • एक युवा के सपने
  • एमिली शेंकल को पत्र, (1934-1942)
  • आज़ाद हिन्द
  • चलो दिल्ली: दिल्ली की ओर
  • पूरे एशिया में बीकन
  • स्वतंत्रता के शब्द: एक राष्ट्र के विचार
  • भारतीय संघर्ष

सुभाषचंद्र बोस पर बनी फिल्म (Subhash Chandra Bose Movie’s)

  • ‘बोस: डेड/अलाइव’ (2017)
  • ‘राग देश’ (2017)
  • ‘गुमनामी’ (2019)
  • ‘नेताजी सुभाष चंद्र बोस: द फॉरगॉटन हीरो’ (2004)
  • ‘समाधि’  (1950)

सुभाष चंद्र बोस के अनमोल विचार एवं प्रसिद्ध भाषण (Anmol Thought And Famous Speech)

सुभाष चंद्र बोस के अनमोल विचार :

subhash chandra bose biography book in hindi

“याद रखिए सबसे बड़ा अपराध, अन्याय सहना और गलत के साथ समझौता करना है।”

“उच्च विचारों से कमजोरियां दूर होती हैं। हमें हमेशा उच्च विचार पैदा करते रहना चाहिए।”

“आशा की कोई न कोई किरण होती है, जो हमें कभी जीवन से भटकने नहीं देती।”
“सफलता दूर हो सकती है, लेकिन वह मिलती जरूर है।”
“अगर जीवन में संघर्ष न रहे, किसी भी भय का सामना न करना पड़े, तो जीवन का आधा स्वाद ही समाप्त हो जाता है।”
“जिसके अंदर ‘सनक’ नहीं होती, वह कभी महान नहीं बन सकता।”
“सफल होने के लिए आपको अकेले चलना होगा, लोग तो तब आपके साथ आते है, जब आप सफल हो जाते हैं।”
“आजादी मिलती नहीं बल्कि इसे छिनना पड़ता है।”
“चरित्र निर्माण ही छात्रों का मुख्य कर्तव्य है।”
“सफलता हमेशा असफलता के स्तंभ पर खड़ी होती है। इसीलिए किसी को भी असफलता से घबराना नहीं चाहिए।”
“मां का प्यार सबसे गहरा और स्वार्थरहित होता है। इसको किसी भी तरह से मापा नहीं जा सकता।”

सुभाष चंद्र बोस के प्रसिद्ध भाषण ( Famous Speech )

मंगलवार, 4 जुलाई, 1944 को नेताजी सप्ताह के पहले दिन बर्मा में भारतीयों की एक विशाल रैली में नेताजी सुभाष चंद्र बोस द्वारा दिया गया भाषण इस प्रकार है:

दोस्त! बारह महीने पहले “संपूर्ण लामबंदी” या “अधिकतम बलिदान” का एक नया कार्यक्रम भारतीयों के सामने रखा गया था… जिस दिन मैं आपको पिछले वर्ष के दौरान हमारी उपलब्धियों का लेखा-जोखा दूंगा और आने वाले वर्ष के लिए हमारी मांगों को आपके सामने रखूंगा। लेकिन, ऐसा करने से पहले, मैं चाहता हूं कि आप एक बार फिर महसूस करें कि आजादी हासिल करने का हमारे पास कितना सुनहरा अवसर है। अंग्रेज अब विश्वव्यापी संघर्ष में लगे हुए हैं और इस संघर्ष के दौरान उन्हें कई मोर्चों पर पराजय का सामना करना पड़ा है। इस प्रकार दुश्मन काफी कमजोर हो गया है, आजादी के लिए हमारी लड़ाई पांच साल पहले की तुलना में बहुत आसान हो गई है। ऐसा दुर्लभ एवं ईश्वर प्रदत्त अवसर सदियों में एक बार आता है। इसीलिए हमने अपनी मातृभूमि को ब्रिटिश दासता से मुक्त कराने के लिए इस अवसर का पूरा उपयोग करने की शपथ ली है।

मैं हमारे संघर्ष के परिणाम के बारे में बहुत आशान्वित और आशावादी हूं, क्योंकि मैं केवल पूर्वी एशिया में तीन मिलियन भारतीयों के प्रयासों पर निर्भर नहीं हूं। भारत के अंदर एक विशाल आंदोलन चल रहा है और हमारे लाखों देशवासी स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए अधिकतम कष्ट और बलिदान के लिए तैयार हैं।

दुर्भाग्य से, 1857 की महान लड़ाई के बाद से, हमारे देशवासी निहत्थे हैं, जबकि दुश्मन दांतों से लैस है। हथियारों के बिना और आधुनिक सेना के बिना, निहत्थे लोगों के लिए इस आधुनिक युग में स्वतंत्रता हासिल करना असंभव है। प्रोविडेंस की कृपा से और उदार निप्पॉन की मदद से, पूर्वी एशिया में भारतीयों के लिए आधुनिक सेना बनाने के लिए हथियार प्राप्त करना संभव हो गया है। इसके अलावा, पूर्वी एशिया में भारतीय स्वतंत्रता हासिल करने के प्रयास में एक व्यक्ति के रूप में एकजुट हैं और सभी धार्मिक और अन्य मतभेद जो अंग्रेजों ने भारत के अंदर पैदा करने की कोशिश की है, वे केवल पूर्वी एशिया में ही मौजूद नहीं हैं। परिणामस्वरूप, अब हमारे पास हमारे संघर्ष की सफलता के पक्ष में परिस्थितियों का एक आदर्श संयोजन है – और जो कुछ भी चाहिए वह यह है कि भारतीयों को स्वतंत्रता की कीमत चुकाने के लिए स्वयं आगे आना चाहिए।

“टोटल मोबिलाइजेशन” कार्यक्रम के अनुसार मैंने आप लोगों से लोगों, धन और सामग्री की मांग की। पुरुषों के संबंध में, मुझे आपको यह बताते हुए खुशी हो रही है कि मुझे पहले ही पर्याप्त भर्तियां मिल चुकी हैं। पूर्वी एशिया के हर कोने से, चीन, जापान, इंडोचाइना, फिलीपींस, जावा, बोर्नियो, सेलेब्स, सुमात्रा, मलाया, थाईलैंड और बर्मा से रंगरूट हमारे पास आए हैं। मेरी एकमात्र शिकायत यह है कि बर्मा में भारतीयों की आबादी को देखते हुए, बर्मा से भर्ती होने वालों की संख्या बड़ी होनी चाहिए थी। इसलिए, इस भाग से और अधिक भर्ती करने के लिए आपको भविष्य में और भी अधिक प्रयास करना होगा।

पैसे के संबंध में, आपको याद होगा कि मैंने पूर्वी एशिया में भारतीयों से 30 मिलियन की मांग की थी। वास्तव में मुझे इस बीच बहुत कुछ मिला है और जो व्यवस्थाएं की गई हैं, उससे मुझे विश्वास है कि भविष्य में धन का निरंतर प्रवाह बना रहेगा।

भारत के अंदर 20 वर्षों से अधिक के अपने काम के अनुभव से, मैं यहां किए गए काम के मूल्य और मूल्य का सही आकलन कर सकता हूं। इसलिए, आपने मुझे जो हार्दिक सहयोग दिया है, उसके लिए मैं आपको हार्दिक धन्यवाद देता हूं। साथ ही, मैं आपका ध्यान उस काम की ओर भी आकर्षित करना चाहता हूं जो अभी भी हमारे सामने है। आपको अधिक जोश और ऊर्जा के साथ जन, धन और सामग्री जुटाना जारी रखना होगा, विशेष रूप से आपूर्ति और परिवहन की समस्या को संतोषजनक ढंग से हल करना होगा।

दूसरे, हमें मुक्त क्षेत्रों में प्रशासन और पुनर्निर्माण के लिए सभी श्रेणियों के अधिक पुरुषों और महिलाओं की आवश्यकता है। हमें ऐसी स्थिति के लिए तैयार रहना चाहिए जिसमें दुश्मन किसी विशेष क्षेत्र से हटने से पहले बेरहमी से झुलसी हुई पृथ्वी नीति को लागू करेगा और नागरिक आबादी को भी वहां से हटने के लिए मजबूर करेगा जैसा कि बर्मा में करने का प्रयास किया गया था।

अंतिम, लेकिन सबसे महत्वपूर्ण, लड़ाई के मोर्चों पर जवानों और आपूर्ति को भेजने की समस्या है। यदि हम ऐसा नहीं करते हैं, तो हम मोर्चों पर अपनी सफलता बरकरार रखने की उम्मीद नहीं कर सकते। न ही हम भारत में अधिक गहराई तक प्रवेश की आशा कर सकते हैं।

आपमें से जो लोग घरेलू मोर्चे पर काम करना जारी रखेंगे, उन्हें यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि पूर्वी एशिया – और विशेष रूप से बर्मा – मुक्ति संग्राम के लिए हमारा आधार है। यदि यह आधार मजबूत नहीं होगा तो हमारी युद्ध शक्तियाँ कभी विजयी नहीं हो सकेंगी। याद रखें कि यह एक “संपूर्ण युद्ध” है- और केवल दो सेनाओं के बीच का युद्ध नहीं है। इसीलिए पूरे एक साल से मैं पूर्व में “टोटल मोबिलाइजेशन” पर इतना जोर दे रहा हूं।

एक और कारण है कि मैं चाहता हूं कि आप घरेलू मोर्चे की ठीक से देखभाल करें। आने वाले महीनों के दौरान मैं और कैबिनेट की युद्ध समिति के मेरे सहयोगी अपना पूरा ध्यान लड़ाई के मोर्चे पर लगाना चाहते हैं – और साथ ही भारत के अंदर क्रांति लाने के काम पर भी। नतीजतन, हम पूरी तरह से आश्वस्त होना चाहते हैं कि हमारी अनुपस्थिति में भी आधार पर काम सुचारू और निर्बाध रूप से चलता रहेगा।

दोस्तों, एक साल पहले, जब मैंने आपसे कुछ मांगें की थीं। मैंने आपसे कहा था कि यदि आप मुझे “संपूर्ण लामबंदी” देंगे, तो मैं आपको “दूसरा मोर्चा” दूंगा। मैंने वह प्रतिज्ञा पूरी कर ली है. हमारे अभियान का पहला चरण ख़त्म हो चुका है. हमारे विजयी सैनिकों ने, निप्पोनी सैनिकों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर लड़ते हुए, दुश्मन को पीछे धकेल दिया है और अब हमारी प्रिय मातृभूमि की पवित्र धरती पर बहादुरी से लड़ रहे हैं।

अब जो कार्य सामने है उसके लिए अपनी कमर कस लो। मैंने तुमसे आदमी, पैसा और सामान माँगा था। वे मुझे प्रचुर परिमाण में मिले हैं। अब मैं आपसे और अधिक की मांग करता हूं। आदमी, पैसा और सामग्रियाँ अकेले विजय या स्वतंत्रता नहीं दिला सकतीं। हमारे पास वह उद्देश्य-शक्ति होनी चाहिए जो हमें बहादुरी भरे कार्यों और वीरतापूर्ण कारनामों के लिए प्रेरित करे। भारत को आज़ाद देखने और जीने की इच्छा रखना आपके लिए एक घातक गलती होगी – सिर्फ इसलिए कि जीत अब आपकी पहुंच में है। यहां किसी को भी स्वतंत्रता का आनंद लेने के लिए जीने की इच्छा नहीं होनी चाहिए। एक लंबी लड़ाई अभी भी हमारे सामने है. आज हमारी केवल एक ही इच्छा होनी चाहिए-मरने की इच्छा, ताकि भारत एक शहीद की मृत्यु का सामना करने की इच्छा को जी सके, ताकि स्वतंत्रता का मार्ग शहीदों के खून से प्रशस्त हो सके।

दोस्त! मुक्ति संग्राम में मेरे साथियों! आज मैं आपसे सबसे बढ़कर एक चीज़ की माँग करता हूँ। मैं तुमसे रक्त की माँग करता हूँ। यह खून ही है जो दुश्मन द्वारा बहाए गए खून का बदला ले सकता है। यह केवल खून ही है जो स्वतंत्रता की कीमत चुका सकता है। मुझे खून दो और मैं तुम्हें आजादी का वादा करता हूं।

सुभाष चंद्र बोस की जीवनी संक्षेप (Subhash Chandra Bose Biography Hindi Me)

हमारे देश के सबसे क्रांतिकारी और सम्मानित स्वतंत्रता सेनानियों में से एक माने जाने वाले, सुभाष चंद्र बोस वास्तव में साहस और निस्वार्थता का एक उत्कृष्ट उदाहरण हैं। जब भी हम इस महान व्यक्ति का नाम सुनते हैं तो उनका प्रसिद्ध उद्धरण हमारे दिमाग में कौंध जाता है, “तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा” प्यार से उन्हें “नेताजी” कहा जाता था, उनका जन्म 23 जनवरी 1897 को ओडिशा (Odisha) में जानकीनाथ बोस के घर हुआ था। 

जानकीनाथ बोस एक प्रतिष्ठित और कलकत्ता के सबसे संपन्न वकीलों में से एक थे और सुश्री प्रभाविनीत देवी एक धर्मपरायण और धर्मनिष्ठ महिला थीं। सुभाष चंद्र बोस बचपन में एक प्रतिभाशाली छात्र थे और उनकी बुद्धिमत्ता ने उन्हें मैट्रिक परीक्षा में सफल होने में मदद की। भगवत गीता और स्वामी विवेकानन्द की शिक्षाओं का उन पर गहरा प्रभाव पड़ा।

उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय के प्रेसीडेंसी कॉलेज से बीए (ऑनर्स) दर्शनशास्त्र की पढ़ाई की और आगे चलकर उन्होंने भारतीय सिविल सेवा की तैयारी के लिए कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में दाखिला लिया और उनका चयन भी हो गया, लेकिन जलियांवाला बाग नरसंहार ने उनकी देशभक्ति को जगा दिया और उन्हें इसके लिए प्रेरित किया गया। भारत उस समय जिस उथल-पुथल से गुजर रहा था, उसे दूर करने के लिए उन्होंने सिविल सेवाओं का रास्ता छोड़ दिया क्योंकि वह ब्रिटिश सरकार की सेवा नहीं करना चाहते थे और वापस आने पर उन्होंने एक क्रांतिकारी स्वतंत्रता सेनानी के रूप में अपनी यात्रा शुरू की। 

उन्होंने सबसे पहले भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में काम करके अपने राजनीतिक करियर की नींव रखी, जिसका नेतृत्व महात्मा गांधी ने किया था, जिन्होंने उस समय अपनी अहिंसा की विचारधारा से सभी को प्रभावित किया था। नेताजी ने शुरुआत में देशबंधु चित्तरंजन दास के साथ भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के लिए कलकत्ता में काम किया था। जिन्हें उन्होंने 1921-1925 की समयावधि के दौरान राजनीति में उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए अपना गुरु माना। क्रांतिकारी आंदोलनों में सक्रिय भागीदारी के कारण बोस और सी.आर. दास को विभिन्न अवसरों पर जेल में डाल दिया गया था।

नेताजी ने सी.आर. दास के साथ मुख्य कार्यकारी के रूप में काम किया, जो उस समय कलकत्ता के मेयर के रूप में चुने गए थे। वर्ष 1925 में, सी.आर. दास की मृत्यु हो गई और इससे उन्हें गहरा सदमा लगा। नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने कांग्रेस पार्टी की तरह चरणबद्ध तरीके से नहीं बल्कि हमारे देश की पूर्ण स्वतंत्रता का पुरजोर समर्थन किया, जो हमारे देश के लिए डोमिनियन स्टेटस पर सहमत हुई थी। अहिंसा और सहयोग की विचारधारा के विपरीत, बोस अपने दृष्टिकोण में अधिक कट्टरपंथी थे और उनका मानना था कि आक्रामकता निश्चित रूप से स्वतंत्रता प्राप्त करने में सहायता करेगी।

धीरे-धीरे और लगातार, बोस भी जनता के बीच शक्तिशाली और प्रभावशाली होते जा रहे थे, और इस वजह से उन्हें दो बार भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में चुना गया था, लेकिन उनके और महात्मा गांधी के बीच वैचारिक मतभेदों के कारण यह अल्पकालिक था क्योंकि गांधीजी थे। अहिंसा के प्रबल समर्थक थे जबकि दूसरी ओर, बोस आक्रामकता और हिंसक प्रतिरोध के प्रबल समर्थक थे।

उन्होंने भगवद गीता और स्वामी विवेकानन्द की शिक्षाओं पर बहुत विश्वास किया और यही उनकी प्रेरणा का मुख्य स्रोत था। एक प्रसिद्ध उद्धरण है जो कहता है कि “दुश्मन का दुश्मन एक दोस्त होता है” और उन्होंने इस दृष्टिकोण का फायदा उठाया क्योंकि हम जानते हैं कि उनके हिंसक प्रतिरोध के कारण उन्हें अंग्रेजों द्वारा 11 बार कैद किया गया था और जब उन्हें 1940 के आसपास कैद किया गया था, तो वे चतुराई से भाग निकले थे। जेल से जर्मनी, बर्मा और जापान जैसे देशों में गए और पूरे नौ गज पैदल चलकर भारतीय राष्ट्रीय सेना (INA) की नींव रखी, जिसे ‘आजाद हिंद फौज’ भी कहा जाता है।

वह पूर्वोत्तर भारत के कुछ हिस्सों पर हमला करने और कब्जा करने में अत्यधिक सफल रहा और अब स्थिति उसके पक्ष में थी लेकिन यह अल्पकालिक था क्योंकि हिरोशिमा और नागासाकी बमबारी के कारण जापान ने आत्मसमर्पण कर दिया था और यह एक बड़ा मोड़ था। नेताजी अपने उद्देश्य के प्रति दृढ़ और दृढ़ थे और आगे की रणनीति तैयार करने के लिए उन्होंने टोक्यो जाने का फैसला किया, लेकिन दुर्भाग्यवश, उनका विमान बीच रास्ते में ताइपे में दुर्घटनाग्रस्त हो गया। हालांकि उनकी मौत को आज भी एक रहस्य माना जाता है और कई लोग आज भी मानते हैं कि नेताजी जीवित हैं।

संक्षेप में कहें तो, सुभाष चंद्र बोस एक अनुकरणीय नेता थे, जिनमें अपने देश के प्रति अद्वितीय और अथाह देशभक्ति थी और जैसा कि हमने शुरू से अंत तक उनकी यात्रा का वर्णन किया है, यह विश्वास के साथ कहा जा सकता है कि स्वतंत्रता संग्राम में उनका योगदान अपरिहार्य और अविस्मरणीय है।

भारत के सबसे प्रिय और प्रतिष्ठित स्वतंत्रता सेनानी सुभाष चंद्र बोस या नेताजी अपने जोशीले, प्रेरक भाषणों के लिए जाने जाते थे। 1944 में बर्मा में अपनी भारतीय राष्ट्रीय सेना के सदस्यों को दिया गया उनका भाषण, ‘तुम मुझे खून दो और मैं तुम्हें आजादी का वादा करता हूं’, सबसे लोकप्रिय में से एक है।

FAQ’s: Subhash Chandra Bose Biography in Hindi

Q. सुभाष चंद्र बोस की जीवनी संक्षेप में क्या है.

सुभाष चंद्र बोस एक प्रमुख भारतीय राष्ट्रवादी नेता थे जिन्होंने ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के खिलाफ भारत के स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनका जन्म 23 जनवरी, 1897 को हुआ था और 18 अगस्त, 1945 को रहस्यमय परिस्थितियों में उनकी मृत्यु हो गई। बोस को भारतीय राष्ट्रीय सेना (आईएनए) में उनके नेतृत्व और उनके प्रसिद्ध नारे, ‘तुम मुझे खून दो, और मैं तुम्हें आजादी दूंगा’ के लिए जाना जाता है।

Q. नेताजी सुभाष चंद्र बोस के बारे में महत्वपूर्ण बातें क्या हैं?

नेताजी सुभाष चंद्र बोस के बारे में महत्वपूर्ण बातें इस प्रकार हैं: उग्र स्वतंत्रता कार्यकर्ता, फॉरवर्ड ब्लॉक के संस्थापक नेता, ब्रिटिश शासन के खिलाफ उग्रवादी प्रतिरोध की वकालत की, द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान धुरी शक्तियों से मदद मांगी, अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई में आईएनए का नेतृत्व किया, 1945 में रहस्यमय तरीके से मृत्यु हो गई।

Q. सुभाष चंद्र बोस ने आज़ादी के लिए क्या किया?

बोस ने अपना जीवन भारत के स्वतंत्रता संग्राम के लिए समर्पित कर दिया। उन्होंने विरोध प्रदर्शनों का आयोजन किया, उग्रवादी प्रतिरोध की वकालत की, अंतर्राष्ट्रीय समर्थन मांगा और द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान दक्षिण पूर्व एशिया में अंग्रेजों के खिलाफ सैन्य अभियान में आईएनए का नेतृत्व किया।

Leave a Comment Cancel reply

Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment.

नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की जीवनी Subhash Chandra Bose Biography Hindi

इस लेख में आप नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की जीवनी (Netaji Subhash Chandra Bose Biography in Hindi) पढेंगे। उनका प्रारंभिक जीवन, शिक्षा, महान कार्य, व मृत्यु से जुडी महत्वपूर्ण जानकारियाँ यहाँ पर दी गयी हैं।

Table of Content

सुभाष चन्द्र बोस की जीवनी Subhash Chandra Bose Biography Hindi

नेताजी सुभाष चन्द्र बोस भारत के बहुत ही बड़े स्वतंत्रता सेनानी थे। भारत की आजादी में उनका बहुत ही बड़ा योगदान रहा। उन्होंने इंडियन नेशनल आर्मी (आजाद हिंद फौज) Indian National Army की स्थापना की थी।

तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा – सुभाष चंद्र बोस अनमोल वचन

प्राम्भिक जीवन Early Life

सुभाष चन्द्र बोस का जन्म 23 जनवरी, 1897 को कटक, ओडिशा (Cuttack, Odisha) में पिता जानकीनाथ बोस और माता प्रभावती देवी के घर में हुआ था। अपने 8 भाइयों और 6 बहनों में सुभाष नौवे थे।

वे स्वामी विवेकानंद के सुविचारों और शिक्षाओं से बहुत ही ज्यादा प्रभावित हुए थे। यहाँ तक की वो स्वामी विवेकानंद को अपने अध्यात्मिक गुरु के रूप में भी मानते थे।

सुभाष चन्द्र बोस द्वारा ब्रिटिश प्रोफेसर की पिटाई British Professor Thrashed

अंग्रेजों द्वारा अपने कुछ भारतीय लोगों के कई शोषण को देख कर सुभाष चन्द्र बोस ने ब्रिटिश हुकूमत से बदला लेने का सोचा।

दिसम्बर 1921 में, वेल्स के राजकुमार के आने पर होने वाले उत्सव के लिए बायकाट करने पर जेल में डाल दिया गया था।

इंडियन सिविल सर्विस Subhash Chandra Bose & Indian Civil Service

सुभाष चन्द्र बोस के पिता का मन था की उनके बेटे भारतीय सिविल कर्मचारी बनें इसलिए उन्होंने सुभाष को इंग्लैंड भारतीय सिविल सर्विस की परीक्षा में पास होने के लिए भेज दिया। बोस अंग्रेजी में चौथे स्थान में रहे थे।

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस Subhash with Indian National Congress

जब चित्तरंजन दास अपने राष्ट्रिय रणनीति के कार्यों में व्यस्त थे तब सुभाष चन्द्र बोस ने छात्रों, युवाओं और कलकत्ता के मजदूरों को आजादी के लिए जागरूकता फैलाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। वो जल्द से जल्द भारत को आज़ाद देखना चाहते थे।

कांग्रेस में विवाद Dispute in the Congress

वर्ष 1928, गुवाहाटी में कांग्रेस के एक अधिवेशन के दौरान नए और पुराने सदस्यों के बिच विचार अलग-अलग हुए। युवा नेताओं का मानना था भारत को पूर्ण रूप से स्वाधीनता मिले परन्तु वरिष्ठ नेता ब्रिटिश शासन द्वारा भारत अधिराज्य का दर्जा की बात को मान लेना चाहते थे।

शांत महात्मा गाँधी जी के आक्रामक सुभाष चन्द्र के बिच सबसे बड़ा जो अंतर था वो था फुलाव। इतना की सुभाष चन्द्र ने महात्मा गांधी द्वारा प्रेसिडेंट पद के लिए मनोनीत किये हुए पट्टाभि सीतारामया, को वोट में हरा दिया और जितने के बाद पार्टी से इस्तीफा दे दिया।

आजाद हिंद फौज Formation of Indian National Army by Subhash Chandra Bose

द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, सितम्बर 1939, को नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने यह तय किया कि वो एक जन आंदोलन आरंभ करेंगे। वो पुरे भारत में लोगों को इस आन्दोलन के लिए प्रोत्साहन करने लगे और लोगों को जोड़ना भी शुरू किया।

साल 1941 में, उनके इस House-arrest के दौरान सुभाष ने जेल से भागने की एक योजना बनाई। वो पहले गोमोह, बिहार गए और वहां से वो सीधा पेशावर(जो की अब पाकिस्तान का हिस्सा है) चले गए। उसके बाद वो जर्मनी चले गए और वहां हिटलर(Hitler) से मिले।

और पढ़ें: सुभाष चन्द्र बोस से जुड़े हुये तथ्य

सुभाष चन्द्र बोस का इंग्लैंड दौरा Subhash Chandra Bose England Visit

नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की रहस्यमयी मृत्यु subhash chandra bose disappearance.

उनकी मृत्यु के विषय में कई प्रकार के सिद्धांत भी बताये गए। बाद में उनकी मृत्यु के विषय में भारत सरकार ने बहुत छान बिन करवाया जिससे की सच्चाई बाहर निकले।

मई 1956, में – शाह नवाज़ कमिटी, जापान गई ताकि सुभाष चन्द्र की मृत्यु के विषय में कोई सही कारण पता चल सके। ताइवान के साथ अच्छा राजनीतिक रिश्ता ना होने के कारण इस बात की तलाश के लिए उन्हें सही मदद नहीं मिल सका।

subhash chandra bose biography book in hindi

Similar Posts

मोक्षगुंडम विश्वेश्वरय्या का जीवन परिचय mokshagundam visvesvaraya biography in hindi, पंडित गोविन्द बल्लभ पंत का जीवन परिचय biography of pandit govind ballabh pant in hindi, नीलम संजीवा रेड्डी जी की जीवनी neelam sanjiva reddy biography in hindi, डॉ राजेन्द्र प्रसाद जी की जीवनी dr rajendra prasad biography hindi (1st राष्ट्रपति – भारत), बाबा रामदेव का जीवन परिचय baba ramdev biography in hindi, सुभद्रा कुमारी चौहान का जीवन परिचय subhadra kumari chauhan biography in hindi, leave a reply cancel reply, 17 comments.

  • Alexander III of Macedon – was a king of the ancient Greek kingdom of Macedon / सिकंदर या अलेक्जेंडर द ग्रेट 
  • Jalal-ud-din Muhammad Akbar – was the third Mughal emperor / जलाल उद्दीन मोहम्मद अकबर

Subhas Chandra Bose – an Indian nationalist / सुभाष चन्द्र बोस

  • Vikram Ambalal Sarabhai – an Indian Physicist and Astronomer / विक्रम साराभाई
  • Krishnakumar Kunnath (KK), was an Indian playback singer / कृष्णकुमार कुन्नथ
  • Tantia Tope an general in the Indian Rebellion of 1857 and notable leaders / तात्या टोपे
  • Sudha Murty – an Indian educator, author and philanthropist / सुधा मूर्ति
  • Droupadi Murmu – an Indian politician, president of India / द्रौपदी मुर्मू
  • Homi Jehangir Bhabha – was an Indian nuclear physicist, founding director, and professor of physics / होमी जहांगीर भाभा
  • Anandibai Joshi – First Indian Female Doctor / आनंदीबाई जोशी

www.hindilekh.com

सुभाष चन्द्र बोस जीवनी Subhas Chandra Bose biography in hindi

सुभाष चन्द्र बोस जीवनी Subhas Chandra Bose biography in hindi – सुभाष चंद्र बोस भारत देश के महान स्वतंत्रता संग्रामी थे। उन्होंने देश को अंग्रेजों से आजाद कराने के लिए बहुत कठिन प्रयास किए। उड़ीसा के बंगाली परिवार में जन्मे सुभाष चंद्र बोस एक संपन्न परिवार से थे। उन्हें अपने देश से बहुत प्यार था और उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी देश के नाम कर दी।

सुभाष चंद्र जी का पूरा नाम “नेताजी सुभाष चंद्र बोस” था उनका जन्म 23 जनवरी 1897 में हुआ था। उनकी माता का नाम प्रभावती और पिता का नाम जानकीनाथ बोस था। इनकी पत्नी का नाम एमिली था और इनकी बेटी का नाम अनिता बोस है । सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु 18 अगस्त 1945 “जापान नामा” देश में हुई थी।

सुभाष चंद्र बोस का जन्म उड़ीसा के कटक में, एक बंगाली परिवार में हुआ था। उनके 7 भाई और 6 बहने थी। वह अपने माता पिता की नौवीं संतान थी। नेताजी अपने भाई शरद चंद्र के बहुत करीब थे। उनके पिता जानकीनाथ कटक के मशहूर और सफल वकील थे। जिन्हें “राय बहादुर” नाम की उपाधि दी गई थी। नेताजी को बचपन से ही पढ़ाई में बहुत रुचि थी। इन्हें खेलकूद में कभी रुचि नहीं रही। नेताजी ने स्कूल की पढ़ाई कटक से ही पूरी की थी। इसके बाद आगे की पढ़ाई के लिए वह कोलकाता चले गए। वहां “प्रेसिडेंसी कॉलेज” में फिलॉसफी में b.a. किया। इसी कॉलेज में एक अंग्रेजी प्रोफेसर के द्वारा, भारतीयों को सताए जाने का नेताजी बहुत विरोध करते थे। उस समय जातिवाद का मुद्दा उठाया गया था। यह पहली बार था जब नेता जी के मन में अंग्रेजो के खिलाफ जंग शुरू हुई। नेताजी “सिविल सर्विस” करना चाहते थे। अंग्रेजों के शासन के चलते, उस समय भारतीयों के लिए सिविल सर्विस में जाना बहुत मुश्किल था। तब उनके पिता ने “इंडियन सिविल सर्विस” की तैयारी के लिए उन्हें इंग्लैंड भेज दिया इस परीक्षा में नेताजी चौथे स्थान में आए। जिसमें अंग्रेजी में उन्हें सबसे ज्यादा अंक मिले।

नेताजी स्वामी विवेकानंद को अपना गुरु मानते थे। उनके द्वारा कही गई बातों का अनुसरण करते थे। नेताजी के मन में देश के प्रति बहुत प्रेम था। वह देश के आजादी के लिए चिंतित थे। जिसके चलते 1921 में उन्होंने “इंडियन सिविल सर्विस” की नौकरी ठुकरा दी और भारत लौट आए।

भारत लौटते ही नेताजी स्वतंत्रता की लड़ाई में कूद गए। उन्होंने :भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी” ज्वाइन कर ली। शुरुआत में नेताजी कोलकाता में कांग्रेस पार्टी के नेता रहे और चितरंजन दास के नेतृत्व में काम किया करते थे। नेताजी चितरंजन दास को अपना “राजनीतिक गुरु” मानते थे। 1922 में चितरंजन दास ने मोतीलाल नेहरू के साथ कांग्रेस को छोड़ अपनी अलग “स्वराज पार्टी” बना ली थी। जब चितरंजन दास अपनी पार्टी के साथ रणनीति बना रहे थे तब नेता जी ने उस बीच कोलकाता के नौजवान छात्र-छात्राओं और मजदूरों के बीच अपनी खास जगह बना ली थी।

वह जल्द से जल्द पराधीन भारत को, स्वाधीन भारत के रूप में देखना चाहते थे। अब लोग सुभाष चंद्र को नाम से जाने लगे थे। उनके काम की चारों तरफ चर्चाएं हो रही थी। नेताजी एक नौजवान सोच लेकर आए थे जिससे वह “यूथ लीडर” के रूप में चर्चित हो रहे थे। 1928 में गुवाहाटी में कांग्रेस की एक बैठक के दौरान ,नए व पुराने सदस्यों के बीच बातों को लेकर मतभेद उत्पन्न हुआ। नए युवा नेता किसी नियम पर नहीं चलना चाहते थे और वह स्वयं के हिसाब से चलना चाहते थे लेकिन पुराने नेता ब्रिटिश सरकार के बनाए नियम के साथ आगे बढ़ना चाहते थे।

सुभाष चंद और गांधी जी के विचार बिल्कुल अलग थे। नेताजी गांधीजी के अहिंसा वादी विचार धारा से सहमत नहीं थे। उनकी सोच नौजवान वाली थी जो हिंसा में भी विश्वास रखती थी। 1939 में नेताजी राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष के पद के लिए खड़े हुए। इनके खिलाफ गांधी जी ने “पट्टाबी सीतारामया ” को खड़ा किया था, जिसे नेताजी ने हरा दिया था। गांधी जी को यह अपनी हार लगी थी, जिससे वह बहुत दुखी थे। नेता जी ने यह बात जानते ही अपने पद से तुरंत इस्तीफा दे दिया था। विचारों का मेल ना होने की वजह से नेताजी गांधी विरोधी होते जा रहे थे, जिसके बाद उन्होंने खुद कांग्रेस छोड़ दी।

1939 को भारतीय विश्व युद्ध चल रहा था। नेता जी ने वहां अपना रुख किया। वह पूरी दुनिया से मदद लेना चाहते थे ताकि अंग्रेजों को ऊपर से दबाव पड़े और मैं देश छोड़कर चले जाएं। इस बात का उन्हें बहुत अच्छा असर देखने को मिला। जिसके बाद ब्रिटिश सरकार ने उन्हें जेल में डाल दिया। जेल में लगभग 2 हफ्तों तक उन्होंने ना खाना खाया ना पानी पिया। उनकी बिगड़ती हालत को देख, देश के नौजवान उग्र होने लगे और उनकी रिहाई की मांग करने लगी। तब सरकार ने उन्हें कोलकाता में नजरबंद कर रखा था।

इस दौरान 1941 में नेताजी अपनी भतीजी “शिशिर” की मदद से वहां से भाग निकले। सबसे पहले वह बिहार के “गो माया” गए वहां से वह पाकिस्तान के पेशावर जा पहुंचे। इसके बाद वह सोवियत संघ होते हुए जर्मनी पहुंच गए। जहां नेताजी वहां के शासक हिटलर से मिले। राजनीति में आने से पहले नेताजी दुनिया के बहुत सारे हिस्सों में घूम चुके थे। देश और दुनिया की सुभाष चंद्र बोस को बहुत अच्छी खासी समझ थी। उन्हें पता था कि हिटलर और पूरी जर्मनी का दुश्मन इंग्लैंड था, ब्रिटिश से बदला लेने के लिए उन्हें यह कूटनीति सही लगे। उन्होंने दुश्मन के दुश्मन को दोस्त बनाना उचित समझा। इसी दौरान उन्होंने ऑस्ट्रेलिया की एक लड़की “एमिली” से शादी कर ली थी। जिसके साथ वह बर्लिन में रहते थे। उनकी एक बेटी “अनिता बोस” भी हुई।

1943 में नेताजी जर्मनी छोड़ जापान जा पहुंचे। वहां वह मोहन सिंह से मिले। जो उस समय “आजाद हिंद फौज” के मुख्य थे। नेताजी ने मोहन सिंह और रासबिहारी बोस के साथ मिलकर “आजाद हिंद फौज” का पुनर्गठन किया। इसके साथ ही नेता जी ने अपनी पार्टी भी बनाई।

1944 में नेताजी ने अपने “आजाद हिंद सरकार” नामक पार्टी भी बनाई। 1944 में नेताजी ने अपने आजाद हिंद फौज को “तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा” नारा दिया। जो देश भर में नहीं क्रांति लेकर आया। नेताजी इंग्लैंड गए जहां वह “ब्रिटिश लेबर पार्टी” के अध्यक्ष व राजनीति के मुख्य लोगों से मिले। जहां उन्होंने भारत की आजादी और उसके भविष्य के बारे में बातचीत की। ब्रिटिशओ को उन्होंने बहुत हद तक भारत छोड़ने के लिए मना भी लिया था।

1945 में जापान जाते समय नेताजी का विमान ताइवान में क्रैश हो गया। लेकिन उनकी बॉडी नहीं मिली थी। कुछ समय बाद उन्हें मृत घोषित कर दिया गया था। भारत सरकार ने इस दुर्घटना पर बहुत सी जांच कमेटी भी बिठाई लेकिन इस बात की पुष्टि आज भी नहीं हुई है।

मई 1956 में “शाहनवाज कमेटी” नेता जी की मौत की गुत्थी सुलझाने जापान गई, लेकिन ताइवान से कोई खास राजनीति रिश्ता ना होने की वजह से उनकी सरकार ने उनकी कोई मदद नहीं की। 2006 में “मुखर्जी कमीशन” ने संसद में बोला कि नेताजी की मौत विमान दुर्घटना में नहीं हुई थी। उनकी अस्थियां जो “रिकॉन जी” मंदिर में रखी गई हुई है वह उनकी नहीं है। लेकिन इस बात को भारत सरकार ने खारिज कर दिया आज भी इस बात पर जांच और विवाद चल रहा है।

Related posts

सिकंदर जीवनी Sikandar King biography in hindi

Leave a reply Cancel reply

Subscribe to our newsletter.

hi

free hindi ebooks

  • New Arrivals
  • _Religious Books
  • __Christianity
  • _Non Fiction
  • Refrence Books
  • Hindu religious Books
  • Educational
  • Non - fiction
  • E- learning
  • Exam & Test Prep

Download Biography Of Netaji Subhash Chandra Bose book in Hindi PDF

Download Biography Of Netaji Subhash Chandra Bose book in Hindi PDF

subhash chandra bose biography book in hindi

Download Biography Of Netaji Subhash Chandra Bose book in Hindi PDF नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जीवनी ई—बुक करें डाउनलोड

eBook का नाम— नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जीवनी (Biography Of Netaji Subhash Chandra Bose)
e book लेखक का नाम— शिशिर कुमार बोस
प्रकाशक का नाम— नेशनल बुक ट्रस्ट 

Biography Of Netaji Subhash Chandra Bose  book in Hindi PDF के बारे में संक्षिप्त विवरण

Biography of netaji subhash chandra bose book in hindi.

books in hindi, books pdf, hindi books pdf, pdf, hindi books download, free hindi books, hindi book, free books, book, hindi books in pdf, free books download, hindi books free download, free books in hindi, pdf books download, ncert hindi books, ncert books, ncert, hindi pdf books free download, books online, online books,  ncert books in hindi, hindi story, hindi story books, story

सभी किताबों की सूची देखने के लिए क्लिक करें.

Related products, social plugin, special books.

Download numerology book in Hindi PDF

Download numerology book in Hindi PDF

Download lal kitab in hindi pdf

Download lal kitab in hindi pdf

Download Hardev Bahri Hindi Grammar Book pdf

Download Hardev Bahri Hindi Grammar Book pdf

Download vastu shastra in hindi pdf

Download vastu shastra in hindi pdf

 Download vastu shastra in hindi pdf

Download the secret rhonda byrne ebook in hindi pdf

Download english — Hindi dictionary in PDF

Download english — Hindi dictionary in PDF

  • acupressure
  • competition books

Recent Novels

Random novels.

We’re fighting to restore access to 500,000+ books in court this week. Join us!

Internet Archive Audio

subhash chandra bose biography book in hindi

  • This Just In
  • Grateful Dead
  • Old Time Radio
  • 78 RPMs and Cylinder Recordings
  • Audio Books & Poetry
  • Computers, Technology and Science
  • Music, Arts & Culture
  • News & Public Affairs
  • Spirituality & Religion
  • Radio News Archive

subhash chandra bose biography book in hindi

  • Flickr Commons
  • Occupy Wall Street Flickr
  • NASA Images
  • Solar System Collection
  • Ames Research Center

subhash chandra bose biography book in hindi

  • All Software
  • Old School Emulation
  • MS-DOS Games
  • Historical Software
  • Classic PC Games
  • Software Library
  • Kodi Archive and Support File
  • Vintage Software
  • CD-ROM Software
  • CD-ROM Software Library
  • Software Sites
  • Tucows Software Library
  • Shareware CD-ROMs
  • Software Capsules Compilation
  • CD-ROM Images
  • ZX Spectrum
  • DOOM Level CD

subhash chandra bose biography book in hindi

  • Smithsonian Libraries
  • FEDLINK (US)
  • Lincoln Collection
  • American Libraries
  • Canadian Libraries
  • Universal Library
  • Project Gutenberg
  • Children's Library
  • Biodiversity Heritage Library
  • Books by Language
  • Additional Collections

subhash chandra bose biography book in hindi

  • Prelinger Archives
  • Democracy Now!
  • Occupy Wall Street
  • TV NSA Clip Library
  • Animation & Cartoons
  • Arts & Music
  • Computers & Technology
  • Cultural & Academic Films
  • Ephemeral Films
  • Sports Videos
  • Videogame Videos
  • Youth Media

Search the history of over 866 billion web pages on the Internet.

Mobile Apps

  • Wayback Machine (iOS)
  • Wayback Machine (Android)

Browser Extensions

Archive-it subscription.

  • Explore the Collections
  • Build Collections

Save Page Now

Capture a web page as it appears now for use as a trusted citation in the future.

Please enter a valid web address

  • Donate Donate icon An illustration of a heart shape

Subhas Chandra Bose -a Biography

Bookreader item preview, share or embed this item, flag this item for.

  • Graphic Violence
  • Explicit Sexual Content
  • Hate Speech
  • Misinformation/Disinformation
  • Marketing/Phishing/Advertising
  • Misleading/Inaccurate/Missing Metadata

Source: Digital Library of India

Scanning Centre: C-DAC, Noida Source Library: Ncert Date Accessioned: 6/19/2015 16:36 The Digital Library of India was a project under the auspices of the Government of India.

plus-circle Add Review comment Reviews

Download options.

For users with print-disabilities

IN COLLECTIONS

Uploaded by Public Resource on October 18, 2020

SIMILAR ITEMS (based on metadata)

44Books

सुभाष चंद्र बोस आत्मकथा / Subhash Chandra Bose Biography

subhash chandra bose biography सुभाष चंद्र बोस आत्मकथा मुफ्त हिंदी पीडीऍफ़ पुस्तक | Subhash Chandra Bose Biography Free Hindi Book |

पुस्तक का विवरण / Book Details
सुभाष चंद्र बोस आत्मकथा / Subhash Chandra Bose Biography
,
, ,
144
Good
6.83 MB
Available

सुभाष चंद्र बोस आत्मकथा पुस्तक का कुछ अंश : नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की यह संक्षिप्त जीवनी मूलतया केंद्रीय कांग्रेस शताब्दी समारोह समिति के अनुरोध पर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के शताब्दी समारोह के सिलसिले में लिखी गयी थी। लेकिन उस समय यह प्रकाशित नहीं हो सकी और इसकी पांडुलिपि अंततः लेखक को लौटा दी गयी। यह जीवनी जिज्ञासु प्रकृति के सामान्य पाठक का प्रयोजन सिद्ध करती है, खासकर नयी पीढ़ी के पाठक का, जिसे राष्ट्रीय स्वाधीनता संग्राम का प्रत्यक्ष ज्ञान या अनुभव नहीं………….

Subhash Chandra Bose Biography PDF Pustak in Hindi Ka Kuch Ansh : Neta Ji Subhash chandra Bose ki yah sankshipt jeevani moolataya kendreey Congres shatabdi samaroh samiti ke anurodh par Bharatiya Rashtreey Congres ke shatabdi samaroh ke silasile mein likhee gayi thi. Lekin us samay yah prakashit nahin ho saki aur iski pandulipi antatah lekhak ko lauta di gayi. Yah Jeevani jigyaau prakrti ke samany pathak ka prayojan siddh karti hai, khasakar nayi peedhee ke pathak ka, jise Rashtriy svadheenata sangram ka pratyaksh gyan ya anubhav nahin………….

Short passage of subhash chandra bose biography hindi pdf book : this brief biography of netaji subhash chandra bose was originally written at the request of the central congress centenary celebrations committee in connection with the centenary celebrations of the indian national congress. but at that time it could not be published and its manuscript was eventually returned to the author. this biography proves the purpose of the general reader of inquisitive nature, especially the reader of the new generation, who does not have direct knowledge or experience of the national freedom struggle..

“आप पूछते हैं: जीवन का उद्देश्य और अर्थ क्या है? मैं इसका उत्तर केवल एक अन्य प्रश्न से दे सकता हूं: क्या आपके विचार से हम भगवान की सोच को समझने के लिए पर्याप्त बुद्धिमत्ता रखते हैं?” – फ्रीमैन डायसन
“You ask: what is the meaning or purpose of life? I can only answer with another question: do you think we are wise enough to read God’s mind?” -Freeman Dyson

हमारे टेलीग्राम चैनल से यहाँ क्लिक करके जुड़ें

Related Posts:

  • परमाणु मुफ्त हिंदी पीडीएफ कॉमिक | Parmanu Free Hindi…
  • इंस्पेक्टर स्टील मुफ्त हिंदी पीडीऍफ़ कॉमिक |…
  • भेड़िया मुफ्त हिंदी पीडीऍफ़ कॉमिक | Bhediya Free…
  • योद्धा मुफ्त हिंदी पीडीऍफ़ कॉमिक | Yodha Free Hindi…
  • बांकेलाल और भोकाल मुफ्त हिंदी पीडीऍफ़ कॉमिक |…
  • सर्वोदय : महात्मा गाँधी द्वारा हिंदी पीडीऍफ़ पुस्तक –…
  • आक्रमण (योद्धा) मुफ्त हिंदी पीडीऍफ़ कॉमिक | Akraman…
  • नागराज मुफ्त हिंदी पीडीऍफ़ कॉमिक डाउनलोड | Nagraj…
  • शूतान मुफ्त हिंदी पीडीऍफ़ कॉमिक डाउनलोड | Shutan Free…
  • युकिलिप्टस की डाली- कृष्णचन्द्र मुफ्त हिंदी पीडीऍफ़…
  • जासूस गोपीचंद के कारनामे मुफ्त हिंदी पीडीएफ कॉमिक |…
  • तानसेन मुफ्त हिंदी पीडीऍफ़ पुस्तक | Tansen Hindi Book…

Leave a Comment Cancel reply

  • Issue: * Copyright Infringement Spam Invalid Contents Broken Links
  • Your Name: *
  • Your Email: *

subhash chandra bose biography book in hindi

Mails us at: admin [@] 44books.com  ( Please remove space and [ ] symbol.

© 44books.com

SudhHindi.in

  • Privacy Policy
  • Terms & Conditions

सुभाष चंद्र बोस का जीवन परिचय | Subhash Chandra Bose Biography In Hindi

Subhash Yadav

Subhash Chandra Bose Biography In Hindi: नमस्कार दोस्तों आज इस लेख में हम आपको भारत के ऐसे स्वतंत्रता सेनानी के बारे में बताने जा रहे हैं जिनका नाम भारत को अंग्रेजों से आजाद कराने मैं लिया जाता है जी हां दोस्तों हम बात कर रहे हैं|

सुभाष चंद्र बोस की जिन्होंने अपने एक नारे तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा सिर्फ पूरे भारत में एक नई क्रांति ला दी थी और उन्होंने अपना पूरा जीवन देश के नाम समर्पित कर दिया है|

क्योंकि वह अपने देश से बहुत प्यार करते थे और देश की आजादी के लिए मर मिटने को तैयार थे वह एक संपन्न परिवार से संबंध रखते थे परंतु फिर भी उन्होंने अपने ऐसो आराम को छोड़कर देश की स्वतंत्रता की लड़ाई में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया|

अंग्रेजों को हमारे देश से भगाने के लिए पूरे जोरो जोरो से प्रयास किया यह  एक ऐसे स्वतंत्रता सेनानी थे जिन्होंने कभी भी अपने परिवार और अपने जीवन के बारे में नहीं सोचा केवल और केवल देश ही उनके लिए सर्वोपरि था|

इनकी जन्म दिवस को देश में पराक्रम दिवस के रूप में मनाया जाता है तो आइए जानते हैं इस महान स्वतंत्रता सेनानी की जीवन की बारे में विस्तार से इनका जन्म शिक्षा कैरियर स्वतंत्रता में योगदान इनका परिवार सभी के बारे में हम आज विस्तार से जानकारी देने जा रहे हैं अतः  इस लेख Subhash Chandra Bose Biography In Hindi को अंत तक अवश्य पढ़ें|

Subhash Chandra Bose Biography Wikipedia

नाम सुभाष चंद्र बोस
 उपनाम  नेता जी
 जन्म 23 जनवरी 1891
 जन्म स्थान उड़ीसा
 शिक्षा कला में स्नातक
 नागरिकता भारतीय
 धर्म हिंदू
 मृत्यु 18 अगस्त 1948

सुभाष चंद्र बोस का जन्म | Subhash Chandra Bose Birth

स्वतंत्रता सेनानी सुभाष चंद्र बोस का जन्म जनवरी1897 मैं उड़ीसा  के कटक शहर में एक बंगाली परिवार में हुआ था इनका परिवार बहुत संपन्न था बचपन से  यह देश की सेवा करना चाहते थे और पढ़ाई में यह बहुत होशियार थेI

Subhash Chandra Bose Biography In Hindi

सुभाष चंद्र बोस का परिवार | Subhash Chandra Bose Family

सुभाष चंद्र बोस के पिता का नाम जानकीनाथ था और वह कटक के बहुत बड़े फेमस और मशहूर वकील थे  जिन्हें अंग्रेजों द्वारा रायबहादुर की उपाधि दी गई थी और उनकी माता का नाम प्रभावती थाI

जोकि कुशल ग्रहणी थी यह इनकी माता पिता की नौवीं संतान थे और इनके  सात भाई और 6 बहने थी बचपन से ही वह अपने भाई शरद चंद्र के बहुत करीब थे और मैं उन्हें अपने पिता से अधिक प्यार करते थेI

सुभाष चंद्र बोस की शिक्षा | Subhash Chandra Bose Education

सुभाष चंद्र बोस पढ़ने में बचपन से ही बहुत ज्यादा होशियार थे और इन्हें पढ़ने में भी बहुत रूचि थी यह अपने शिक्षक के बहुत प्रिय शिष्य थे और बहुत मेहनती भी थेI

इन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा प्रोटेस्टेंट यूरोपियन स्कूल में  की, जिसे अब स्टीवर्ट हाई स्कूल  कटक से ही पूरी की इसके बाद आगे की पढ़ाई के लिए वह कलकत्ता चले गए और उन्होंने प्रेसीडेंसी कॉलेज में एडमिशन लिया यहां से उन्होंने फिलॉसफी विषय से b.a. कर अपना ग्रेजुएशन पूरा कियाI

इस कॉलेज में एक अंग्रेज प्रोफेशन ने भारतीय छात्रों को बहुत सताया था जिसका विरोध सुभाष चंद्र बोस ने किया उस समय से ही उनके मन में अंग्रेजों की प्रति घड़ा का भाव जागृत हो गया था क्योंकि अंग्रेज भारतीय छात्रों को बहुत परेशान करते थे और जातिवाद का मुद्दा उठाया करते थेI

नेताजी यूपीएससी की परीक्षा देकर सिविल सर्विस में नौकरी करना चाहते थे परंतु अंग्रेजों के शासन में भारतीयों के लिए सिविल सर्विस में जाना बहुत ही कठिन थाI परंतु फिर भी उनकी पिताजी ने यूपीएससी की तैयारी के लिए उन्हें इंग्लैंड भेज दिया इस परीक्षा को देने के बाद जब नतीजा आयाI

तो नेताजी चौथे स्थान पर रहे नेताजी सभी विषयों में से सबसे ज्यादा इंग्लिश में नंबर प्राप्त कर लिए और नौकरी को ज्वाइन कर लिया परंतु वह अपने गुरु स्वामी विवेकानंद को मानते थे और वे उनके द्वारा  कहीं गई सभी बातों को अपने जीवन में उतारते थेI

इनकी मन में देश के प्रति बहुत ज्यादा लगा था और वह भारत की आजादी के लिए हमेशा सोचते रहते थे इस कारण उन्होंने अपने भाई शरदचंद्र से सलाह लेकर इस नौकरी को छोड़ दिया 1921 में सिविल सर्विसेज छोड़कर वह भारत लौट आएI

सुभाष चंद्र बोस का वैवाहिक जीवन | Subhash Chandra Bose Marriage|

सुभाष चंद्र बोस में एमिली अंकल शादी की थी शादी से उन्हें एक बेटी भी थी जिसका नाम अनीता बोस थाI

धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री जी का जीवन परिचय | Dhirendra Shastri Biography In Hindi 2023 इसे भी पढ़े!

सुभाष चंद्र बोस का राजनीतिक सफर | Subhash Chandra Bose Political struggle

भारत वापस आने के बाद नेता जी ने स्वतंत्रता की लड़ाई में अपना पहला कदम रखा और कांग्रेस पार्टी से जुड़ गए प्रारंभ में इन्होंने चित्र दास जी के नेतृत्व में काम करते हुए कलकत्ता से ही कांग्रेस पार्टी में नीता बनी रहेI

इन्होंने अपना राजनीतिक गुरु चितरंजन दास कोई माना था परंतु उन्होनें 1922 में मोतीलाल नेहरु के साथ मिलकर एक नई पार्टी बना ली जिसका नाम उन्होंने स्वराज रखा थाI

इसी बीच नेता जी ने अपनी सभी लोगों के बीच बहुत ज्यादा अच्छी बना ली थी क्योंकि वह जल्द से जल्द गुलाम भारत को आजाद देखना चाहते थे और नई सोच किसान बहन नौजवानों की हीरो बन गएI

जब 1928 में गुवाहाटी में कांग्रेस पार्टी की बैठक हुई तो यहां सदस्यों के बीच ममता हो गया क्योंकि नौजवान अपने हिसाब से काम करना चाहते थे और पुराने सदस्य अंग्रेजों द्वारा बनाए गए नियम ऊपर चलना चाहते थे परंतु सभी लोगों को लक्ष्य केवल भारत ही आजादी थाI

सुभाष चंद्र बोस का निधन | Subhash Chandra Bose Death

1945 में ताइवान मैं नेताजी का विमान क्रेश हो गया था जब बह जापान जा रहे थे इस दुर्घटना में उनकी बॉडी नहीं मिली परंतु कुछ दिनों बाद उनकी मैथ्यू की खबर आई इनकी मौत का रहस्य भी तक नहीं सुलझाया जा चुका है क्योंकि इनकी मौत की जांच वाली बात पर आज भी विभाग चल रहा हैI

सुभाष चंद्र बोस की जयंती | Subhash Chandra Bose Jayanti

सुभाष चंद्र बोस की जयंती हर साल 23 जनवरी के दिन को इनकी जैंशी के रूप में मनाया जाता है साल 2023 23 जनवरी के दिन इनका 125 वापस मनाया गयाI

नेताजी का नारा नेता जी ने एक ऐसा नारा दिया जिसने पूरे देश में भूचाल आ दिया तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा

FAQs (Subhash Chandra Bose Biography In Hindi)

1. सुभाष चंद्र बोस का जन्म कब हुआ था?

Ans: सुभाष चंद्र बोस का जन्म 1897 में उड़ीसा मैं हुआ था|

2. सुभाष चंद्र बोस की जयंती कब मनाई जाती है?

  Ans: सुभाष चंद्र बोस की जयंती 23 जनवरी को मनाई जाती है|

 3. सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु कब हुई थी?

  Ans: सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु 1945 में हुई थ

निष्कर्ष

दोस्तों आज के इस लेख में हमने आपको भारत के एक ऐसे वीर सपूत Subhash Chandra Bose Biography In Hindi के बारे में विस्तार से सभी जानकारी बताइए वह भारत को आजादी दिलाने में अपनी अहम भूमिका निभाई थीI

ऐसे कई वीर योद्धाओं ने अपने बलिदानों की आहुति दी है जब जाकर आज भारत आजाद हो सका है हमने उनके जीवन से जुडी सभी जानकारी इस लेख में आपके लिए साझा की है यह सब जानकारी आपको अच्छी लगी होगी धन्यवादI

You Might Also Like

गरिमा लोहिया की जीवनी | garima lohia biography in hindi | garima lohia upsc topper, इशिता किशोर की जीवनी | ishita kishore biography in hindi | ishita kishore upsc topper, खुशी पांडे का जीवन परिचय | khushi pandey biography in hindi, धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री जी का जीवन परिचय | dhirendra shastri biography in hindi 2023, जितेंद्र शास्त्री का जीवन परिचय | jitendra shastri biography in hindi.

Subhash Chandra Bose, a visionary leader and a fierce patriot, played a crucial role in India’s struggle for independence. Known for his charismatic leadership and unwavering determination, Bose founded the Indian National Army (INA) to fight against British rule. His slogan, “Give me blood, and I will give you freedom,” ignited the passion of countless Indians. Bose’s efforts to seek international support for India’s independence, particularly his alliance with Axis powers during World War II, showcased his relentless pursuit of freedom. His legacy continues to inspire generations, reminding us of his profound dedication to India’s liberation and his indomitable spirit.

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment.

subhash chandra bose biography book in hindi

Recent Post

WhatsApp Channel Kaise Banaye

जानिए WhatsApp चैनल बनाने का सही तरीका | Complete Process

subhash chandra bose biography book in hindi

पाकिस्तान से भारत आने वाली सीमा हैदर बनी मौसी, जानिए पूरी जानकारी|

YouTube Se Paise Kaise Kamaye

2024 मे YouTube Se Paise Kaise Kamaye- जानिए पूरी जानकारी

Instagram Threads Kya Hai

Instagram Threads क्या है? | Threads Account कैसे बनाए?

subhash chandra bose biography book in hindi

Uniform Civil Code (2024), समान नागरिक संहिता क्या है?

Garima Lohia

Chat GPT-4 का उपयोग कैसे करें | Chat GPT Ka Upyog Kaise Kare

Khushi Pandey Biography In Hindi

Heartbreak Insurance Fund क्या है, और कैसे इसका लाभ उठाए?

subhash chandra bose biography book in hindi

Sign in to your account

Username or Email Address

Remember Me

Happy Independence Day 2024: Best Quotes, Slogans, Poster Drawing Ideas and Captions

Happy Independence Day 2024: Best Quotes, Slogans, Poster Drawing Ideas and Captions

Happy Independence Day Best Quotes and Captions

ID!

IMAGES

  1. Biography of Subhash Chandra Bose (Hindi Edition)

    subhash chandra bose biography book in hindi

  2. Large Print: Subhash Chandra Bose in Hindi ( Illustrated biography for

    subhash chandra bose biography book in hindi

  3. Biography of Subhas Chandra Bose

    subhash chandra bose biography book in hindi

  4. Download Biography Of Netaji Subhash Chandra Bose book in Hindi PDF

    subhash chandra bose biography book in hindi

  5. 7 Books On Subhash Chandra Bose You Should Read

    subhash chandra bose biography book in hindi

  6. Subhash Chandra Bose Biography

    subhash chandra bose biography book in hindi

COMMENTS

  1. सुभाष चन्द्र बोस

    Fiji Hindi; Bahasa Indonesia; Ido; ... Signature of Subhas Chandra Bose in English and Bengali: ... Anita Bose Pfaff) है। अपने पिता के परिवार जनों से मिलने अनिता फाफ कभी-कभी भारत भी आती है। ...

  2. सुभाष चंद्र बोस का जीवन परिचय

    सुभाष चन्द्र बोस का परिचय (Subhash Chandra Bose in Hindi) सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी, 1897 को उड़ीसा के कटक में हुआ था। उनके पिता जानकी नाथ बोस एक ...

  3. नेताजी सुभाष चंद्र बोस

    An illustration of an open book. Books. An illustration of two cells of a film strip. Video. An illustration of an audio speaker. Audio An illustration of a 3.5" floppy disk. ... netaji-subhash-chandra-bose-hindi-shishir-kumar-bose Identifier-ark ark:/13960/s24xs0hmcd3 Ocr tesseract 5.2.0-1-gc42a Ocr_detected_lang hi Ocr_detected_lang_conf ...

  4. नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की जीवनी

    जानिए नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के बारे में, नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की जीवनी (जीवन परिचय), तथ्य, शिक्षा- दीक्षा तथा जीवन चक्र। Biography of Subhas Chandra Bose in Hindi.

  5. नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जीवन परिचय

    Dinesh Kumar 7 months ago 11 mins. सुभाष चंद्र बोस (Subhash Chandra Bose), जिन्हें आमतौर पर नेताजी सुभाष चंद्र बोस के नाम से जाना जाता है, भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन (Freedom ...

  6. नेताजी सुभाषचंद्र बोस

    नेताजी सुभाषचंद्र बोस की जीवनी | Netaji Subhash Chandra Bose Biography in Hindi. नाम (Name): सुभाष चंद्र जानकीनाथ बोस. जन्म (Birth): 23 जनवरी 1897. जन्म स्थान (Birthplace): कटक, उड़ीसा ...

  7. सुभाष चंद्र बोस का जीवन परिचय

    सुभाष चंद्र बोस का जीवन परिचय | सुभाष चंद्र बोस, भारत के स्वतंत्रता संग्राम के सबसे प्रमुख नेताओं में से एक थे | About Subhash Chandra Bose in hindi

  8. Biography of Subhash Chandra Bose (Hindi Edition)

    Biography of Subhash Chandra Bose (Hindi Edition) Paperback - October 1, 2020 Hindi Edition by Rph Editorial Board (Author) 3.8 3.8 out of 5 stars 16 ratings

  9. Subhash Chandra Bose in Hindi

    Subhash Chandra Bose in Hindi: जन्म : 23 जनवरी 1897, जन्मस्थान: कटक, मृत्यु: 18-08-1945, माता-पिता: जानकी नाथ बोस और प्रभावती देवी, पत्नी: एमिली शेंकल।

  10. Subhas Chandra Bose Biography in Hindi

    Subhas Chandra Bose Biography in Hindi - संछिप्त परिचय. वास्तविक नाम - सुभाष चन्द्र बोस. अन्य नाम - शुभाष चॉन्द्रो बोशु. प्रचलित नाम - नेताजी. जन्म - 23 जनवरी 1897 ...

  11. डाउनलोड करें नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की जीवनी (हिंदी में )। Download

    जीवन के विभिन्न पहलुओं पर नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के अनमोल विचार । NetaJi Subhash Chandra Bose Quotes In Hindi. The Original Title of the Book is "The Flaming Sword Forever Unsheathed : A Concise Biography Of Netaji Subhash Chandra Bose".

  12. Buy Large Print: Subhash Chandra Bose in Hindi ( Illustrated biography

    Large Print: Subhash Chandra Bose in Hindi ( Illustrated biography for children) Hardcover - 1 January 2019 Hindi Edition by Om Books Editorial Team (Author) 4.6 4.6 out of 5 stars 12 ratings

  13. Subhash Chandra Bose in Hindi

    सुभाष चंद्र बोस का जीवन परिचय | Subhash Chandra Bose in Hindi. 06/07/2021 by Sneha Shukla. सुभाष चंद्र बोस भारत के महान स्वतंत्रता सेनानी में से एक थे। उन्होंने भारतीय ...

  14. Subhash Chandra Bose Biography in Hindi

    सुभाष चंद्र बोस (Subhash Chandra Bose Biography in Hindi), जिन्हें आमतौर पर नेताजी सुभाष चंद्र बोस के नाम से जाना जाता है, भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन (Freedom Movement) में एक उल्लेखनीय ...

  15. सुभाष चन्द्र बोस की जीवनी Subhash Chandra Bose Biography Hindi

    नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की जीवनी Subhash Chandra Bose Biography Hindi. इस लेख में आप नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की जीवनी (Netaji Subhash Chandra Bose Biography in Hindi) पढेंगे। उनका ...

  16. सुभाष चंद्र बोस का जीवन परिचय

    सुभाष चंद्र बोस की जीवनी (netaji subhash chandra bose ki jivani) नाम. सुभाष चंद्र बोस. जन्म. 23 जनवरी 1897 ई0. जन्म - स्थान. कटक, उड़ीसा. पिता का नाम. जानकीनाथ बोस.

  17. सुभाष चन्द्र बोस जीवनी Subhas Chandra Bose biography in hindi

    सुभाष चन्द्र बोस जीवनी Subhas Chandra Bose biography in hindi - सुभाष चंद्र बोस भारत देश के महान स्वतंत्रता संग्रामी थे। उन्होंने देश को अंग्रेजों से आजाद कराने के लिए बहुत ...

  18. Download Biography Of Netaji Subhash Chandra Bose book in Hindi PDF

    This biography of Subhash Chand Bose and his slogan 'Give me blood, I will give you freedom' is inspiring everyone . By clicking on the link below, you can easily download the Hindi version of his biography in PDF. ... Biography Of Netaji Subhash Chandra Bose book in Hindi PDF के बारे में संक्षिप्त ...

  19. नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जीवन परिचय

    इस आर्टिकल में हम नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जीवनी कहानी (subhash chandra bose biography in hindi) को पूरे विस्तार से समझेंगे। अगर आप सुभाष चंद्र बोस की जीवनी की तलाश में है तो, आप ...

  20. An Indian Pilgrim: An Unfinished Autobiography : Subhas Chandra Bose

    Subhas Chandra Bose. Publication date 1997 Topics Hind Swaraj, Subhash Chandra Bose Collection HindSwaraj; JaiGyan Contributor Public Resource Language English Volume 1 Item Size 863912571. Notes. This item is part of a library of books, audio, video, and other materials from and about India is curated and maintained by Public Resource. ...

  21. Subhas Chandra Bose -a Biography : Chattopadhyay Gautam : Free Download

    We're fighting to restore access to 500,000+ books in court this week. Join us! A line drawing of the Internet Archive headquarters building façade. An illustration of a ... Subhas Chandra Bose -a Biography by Chattopadhyay Gautam. Publication date 1997 Topics Biography, C-DAC, Noida, DLI Top-Up Publisher Ncert Collection digitallibraryindia ...

  22. सुभाष चंद्र बोस आत्मकथा / Subhash Chandra Bose Biography

    Short Passage of Subhash Chandra Bose Biography Hindi PDF Book: This brief biography of Netaji Subhash Chandra Bose was originally written at the request of the Central Congress Centenary Celebrations Committee in connection with the centenary celebrations of the Indian National Congress. But at that time it could not be published and its ...

  23. Observe August 18 as Netaji death anniversary: Daughter

    Netaji Subhas Chandra Bose's daughter, Anita Bose Pfaff, urged the Indian government to bring his ashes back from Renkoji temple in Japan. She emphasised that Bose died in a plane crash in 1945 ...

  24. Independence Day Wishes & Quotes: 75+ Happy ...

    - Subhas Chandra Bose 11. "We believe in peace and peaceful development, not only for ourselves but for people all over the world." - Lal Bahadur Shastri 12. "Never lose your faith in the ...

  25. Subhash Chandra Bose: જાણો કોણ હતા સુભાષ ચંદ્ર બોઝ? ભારતીય ઇતિહાસમાં

    Subhash Chandra Bose: તુમ મુજે ખુન દો, મૈં તુમ્હે આઝાદી દુંગા...આ સૂત્ર આપીને જેણે દેશને એક સૂત્ર કરવાનાનો પ્રયાસ કર્યો અને ભારતની આઝાદી માટે જેણે પોતાનું સર્વસ્વ ...

  26. सुभाष चंद्र बोस का जीवन परिचय

    Subhash Chandra Bose Biography In Hindi: नमस्कार दोस्तों आज इस लेख में हम आपको भारत के ऐसे स्वतंत्रता सेनानी के बारे में बताने जा रहे हैं जिनका नाम भारत को

  27. Happy Independence Day 2024: Best Quotes, Slogans ...

    1. "Satyameva Jayate" Pandit Madan Mohan Malviya 2. "Saare jahan se achchha hindustan hamara"- Iqbal 3. "Tu mujhe khoon do, main tumhe aazadi dunga," Netaji Subhash Chandra Bose 4. "Do or Die ...